क्रिप्टोक्यूरेंसी का परिचय

कारक विश्लेषण

कारक विश्लेषण

पर्यावरण विश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?

पर्यावरण विश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण विश्लेषण व्यवसाय को प्रभावित करने वाले घटकों के बारे में बहुत ही लाभदायक एवं आवश्यक जानकारी उपलब्ध करता है। पर्यावरण विश्लेषण किसी उद्योग विशेष में होने वाले परिवर्तनों को समझने में मदद करता है। तकनीकी पूर्वानुमान भविष्य में होने वाली चुनौतियों एवं अवसर की जानकारी देता है।

वातावरण विश्लेषण से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण विश्लेषण या स्कैनिंग, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा संगठन अपने आंतरिक और बाहरी वातावरण की निगरानी के लिए अवसरों और खतरों को प्रभावित करते हैं जो उनके व्यवसाय को प्रभावित करते हैं। विज्ञापन: मूल उद्देश्य प्रबंधन को संगठन की भविष्य की दिशा निर्धारित करने में मदद करना है।

पर्यावरण अवलोकन क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरणीय अवलोकन/स्कैनिंग संभावित रुझानों की पहचान करने और व्याख्या करने के लिए बाहरी विपणन वातावरण के बारे में जानकारी एकत्र करने की प्रक्रिया है। यह गतिविधि तब एकत्रित जानकारी का विश्लेषण करना और निर्धारित करना चाहती है कि पहचाने कारक विश्लेषण गए रुझान कंपनी के लिए अवसरों या खतरों का प्रतिनिधित्व करते हैं या नहीं।

प्रबंधकों के लिए अंतरराष्ट्रीय कारोबारी माहौल का अध्ययन कैसे उपयोगी हो सकता है अपने तर्क दें?कारक विश्लेषण

इसे सुनेंरोकेंकारोबारी माहौल वो आंतरिक और बाह्य कारक है जो एक कंपनी के परिचालन की स्थिति के प्रभाव का संयोजन करते है। कारोबारी माहौल इन कारकों कों शामिल कर सकते हैं: ग्राहक और आपूर्तिकर्ता; प्रतियोगी और मालिक; प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुधार; कानून और सरकार की गतिविधियों; और बाजार, सामाजिक और आर्थिक रुझानाऍ।

बाहरी पर्यावरण विश्लेषण क्या है?कारक विश्लेषण

इसे सुनेंरोकेंसंगठन के विपणन गतिविधि सहित गतिविधि के सभी क्षेत्रों में रणनीति तैयार करने और प्रबंधन के लिए ऐसा विश्लेषण आवश्यक है। यह विश्लेषण मुख्य रूप से बाहरी वातावरण के अध्ययन से संबंधित है जिसमें एक व्यापारिक फर्म संचालित होती है।

कारोबारी माहौल से आप क्या समझते हैं?

पर्यावरण स्कैनिंग का क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण स्कैनिंग – आवश्यकता है पर्यावरणीय स्कैनिंग (मूल्यांकन) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कंपनियों के प्रवर्तक आर्थिक परिवर्तन, सरकारी परिवर्तनों, आपूर्तिकर्ताओं के रवैये और बाजार में बदलाव के नए अवसरों और खतरों को निर्धारित करने के लिए निगरानी करने की कोशिश करते हैं।

व्यावसायिक अवसरों की पहचान को प्रभावित करने वाले घटक कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक – सांस्कृतिक घटक व्यवसाय कारक विश्लेषण किसी भी देश के समाज या लोगों के बीच अपनी समस्त गतिवि धियों को संचालित करता है। अत: व्यवसाय को उस समाज के विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक घटकों जैसे-सामाजिक मूल्य, प्रथाएँ (कारक विश्लेषण customs), आस्थाएँ, धारणाएँ, सामाजिक व्यवस्था, भौतिकवाद, धर्म, संस्कार आदि प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं।

