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शांति की राह में बाधक है कश्मीर के इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना
गलत निर्णय था कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाते समय यह दावा किया गया था कि इससे घाटी में शांति स्थापित होगी और परेशानहाल कश्मीरी पंडित समुदाय को सुरक्षा मिल सकेगी. पिछले तीन सालों में घाटी में 8 से अधिक कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतारा जा चुका है. जाहिर है कि यह निर्णय मूलतः गलत था.
क्या नोटबंदी से कश्मीर में आतंकवाद पर रोक लगी ?
देश पर नोटबंदी लादते समय कहा गया था कि इससे कश्मीर में आतंकवाद पर रोक लगेगी. नोटबंदी से जनता को भले ही कितनी ही परेशानियां हुई हों इससे आतंकवादियों को कोई तकलीफ हुई है, ऐसा नहीं लगता.
अपने दावों की पोल खुलती देख भाजपा पं. नेहरू पर हमलावर
अपने दावों के खोखला सिद्ध होने के बाद भाजपा ने फिर एक बार नेहरू को दोषी ठहराने की अपनी नीति का प्रयोग करना शुरू कर दिया है. केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि कश्मीर के हालात के लिए नेहरू की गलतियां जिम्मेदार हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फरमाया कि अनुच्छेद 370 सारी समस्याओं की जड़ है. इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता. इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने के लिए कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने रिजिजू को ‘डिस्टारशियन’ बताया.
क्या कश्मीर के महाराज हरिसिंह भारत का हिस्सा बनने के लिए तैयार थे?
रिजिजू के अनुसार यह कहना गलत है कि कश्मीर के महाराज भारत से विलय के मामले में असमंजस में थे या ना-नुकुर कर रहे थे. उनका कहना है कि हरिसिंह तो भारत का हिस्सा बनने के लिए तत्पर थे समस्या तो नेहरू ने खड़ी की.
कश्मीर के भारत में शामिल होने का सच क्या है?
सच यह है कि भारत के स्वाधीन होते समय राजे-रजवाड़ों को यह स्वतंत्रता दी गई थी कि वे या तो भारत में शामिल हो जाएं या पाकिस्तान में या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें. कश्मीर के शासक महाराजा हरिसिंह ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया. भारत का हिस्सा न बनने के उनके निर्णय को तत्कालीन प्रजा परिषद का समर्थन प्राप्त था. इसी प्रजा परिषद के सदस्य आगे चलकर भारतीय जनसंघ का हिस्सा बने और यही जनसंघ वर्तमान भाजपा का पूर्व अवतार है.
कश्मीर के शासक अपने विशेषाधिकार नहीं खोना चाहते थे और इसलिए उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ ‘स्टेंडस्टिल एग्रीमेंट’ करने का प्रस्ताव किया था. पाकिस्तान ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और इसलिए स्वाधीनता के बाद कश्मीर के डाकखानों और अन्य सरकारी इमारतों पर पाकिस्तान का झंडा फहराया गया. भारत ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.
बाद में पाकिस्तानी सेना के समर्थन से कुछ आदिवासी और पठान समूहों ने कश्मीर पर हमला कर दिया. बहाना यह बनाया गया कि चूंकि जम्मू में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की जा रही थी, इसलिए उसका बदला लिया जाना जरूरी था.
जम्मू में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा स्वयं महाराजा द्वारा पोषित थी, क्योंकि वे चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर के कम से कम एक हिस्से में हिन्दुओं का बहुमत रहे.
इस पाक समर्थित हमले के कारण हरिसिंह को भारत से सैन्य मदद मांगनी पड़ी. भारत ने यह शर्त रखी कि वह अपनी सेना तभी भेजेगा जब महाराजा हरिसिंह भारत सरकार के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर करें, जिसमें रक्षा, संचार, मुद्रा और विदेशी मामलों को छोड़कर, सभी शक्तियां राज्य की विधानसभा में निहित हों.
जहां तक अनुच्छेद 370 का प्रश्न है, इसे हरिसिंह के जोर देने पर लागू किया गया क्योंकि वे जम्मू एवं कश्मीर के लिए एक विशेष दर्जा चाहते थे. ‘‘कश्मीर सरकार और नेशनल कांफ्रेंस दोनों ने हम पर यह दबाव डाला कि हम इस विलय को स्वीकार कर लें और हवाई रास्ते से सेना कश्मीर भेजें. परंतु उनकी यह शर्त भी थी कि कश्मीर के लोग शांति और व्यवस्था पुनर्स्थापित होने के बाद इस विलय पर विचार करेंगे…” (जवाहरलाल नेहरू, कलेक्टिड वर्क्स, खंड 18, पृष्ठ 421). इस मुद्दे पर संविधान सभा द्वारा विचारोपरांत अनुच्छेद 370 लागू किया गया.
जहां तक युद्धविराम और मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष ले जाने का प्रश्न है, ये दोनों निर्णय भारत सरकार द्वारा सामूहिक रूप से लिए गए थे ना कि अकेले जवाहरलाल नेहरू द्वारा. सरदार पटेल ने 23 फरवरी 1950 को नेहरू को लिखे अपने एक पत्र में कहा था, ‘‘जहां तक पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दों का प्रश्न है, जैसा कि आप कह चुके हैं, कश्मीर का प्रश्न अब सुरक्षा परिषद के सामने है. भारत और पाकिस्तान दोनों संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है हैं और सदस्यों के बीच के विवादों को सुलझाने के लिए वहां जो मंच उपलब्ध है उसे दोनों ने चुन लिया है. इसलिए अब इस मामले में आगे कुछ भी करने की जरूरत नहीं है सिवा इसके कि हम आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है उस मंच द्वारा मुद्दों के निराकरण का इंतजार करें.”
दरअसल समस्या यह थी कि साम्प्रदायिक ताकतें जम्मू-कश्मीर का भारत में तुरंत और जबरिया विलय चाहती थीं. नेहरू जबरदस्ती की बजाए कश्मीर के लोगों के दिल जीतने के हामी थे. सरदार पटेल भी ठीक यही चाहते थे. ऊपर उद्धृत पत्र में वे आगे लिखते हैं, ‘‘कुछ लोग मानते हैं कि मुस्लिम बहुल इलाके आवश्यक रूप से पाकिस्तान का भाग होने चाहिए. वे चकित हैं कि हम कश्मीर में क्यों हैं. इसका उत्तर बहुत सीधा-सादा और स्पष्ट है. हम कश्मीर में इसलिए हैं क्योंकि कश्मीर के लोग चाहते हैं कि हम वहां हों. ज्योंहि ऐसा महसूस होगा कि कश्मीर के लोग नहीं चाहते कि हम वहां रहें, हम उसके बाद एक मिनट भी वहां नहीं रुकेंगे…परंतु जब तक हम वहां हैं तब तक हम कश्मीर के लोगों को निराश नहीं कर सकते.” (हिन्दुस्तान टाईम्स, अक्टूबर 31, 1948)
आगे जो हुआ वह ठीक इसके उलट था.
धीरे-धीरे कश्मीर की स्वायत्ता में कटौती की जाने लगी. इससे कश्मीरी लोगों में अलगाव का भाव बढ़ा और असंतोष भी. विरोध शुरू हुआ और धीरे-धीरे बढ़ता गया. शुरूआत में इस विरोध का स्वरूप साम्प्रदायिक नहीं था. पाकिस्तान के हस्तक्षेप और असंतुष्टों को पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित किए जाने के बाद हिंसा शुरू हुई.
सन् 1980 के दशक में अलकायदा जैसे तत्व घाटी में घुस आए और उन्होंने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. कश्मीर में आतंकी हिंसा के लिए अनुच्छेद 370 जिम्मेदार नहीं है. इसके लिए जिम्मेदार है कश्मीर की स्वायत्ता में निरंती कमी. आतंकी हिंसा की योजना बाहरी तत्वों ने बनाई और इसमें अमरीका द्वारा समर्थित कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन शामिल थे. इन्हें अमरीका में तैयार किए गए पाठ्यक्रम के आधार पर पाकिस्तानी मदरसों में प्रशिक्षित किया गया था.
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी कश्मीर में हिंसा समाप्त क्यों नहीं हुई?