रणनीतिक प्रबंधन में पर्यावरण स्कैनिंग क्या है?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण स्कैनिंग इतनी बुनियादी और रणनीतिक है कि रणनीतिक प्रबंधन पर्यावरण स्कैनिंग द्वारा कसम खाता है। पर्यावरणीय स्कैनिंग के बिना, संगठन के लिए अवसरों और संबंधित खतरों का पता लगाना और भविष्य के बारे में रणनीति तैयार करना और कार्यान्वयन करना लगभग असंभव है।

अवसर के कितने प्रकार होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंविद्यमान अवसर या पर्यावरण में विद्यमान अवसर Existing opportunity in the environment– जो अवसर वातावरण में पहले से मौजूद होते हैं उसे ‘विद्यमान अवसर’ कहा जाता है। जैसे – कागज, कपड़ा, जूता आदि का कारखाना स्थापित करना।

साहसिक अवसरों का अनुभूति क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअवसरों का बोध निम्नरूप से हो सकता है। (२) हमेशा परिवर्तन की ओर नजर रखे। (३) हमेशा अपने प्रतियोगियों की जानकारी रखें। (४) अपने आसपास की जानकारी उनके अनुसंधान की पूरी जानकारी रखना एक साहसी व्यक्ति का गुण है।

कोविड: पूर्वोत्तर, केरल को लेकर चिंता, आर-कारक बढ़ने से उपचाराधीन मामलों में कमी की दर धीमी

नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) देश में संक्रमण किस गति से बढ़ रही है इसका संकेत देने वाले आर-कारक (प्रजनन कारक) में हाल में बढ़ोतरी देखी गई है, जिससे उपचाराधीन मरीजों के ठीक होने की दर धीमी हुई है तथा केरल व पूर्वोत्तर उन क्षेत्रों के तौर पर उभरे हैं, जो चिंता की वजह बन रहे हैं। यह तब है जब कारक विश्लेषण नए मामलों के राष्ट्रव्यापी आंकड़े कम बने हुए हैं। चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं के एक विश्लेषण में यह खुलासा हुआ है। इन विश्लेषण के मुताबिक आर-कारक जून के अंत में मामूली रूप से बढ़कर 0.88 हो गया

यह तब है जब नए मामलों के राष्ट्रव्यापी आंकड़े कम बने हुए हैं। चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं के एक विश्लेषण में यह खुलासा हुआ है।

इन विश्लेषण के मुताबिक आर-कारक जून के अंत में मामूली रूप से बढ़कर 0.88 हो गया जबकि मई कारक विश्लेषण के मध्य से पिछले महीने के आखिर तक यह अपने न्यूनतम 0.78 पर था।

यह ऐसे वक्त हुआ है जब कई राज्यों ने कोविड-19 की जानलेवा दूसरी लहर के बाद सामान्य जीवन की तरफ लौटने के प्रयास के तहत अनलॉक की प्रक्रिया शुरू की है। दूसरी लहर में अब गिरावट के संकेत हैं लेकिन अप्रैल-मई में अपने चरम के दौरान इसने लाखों लोगों को संक्रमित किया और हजारों लोगों की जान ले ली।

अनुसंधानकर्ताओं के दल का नेतृत्व करने वाले सीताभ्र सिन्हा ने कहा कि भारत के लिये ‘आर’ अब भी एक से नीचे है, इसलिये उपचाराधीन मरीज की संख्या धीमी गति से घट रही है। उपचाराधीन मरीजों की संख्या में गिरावट की दर की धीमी गति का यह रुझान कई राज्यों में देखने को मिल रहा है।

सिन्हा ने इंगित किया, “केरल में संक्रमण के मामलों में थोड़ी बढ़ोतरी देखी गई है और उसका कारक विश्लेषण ‘आर’ एक के करीब बना हुआ है। पूर्वोत्तर क्षेत्र को लेकर बड़ी चिंता है। मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और संभवत: त्रिपुरा संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी दर्शा रहे हैं।”

कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर जब चरम पर थी, तब देश में कुल आर-वैल्यू के नौ मार्च से 21 मार्च के बीच 1.37 होने का अनुमान था। विश्लेषण के मुताबिक, यह 24 अप्रैल से एक मई के बीच गिरकर 1.18 था और उसके बाद 29 अप्रैल से सात मई के बीच 1.10 पाया गया था।

इसके मुताबिक, नौ मई से 11 मई के बीच आर-वैल्यू के करीब 0.98 होने का अनुमान था, जो 14 मई से 30 मई के बीच घटकर 0.82 हो गया था। आर-वैल्यू 15 मई से 26 जून के बीच 0.78 था जबकि 20 जून से सात जुलाई के बीच यह बढ़कर 0.88 हो गया।

केरल में आर-वैल्यू के करीब 1.10 होने का अनुमान है । जहां तक पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो मणिपुर के लिए ‘आर’ 1.07, मेघालय के लिये 0.92, त्रिपुरा के लिये 1.15, मिजोरम के लिये 0.86, अरुणाचल प्रदेश के लिये 1.14, सिक्किम के लिये 0.88 और असम के लिये 0.86 है।

हाल में सामने आए जीका वायरस के साथ केरल में कोविड-19 के बढ़ते मामले स्वास्थ्य अधिकारियों के लिये चिंता का विषय हैं क्योंकि दक्षिणी राज्य संक्रमण के दैनिक नए मामलों में कमी लाने के लिये जूझ रहा है।

केरल में शनिवार को कोविड-19 के 14087 नए मामले सामने आए जबकि 109 लोगों की इससे जान चली गई। नए आंकड़ों के बाद प्रदेश में संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 3039029 हो गई है जबकि महामारी से जान गंवाने वालों का कुल आंकड़ा बढ़कर 14380 पहुंच गया है। प्रदेश में उपचाराधीन मरीजों की संख्या 113115 है।

केरल में एक जून को जहां संक्रमण के 19760 नए मामले सामने आए थे, वहीं एक हफ्ते तक थोड़ी कमी के बाद सात जून को 9313 नए मामले मिले थे। दो दिन बाद ही हालांकि मामले बढ़कर 16204 हो गए। करीब एक महीने से ज्यादा समय से वहां संक्रमण के नए मामलों की दैनिक संख्या 11 हजार से 13 हजार के बीच है।

सिन्हा ने कहा, “भारत में ‘आर’ का मई के मध्य से जून के अंत सबसे कम वैल्यू 0.78 (पिछले साल मार्च में महामारी शुरू होने के बाद से) था, जो जून के अंत से थोड़ा बढ़कर 0.88 हो गया है।”

मुख्य अनुसंधानकर्ता ने कहा कि इसका मतलब है कि हर 100 संक्रमित व्यक्ति 88 अन्य व्यक्तियों में संक्रमण फैला सकते हैं। अगर ‘आर’ एक से कम है तो इसका मतलब है कि नए संक्रमित लोगों की संख्या पूर्ववर्ती अवधि में संक्रमित लोगों की तुलना में कम है और इसका अर्थ है कि रोग के मामले कम हो रहे हैं।

क्षेत्रीय गढ़ों की दरकती जमीन

इस आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत का विश्लेषण तमाम तरह से जारी है। इसका एक बहुत बड़ा कारक यह है कि राजनीति के जातीय समीकरणों में भाजपा ने एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है, जिसका दूरगामी असर.