योगी आदित्यनाथ को यह समझना चाहिए कि अगर हिंसा का कारण अनुच्छेद 370 होता तो तीन साल पहले उसको हटाए जाने के बाद से कश्मीर में हिंसा समाप्त हो गई होती. अगर अनुच्छेद 370 ही सभी समस्याओं की जड़ होता तो उसके हटने के बाद कश्मीरी पंडित स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने लगते. परंतु न तो आतंकी हिंसा खत्म हुई है और ना ही कश्मीरी पंडित चैन की बंसी बजा रहे हैं. इसका कारण यह है कि कश्मीर की समस्या की जड़ में वहां के निवासियों में अलगाव का भाव और लोगों के प्रजातांत्रिक हकों का दमन है.
रिजिजू कश्मीर समस्या के लिए केवल नेहरू को जिम्मेदार बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकते. महाराजा हरिसिंह अपने राज्य को भारत का हिस्सा नहीं बनाना चाहते थे. उन्हें अनेक तत्वों का समर्थन प्राप्त था और उस समय वहां भारत समर्थकों को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था. यह बात कई प्रमुख पत्रकारों और लेखकों ने अपनी-अपनी रचनाओं में कही है जिनमें बलराज पुरी की पुस्तक ‘कश्मीरः इनसर्जेंसी एंड आफ्टर’ शामिल आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है हैं.
भाजपा नेता कश्मीर की स्थिति के लिए नेहरू और अनुच्छेद 370 को जिम्मेदार ठहराकर समाज को ध्रुवीकृत करने का प्रयास कर रहे हैं. वे जानबूझकर तत्समय की अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को नजरअंदाज कर रहे हैं. पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है तक फैले आतंकी नेटवर्क और अमरीका द्वारा अतिवादी इस्लामवादी समूहों का समर्थन भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है. आज हमें कश्मीर के हालात को बिना पूर्वाग्रह और बिना किसी को कठघरे में खड़ा करते हुए समझना होगा. अपनी गलती छुपाने के लिए दूसरों पर आरोप लगाने की प्रवृति अच्छी नहीं है.
– राम पुनियानी
(लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
Distortion of Kashmir’s history is an obstacle in the way of peace
जरुरी जानकारी | भारत को कौशल आपूर्ति केंद्र बनाने के लिए नीति बना रही है सरकार : प्रधान
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. केंद्रीय शिक्षा, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को कहा कि सरकार वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत को कौशल का आपूर्ति केंद्र बनाने के लिए नीति बना रही है।
नयी दिल्ली, 15 नवंबर केंद्रीय शिक्षा, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को कहा कि सरकार वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत को कौशल का आपूर्ति केंद्र बनाने के लिए नीति बना रही है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों में कुशल कार्यबल की जरूरत की पहचान करने के लिए वैश्विक कौशल श्रृंखला से जुड़ी आवश्यकताओं की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
उन्होंने कहा कि जब वाणिज्य विभाग भारत की तरफ से विभिन्न देशों के साथ व्यापार सौदों पर बातचीत करता है तो कौशल आवश्यकताओं की पहचान एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में काम करेगी।
दस देशों के राजदूतों के साथ केंद्र सरकार के चार विभागों के सहयोग से मंगलवार को वर्चुअल ‘ग्लोबल स्किल्स समिट’ का आयोजन किया। इसमें ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, जापान, मलेशिया, मॉरीशस, सिंगापुर, तंजानिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ब्रिटेन ने भाग लिया।
प्रधान ने कहा, ‘‘भारत दुनिया में ‘कुशल कार्यबल’ की जरूरतों को पूरा कर सकता है। हमें देश को वैश्विक मूल्य श्रृंखला में कौशल का आपूर्ति केंद्र बनाना है। इस उद्देश्य के लिए एक नीति तैयार की जा रही है। इसे ध्यान में रखते हुए वर्चुअल ग्लोबल स्किल्स समिट का आयोजन आज किया गया।’’
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि औद्योगिक क्रांति 4.0 के बाद भारत से कुशल कार्यबल या कर्मचारियों की मांग बढ़ गई है।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)
विदेशी मुद्रा के लिए किस प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता है
विदेशी मुद्रा के लिए किस प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता है
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विदेशी मुद्रा एक मुद्रा विनिमय बाजार है जो हर साल अधिक से अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। ट्रेडिंग शुरू करने के लिए आवश्यक प्रारंभिक भुगतान की राशि विशिष्ट लक्ष्यों और कौशल के आधार पर भिन्न हो सकती है। एक नियम के रूप में, शुरुआती $ 5-10 के छोटे निवेश से शुरू करते हैं।
विदेशी मुद्रा के लिए किस प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता है
अनुदेश
चरण 1
वर्तमान में, आप अपने स्वयं के धन का निवेश किए बिना कर सकते हैं। ब्रोकर बाजार उन कंपनियों से भरा हुआ है जो नए उपयोगकर्ताओं को पंजीकरण और खाता खोलने के बाद विभिन्न बोनस प्रदान करती हैं। राशियाँ छोटी हैं, लेकिन यह बाजार की बारीकियों को समझने, पहला लाभ प्राप्त करने और आगे के निवेश पर निर्णय लेने के लिए पर्याप्त है।
चरण दो
एक डॉलर की स्टार्ट-अप पूंजी आपको केवल माइक्रो-वॉल्यूम और सेंट खातों के साथ व्यापार करने की अनुमति देती है। आय का एक बिंदु औसतन एक प्रतिशत के बराबर होता है। इस मामले में, एक महत्वपूर्ण लाभ कमाना लगभग असंभव है। कुछ सफल नौसिखिया रोजाना 20-30 सेंट कमाने में सक्षम हैं, लेकिन यह अपवाद है।
चरण 3
यदि प्रारंभिक भुगतान 10 डॉलर के बराबर है, तो आपको अभी भी सेंट खातों पर व्यापार करना होगा, लेकिन कमाई अधिक ठोस होगी। आक्रामक रणनीतियों का उपयोग करके, आप 50-80% तक के शुरुआती निवेश में वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन ये जोखिम भरी तकनीकें हैं। एक सफल ट्रेड के साथ इस तरह की जमाराशियों पर औसतन, नौसिखिया प्रति दिन लगभग $ 1-2 कमाते हैं।
चरण 4
अधिक गंभीर नौसिखिया $ 100 से शुरू होते हैं। यह पहले से ही एक गंभीर राशि है, जिसे प्रबंधित करने के लिए पहले से ही गंभीर कौशल की आवश्यकता होती है। USD / EUR मुद्रा जोड़ी के लिए दर की गति का एक बिंदु एक डॉलर तक का लाभ प्रदान करता है। सक्षम व्यापार के साथ, यह प्रति दिन लगभग $ 5-8 ला सकता है। लेकिन यह वह जगह है जहां मनोवैज्ञानिक कौशल काम में आते हैं।
चरण 5
अनुभवी व्यापारियों का दावा है कि जितनी बड़ी राशि का कारोबार होता है, उतनी ही अधिक गलतियाँ होती हैं। इस प्रकार, $ 100 से शुरू करके, आप जल्दी से अर्जित राशि को बढ़ा सकते हैं और जल्दी से कम भी कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक कारक एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, बड़े ट्रेडिंग वॉल्यूम वाले अनुभवी व्यापारी मासिक प्रारंभिक राशि का 30% से अधिक नहीं कमाते हैं।
चरण 6
यह डेमो खातों की उपस्थिति पर ध्यान देने योग्य है, जिसकी मदद से शुरुआती आभासी पैसे का उपयोग करके एक्सचेंज पर व्यापार कर सकते हैं। यह आपको वास्तविक ट्रेडिंग खातों पर इसे लागू करने के लिए आवश्यक अनुभव प्राप्त करने की अनुमति देता है। अक्सर डेमो खाताधारकों के बीच प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जहां आप वास्तविक धन प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन वहां काफी प्रतिस्पर्धा है।
चरण 7
इस प्रकार, स्टार्ट-अप पूंजी के लिए, ऐसी राशि जमा करना बेहतर है जो $ 10 से अधिक न हो। बेहतर अभी तक, पहले बोनस पूंजी या डेमो खाते पर अभ्यास करें। आपको दैनिक ट्रेडिंग की मात्रा तभी बढ़ानी होगी जब आप हर दिन प्लस में ट्रेडिंग कर रहे हों। जैसे ही असफल लेनदेन की एक श्रृंखला शुरू हुई, प्रचलन में धन की मात्रा को कम किया जाना चाहिए।
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जब किसी विचार को लागू करने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है तो अनुदान गैर-स्पष्ट और दिलचस्प समाधानों को संदर्भित करता है। कई लोगों के लिए, अनुदान वह लॉन्चिंग पैड बन जाता है, जिसके बाद एक गुणवत्तापूर्ण जीवन, करियर और आत्म-साक्षात्कार होगा। सामग्री:
जानिए क्यों है रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की आवश्यकता..