क्षेत्रीय गढ़ों की दरकती जमीन

इस आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत का विश्लेषण तमाम तरह से जारी है। इसका एक कारक विश्लेषण बहुत बड़ा कारक यह है कि राजनीति के जातीय समीकरणों में भाजपा ने एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है, जिसका दूरगामी असर भारतीय राजनीति में होगा। मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद इसे देश का दूसरा बड़ा सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन कहा जा सकता है।

मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई। ये क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादातर जनता पार्टी प्रयोग की टूट-फूट से बनी थीं या कांग्रेस के केंद्रीय आधिपत्य के विरोध में स्थानीय अस्मिता के सवाल पर खड़ी हुई थीं। इन पार्टियों का आधार मुख्य रूप से पिछड़ी जातियां थीं या बसपा की तरह दलित समूह थे। मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय भी भारत में अमूमन किसी पिछड़े समुदाय जैसा ही है, इसलिए मुलायम सिंह यादव या लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं के साथ मुसलमान भी जुडे़ थे। ऐसा लगने लगा था कि अब भारत की राजनीति का भविष्य इन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों से जुड़ा है और कांग्रेस या भाजपा जैसी पार्टियों को अगर केंद्र में राज करना है, तो इन पार्टियों के साथ सत्ता में साझीदारी करनी पड़ेगी, और ज्यादातर राज्यों में उन्हें इन पार्टियों पर ही निर्भर होना पड़ेगा। लोकसभा में भाजपा ने पिछले चुनाव में भी पूर्ण बहुमत पाया था और अब ज्यादा बड़ा बहुमत पाया है। क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा को रोकने या उसे अपने ऊपर निर्भर बनाने में नाकाम रही हैं। इसकी एक बड़ी वजह इन पार्टियों के चरित्र में बदलाव है।

कभी ये क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादा व्यापक समूहों का प्रतिनिधित्व करती थीं। जैसे मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी में तमाम पिछड़े समूह इकट्ठे थे। यादवों के अलावा राजभर, कुर्मी वगैरह जातियां भी उनके साथ थीं। यही स्थिति राजद की भी थी, जिसके साथ पिछड़ों के अलावा कुछ दलित जातियां भी थीं। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में बसपा व्यापक रूप से दलितों की पार्टी थी, बल्कि देश भर के दलित उसकी ओर उम्मीद से देखते थे।

अब इन पार्टियों का आधार संकुचित होता दिख रहा है। अन्य पिछड़े या दलित समुदायों को यह शिकायत होने लगी कि इन पार्टियों में किसी एक जाति को विशेष तरजीह दी जा रही है और कारक विश्लेषण उनकी उपेक्षा हो रही है, या सत्ता के लाभ का बराबर बंटवारा नहीं हो रहा है। इन पार्टियों का नेतृत्व किसी एक बड़े नेता या परिवार के पास ही था, इसलिए उन पर यह आरोप लगने लगा कि वे अपनी जाति को ज्यादा महत्व देते हैं। धीरे-धीरे सपा और राजद की पहचान यादवों की पार्टी तक सिमट गई। बसपा भी उत्तर प्रदेश के जाटवों की पार्टी बन गई। कर्नाटक में देवेगौड़ा की पार्टी वोक्कलिगा की पार्टी हो गई। यह समस्या हर जगह दिखी। हरियाणा में चौटाला और हुड्डा परिवारों से यह शिकायत रही कि उनकी राजनीति जाटों तक सीमित है, तो महाराष्ट्र में कांग्रेस, राकांपा की राजनीति में मराठा वर्चस्व के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा। अपना जनाधार सीमित करके ये पार्टियां अपनी ताकत भी खोने लगीं। ताकत कम होने के अंदेशे से असुरक्षित होकर नेता अपनी बुनियाद यानी अपनी जाति से और ज्यादा जुड़ते गए, जबकि अन्य जातियां उनसे और ज्यादा छिटकने लगीं। समावेशी नीति बनाने और संसाधनों के वितरण का दायरा न्यायपूर्ण ढंग से बढ़ाने की बजाय ये पार्टियां अपने खास या अपेक्षाकृत ताकतवर लोगों को खुश करके राजनीति चलाती रहीं। सामाजिक न्याय की एक सुविधाजनक व्याख्या उन्होंने अपने लोगों को रेवड़ी बांटने की कर ली। प्रभाव का दायरा बढ़ाने की बजाय अपने लोगों के प्रति वफादारी उन्हें महत्वपूर्ण लगी, जिसका नतीजा अब दिख रहा है।