वैश्विक मुद्रा बाजार के कारोबार में डालर की हिस्सेदारी 88.3 प्रतिशत है। इसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान आता है। वहीं रुपये की हिस्सेदारी मात्र 1.7 प्रतिशत है। दुनियाभर का 40 प्रतिशत ऋण डालर में जारी किया जाता है। डालर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका के बाहर मौजूद है। डालर पर अत्यधिक निर्भरता के कारण वर्ष 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट भी दुनिया के समक्ष है। ऐसे में रुपये की वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी में वृद्धि के लिए भारतीय मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है।
हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए सरकार ने विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। अब सभी तरह के पेमेंट बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश को चौतरफा लाभ होंगे
रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का महत्व
सीमापार लेन-देन में रुपये का उपयोग भारतीय व्यापार के लिए जोखिम को कम करेगा। मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा न केवल व्यवसाय करने की लागत को कम करती है, बल्कि यह व्यवसाय के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है, जिससे भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार होता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को भी कम करता है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने में मदद करता है, लेकिन वह अर्थव्यवस्था पर एक लागत लगाता है। विदेशी मुद्रा पर निर्भरता कम करने से भारत बाहरी झटकों के प्रति कम संवेदनशील हो जाएगा।
व्यापार की अत्यधिक देनदारियों के बावजूद अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ ही होगा। भारत का अपनी मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय उधार लेने में सक्षम होना भी इसके विशिष्ट लाभ में सम्मिलित है। भारत के दीर्घकालिक विकास के लिए इसके फर्मों को विदेशियों से स्वतंत्र उधार लेने में सक्षम होना जरूरी है, ताकि वे अपने व्यवसाय को वित्तपोषित कर सकें। फर्मों द्वारा रुपये में अंतरराष्ट्रीय उधार लेना विदेशी मुद्रा की तुलना में अधिक सुरक्षित होगा। यह राजस्व स्रोत (जो रुपया है) के मुद्रा मूल्यवर्ग और कंपनियों के ऋण (जो विदेशी मुद्रा है) के मुद्रा मूल्यवर्ग के बीच एक बेमेल के जोखिम को कम करेगा।
ऐसे बेमेल जोखिम से अंततः फर्म दिवालियापन तक पहुंच सकते हैं। मुद्रा संकट की यह स्थिति थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसी अर्थव्यवस्था में देखी भी गई है। जब कोई मुद्रा पर्याप्त रूप से अंतरराष्ट्रीय हो जाती है तो उस देश के नागरिक और सरकार अपनी मुद्रा में कम ब्याज दरों पर विदेश में बड़ी मात्रा में उधार लेने में सक्षम हो जाते हैं। रुपये का व्यापक अंतरराष्ट्रीय उपयोग भारत के बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों को भी अधिक व्यवसाय प्रदान करेगा। रुपये में परिसंपत्तियों की अंतरराष्ट्रीय मांग घरेलू वित्तीय संस्थानों में व्यापार लाएगी, क्योंकि रुपये में भुगतान को अंततः भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ही नियंत्रित किया जाएगा। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश की विशिष्ट आर्थिक प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि हो जाएगी।
जब विदेशी रुपये पर भरोसा करेंगे तो वे मुद्रा विनिमय के माध्यम और विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में इसे रखने के लिए तैयार होंगे। जब कोई मुद्रा किसी अन्य देश के लिए आरक्षित मुद्रा बन जाती है तो मुद्रा जारी करने वाला देश इसे उसके पक्ष में विनिमय के लिए लीवरेज के रूप में उपयोग कर सकता है। रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास इस समय क्यों : भारत में रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास तब हो रहे हैं, जब डालर की तुलना में रुपया कमजोर हो रहा है। और रुपया को मजबूत करने के लिए आरबीआइ को भारी मात्रा में डालर की बिकवाली करनी पड़ रही है। ऐसे में आरबीआइ प्रयास कर रहा है कि जहां तक संभव हो अन्य वैसे देश जो इस समय विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में दबाव का सामना कर रहे हैं, उनसे निर्यात सेटलमेंट रुपये में हो। इस तरह के सुझाव एसबीआइ के रिसर्च में भी दी गई थी।