ये पार्टियां अपेक्षाकृत शक्तिशाली जातियों के वर्चस्व वाली पार्टियां हैं, इसलिए सामाजिक-आर्थिक तौर पर बेहतरी की गुंजाइश भी इन जातियों के कुछ हिस्सों के लिए ज्यादा है। अक्सर जब लोग सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर बेहतर स्थिति में पहुंचते हैं, तब उन्हें जाति के संरक्षण की जरूरत उतनी नहीं रहती या उनकी वर्गगत पहचान जातिगत पहचान के मुकाबले कुछ अधिक मजबूत हो जाती है। ऐसे में, जरूरी नहीं कि वे अपनी जाति के आधार पर ही वोट करें। हो सकता है कि वे किसी और वजह से भाजपा या अन्य पार्टी को वोट दें। ऐसा पिछले चुनाव कारक विश्लेषण में देखने में आया है। समृद्धि और सत्ता के असमान वितरण से वर्चस्वशाली जाति के वंचित सदस्य भी असंतुष्ट हो सकते हैं, जैसा कि जाट और मराठों के आंदोलनों में देखने में आया है। ऐसे में, वे जाति के परंपरागत नेतृत्व से छिटक भी सकते हैं। इसके अलावा, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और एच डी देवेगौड़ा के प्रति लोगों की जो वफादारी है, वह तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, पार्थ पवार या निखिल देवेगौड़ा को विरासत में पूरी नहीं मिल सकती।

भाजपा ने बहुत मेहनत से इन क्षेत्रीय पार्टियों से असंतुष्ट पिछड़ी और दलित जातियों के बीच काम किया और उनके असंतोष को ज्यादा हवा दी। इन छोटे-छोटे समूहों का कुल संख्या बल वर्चस्वशाली जातियों के वोटों से ज्यादा बैठता है। विकास में साझीदारी और हिंदुत्व के गोंद ने इन जातियों को भाजपा के उच्चवर्णीय आधार से जोड़ दिया। इसीलिए भाजपा ने जो मुख्यमंत्री बनाए हैं, उनमें वर्चस्वशाली पिछड़ी जातियां गायब हैं। उनमें कहीं ब्राह्मण, कहीं राजपूत, तो कहीं पंजाबी खत्री हैं, जो सब उच्चवर्णीय हैं।

ऐसा नहीं है कि राजनीति में पिछड़ों और दलितों का महत्व घट गया है, लेकिन उनके राजनीतिक आधार के बंट जाने से उनकी ताकत कम हुई है और नेतृत्व भी उनसे छिन जाने का खतरा खड़ा हो गया है। भाजपा के हिंदुत्व की वजह से अल्पसंख्यक भाजपा विरोधी पार्टियों को वोट देने के लिए मजबूर हैं, पर विकल्प की इच्छा उनके मन में भी है। अपने आधार को विस्तृत करने के लिए इन पार्टियों के नेताओं को अपना संकुचित नजरिया बदलना होगा, सचमुच सामाजिक न्याय के सिद्धांत को अपनाना होगा और अपनी जाति के दायरे के बाहर देखना होगा। सामाजिक न्याय की लड़ाई अपने सुरक्षित और आरामदेह किलों में रहकर नहीं लड़ी जा सकती।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Child Devolpment Important Theory for CTET,UPTET,UKTET,RTET,PTET,BIHAR TET

बाल विकास से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सिध्दान्त उपलब्ध करा रहें हैं , जो की आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में पूंछे जायेंगें, अतः आप सभी अपनी परीक्षा की तैयारी को और सुगम बनाने के लिये इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें !

Imp . CTET, UPTET, RTET, KTET,MPTET, BIHAR TET, UKTET etc

गिलफोर्ड का सिध्दान्त

  • संक्रिय का अर्थ यहाँ हमारी उस मानसिक चेष्टा, तत्परता और कार्यशीलता से होता है जिसकी मद्द से हम किसी भी सूचना सामाग्री या विषय-वस्तु को अपने चिन्तन तथा मनन का विषय बनाते है या दूसरे शब्दों में इसे चिन्तन तथा मनन का प्रयोग करते हुए अपनी बुध्दि को काम में लाने का प्रयास कहा जा सकता है !
  • जे.पी गिलफोर्ड और उसके सहयोगियों ने बुध्दि परिक्षण से सम्बंधित कई परीक्षणों पर कारक विश्लेषण तकनीक का प्रयोग करते हुए मानव बुध्दि के विभिन्न तत्वों या कारकों को प्रकाश लाने वाला प्रतिमान विकसित किया !
  • उन्होंनें अपने अध्ययन प्रयासों के द्वारा यह प्रतिपादित करने की चेष्टा की कि हमारी किसी भी मानसिक प्रक्रिया अथवा बौध्दिक कार्य को तीन आधारभूत आयामों – संक्रिय, सूचना सामग्री या विषय-वस्तु तथा उत्पादन में विभाजित किया जा सकता है !
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फ्लूइड तथा क्रीस्टलाइज्ड सिध्दान्त

  • इस सिध्दान्त के प्रतिपादन कैटिल है ! फ्लूइड वंशानुक्रम कार्य कुशलता अथवा केन्द्रीय नाड़ी संस्थान की दी हुए विशेषता पर आधारित एक सामान्य योग्यता है ! यह योग्यता संस्कृति से ही प्रभावित नहीं होती बल्कि नवीन परिस्थोतियों से भी प्रभावित होती है !
  • दूसरी ओर क्रिस्टलाइज्ड भी एक प्रकार की सामान्य योग्यता है जो अनुभव, अधिगम तथा वातावरण सम्बन्धी कारकों पर आधारित होती है

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ग्रुप-तत्व सिध्दान्त

  • ग्रुप तत्व सिध्दान्त की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह सामान्य तत्व की धारणा का खण्डन करता है !
  • जो तत्व सभी प्रतिभात्मक योग्यताओं में तो सामान्य नहीं होते परन्तु कई क्रियाओं में सामान्य होते है, उन्हें ग्रुप-तत्व की संज्ञा डी गई है !
  • इस सिध्दान्त के समर्थकों में थर्सटन नाम प्रमुख है ! प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का परिक्षण करते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि कुछ मानसिक क्रियाओं में एक प्रमुख तत्व सामान्य रूप से विद्यमान होता है, जो उन क्रियाओं के कई ग्रुप होते है, उनमें अपना एक प्रमुख तत्व होता है !

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प्रतिदर्श सिध्दान्त

  • प्रतिदर्श सिध्दान्त के अनुसार बुध्दि कई स्वतन्त्र तत्वों से बनी होती है कोई विशिष्ट परिक्षण या विद्यालय सम्बन्धी क्रिया में इनमें से कुछ तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है ! यह भी हो सकता है कि दो या अधिक परीक्षाओं में एक ही प्रकार के तत्व दिखाई दें तब उनमें एक सामान्य तत्व की विद्यमानता मानी जाती है ! यह भी सम्भव है कारक विश्लेषण कि अन्य परीक्षाओं में विभिन्न तत्व दिखाई दें तब उनमें कोई भी तत्व सामान्य नहीं होगा और प्रत्येक तत्व अपने आप में विशिष्ट होगा !
  • इस सिध्दान्त का प्रतिपादन थॉमसन ने किया था ! उसने अपने इस सिध्दान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन के ध्दी-कारक सिध्दान्त के विरोध में किया था !
  • थॉमसन ने इस बात का तर्क दिया की व्यक्ति का बौध्दिक व्यवहार अनेक स्वतन्त्र योग्यताओं पर निर्भर करता है, किन्तु इस स्वतन्त्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है !

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