एसबीआइ के इन सुझावों को आरबीआइ और केंद्रीय वित्त मंत्रालय क्रियान्वित करते हुए नजर आ रहे हैं। इससे पहले पिछली सदी के सातवें दशक में कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान जैसे खाड़ी देशों में रुपया स्वीकार किया गया था। तब भारत के पूर्वी यूरोप के साथ भी भुगतान समझौते थे। हालांकि 1965 के आपपास इन व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया था। इससे स्पष्ट है कि आरबीआइ के ये प्रयास सफल हो सकते हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के पूर्व 2019 तक भारत ईरान से रुपये में या अनाज तथा दवाओं जैसे महत्वपूर्ण उत्पादों के बदले तेल खरीदता रहा है।
यूक्रेन संकट के दौरान खुद रूस ने ही भारत को स्थानीय करेंसी में व्यापार करने का आफर दिया था और भारत और रूस के बीच अभी जो पेट्रोलियम का व्यापार हो रहा है, वह चीन की करेंसी युआन के जरिये हो रहा है। लेकिन अब भारत खुद अपनी करेंसी में व्यापार कर सकता है। इस वित्त वर्ष 2022-23 में भारत द्वारा रूस से लगभग 36 अरब डालर का तेल खरीदे जाने की संभावना है। इससे स्पष्ट है कि भारत रूस को जो 36 अरब डालर देने वाला था, वह अब नहीं देना होगा। इसकी जगह भारत रूस को अपनी मुद्रा यानी रुपया में भुगतान करेगा। वहीं रूस को भारत में व्यापार के लिए भारतीय मुद्रा भंडार मिलेगा, जो अंततः भारतीय बांड के लिए स्वागतयोग्य मांग प्रदान करेगा।
किन देशों के साथ खुल सकते हैं दरवाजे
रूस के अलावा ईरान, अरब देश और यहां तक कि श्रीलंका जैसे देशों के लिए भी भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। ईरान और रूस के खिलाफ व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हैं। लिहाजा अब वे दोनों आसानी से बिना प्रतिबंधों का उल्लंघन किए भारत के साथ तीव्र व्यापार रुपये में कर सकते हैं। वहीं श्रीलंका जैसे देश, जिनका डालर खत्म हो चुका है, उनके लिए भारत से रुपये में सामान खरीदना एक वरदान जैसा होगा। कुल मिलाकर भारत का उद्देश्य है कि 2047 तक रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्थापित करना। सरकार चाहती है कि जब देश आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाए तब भारतीय करेंसी बुलंदियों पर हो।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। इससे सभी तरह के पेमेंट, बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। इस बारे में विदेश व्यापार महानिदेशलय (डीजीएफटी) ने भी एक नोटिफिकेशन जारी किया है। सरल भाषा में कहें तो यह रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया की तरफ भारत सरकार का पहला कदम है।अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद लगातार कमजोर हो रहे रुपये और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के बीच आरबीआइ ने इस ओर कदम बढ़ाएं हैं। अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया अक्टूबर में 1.8 प्रतिशत फिसला है, जबकि 2022 में अब तक रुपया 11 प्रतिशत कमजोर हुआ है। क्या है रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण: रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा का उपयोग किया जाता है। इसमें आयात-निर्यात के लिए रुपये को प्रोत्साहन देने के अतिरिक्त अन्य चालू खाता एवं पूंजी खाता लेन-देन में भी इसका उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।जहां तक रुपये का संबंध है तो यह चालू खाते में पूरी तरह परिवर्तनीय है, लेकिन पूंजी खाते में आंशिक रूप से। चालू और पूंजी खाता भुगतान संतुलन के दो घटक हैं। चालू खाते के घटकों में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात और आयात तथा विदेश में निवेश से आय शामिल हैं। वहीं पूंजी खाते के घटकों में सभी तरह के विदेशी निवेश और एक देश की सरकार द्वारा दूसरे देश को ऋण देना शामिल हैं। इस तरह तकनीकी तौर पर रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का अर्थ है “पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता को अपनाना”। पूरी तरह से परिवर्तनीय पूंजी खाते का मतलब है कि विदेश में किसी भी संपत्ति को खरीदने के लिए आप कितने रुपये को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित कर सकते हैं, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं हो।