प्रकार के व्यापारियों

औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे?
जीएसटी का छोटे बिज़नेस और छोटे व्यापारियों पर क्या असर पड़ा है?
जीएसटी (एक देश - एक कर) व्यवस्था को लागू हुए तीसरा वर्ष हो प्रकार के व्यापारियों चूका है इसने सभी प्रकार के करों को हटाकर एक कर कर दिया है जिससे व्यापार में पारदर्शिता आयी है और कर देना आसान हो गया है। पेपर वर्क पूरी तरह से ख़तम हो गया है और सभी व्यवस्था ऑनलाइन वो भी निह शुल्क हो चुकी है। जीएसटी लागू होने के बाद जितनी भी परेशानियां थी जीएसटी परिषद् और सरकार ने निरंतर निगरानी कर अब तक कई संसोधन कर इसे व्यवसायी के अनुरूप बना दिया है।
वैसे तो घर के पास वाली दुकान से सामान लेना हमेशा से ही लोगों के लिए सुविधाजनक रहा है क्योंकि पहला तो भावनात्मक कारण है दूसरा ज़रूरत पड़ने पर सामान उधार में भी मिल जाता है जिसे बाद में भी चुकाया जा सकता है। छोटी दुकान चाहे वो किराना की हो, नाई की हो या छोटा सा टी-स्टाल और सिगरेट, पैन मसाला प्रकार के व्यापारियों की दुकान हो हमे हर गली मोहल्ले में मिल जाती है। भावनात्मकता और आपसी जुड़ाव के कारण ही रिटेल दिग्गजों और ग्लोबल इन्वेस्टरों के प्रतिस्पर्धा के बीच भी ये दुकाने न केवल बची हुई है अपितु आगे भी बढ़ रही हैं।
क्या मुश्किलें आ रही थी दुकानदारों को?
जीएसटी लागू हुआ तो जानकारी की कमी के कारण व्यापार पटरी से उतर गया जो जिन डीलर ने जीएसटी में रजिस्टर कराया था वो भी रेट, एच. एस. एन., कोड सर्विस चार्ज को लेकर आशंका थी।
व्यापारी जिनका माल विदेशों से आता है उनके आर्डर रुक गए क्योंकि जीएसटी अधिकरीयों को पता ही नहीं था की चार्ज कितना लेना है।
सहूलियत से हुई परेशानी
छोटे कारोबारियों को 20 लाख की रियायत तो मिल गयी पर बड़े कारोबारी को रिवर्स चार्ज चुकाने पर इनपुट क्रेडिट (टैक्स पर छूट) नहीं मिल रहा है। ऐसे में बड़े कारोबारी छोटे से कारोबार करने में बच रहे जिससे छोटे कारोबारियों को माल की अवाक नहीं मिल रही।
इसका सबसे बड़ा नेगेटिव इफ़ेक्ट साड़ी उद्योग पर पड़ा जिसका कारोबार 100 करोड़ से सीधे 25 करोड़ आ गया।
जूता उद्योग
500 रुपए के अंदर आने वाले जूते जिन पर टैक्स नहीं लगता था अब उन पर 5% जीएसटी लग रहा है। ऐसे में लगत बढ़ी है जिसका असर बाज़ारों पर भी दिख रहा है।
बड़े कारोबारी जो की ओरिजनल पार्ट्स सप्लाई करते हैं उन पर जीएसटी लगने से फायदा हुआ है क्योंकि इससे उनकी कर की दर कम हो गयी है। वहीँ बात करें उत्पादनकर्ता की तो उन्हें एक्साइज़ पर मिलने वाली छूट को खत्म कर दिया है।
INDORE NEWS- अनाज, दाल, मैदा, आटा आदि पर GST का व्यापारियों द्वारा विरोध
इंदौर। जीएसटी काउंसिल ने बीते सप्ताह हुई बैठक के बाद गैर ब्रांडेड यानी लेबल वाली खाद्य सामग्री को भी पांच प्रतिशत जीएसटी के दायरे में ले लिया है। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद हुई इस घोषणा का विरोध शुरू हो गया है। 18 जुलाई से नए नियम को लागू प्रकार के व्यापारियों करने की बात कही गई है। हालांकि नए नियमों को लेकर अब भी अधिसूचना जारी नहीं की गई है। निर्णय के खिलाफ व्यापारी एकजुट हो गए हैं। मंगलवार को इंदौर व्यापारी संगठनों ने बैठक बुलाकर महंगाई बढ़ने पर चिंता जताई।
व्यापारी वर्ग डिजिटल बनने को उत्सुक, लेकिन विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां बड़ी बाधा
नई दिल्ली। भारत के बाजार (India market) में ई-कॉमर्स (e-commerce) का तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। बड़े से बड़े इंटरनेशनल ब्रांड (big international brands) की चीजें आसानी से ऑनलाइन मिल रही हैं लेकिन भारत में तैयार और दुकानों पर मिलने वाला लोकल समान ऑनलाइन (local stuff online) मिलने में अभी मुश्किलें आ रही है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) (Confederation of All India Traders (CAIT)) की रिसर्च शाखा ने रविवार को अपने सर्वे रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है।
कैट के रिसर्च शाखा कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देशभर के व्यापारियों ने ई-कॉमर्स को व्यापार के एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में अपनाने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन ज्यादातर व्यापारियों को लगता है कि ऑनलाइन माल बेचने के लिए विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों की जारी कुप्रथाओं और नियमों के घोर उल्लंघन तथा ई-कॉमर्स पर व्यापार करने के लिए अनिवार्य जीएसटी पंजीकरण का होना प्रकार के व्यापारियों एक बड़ी रुकावट है। दरअसल, वर्ष 2021 में भारत में 55 बिलियन प्रकार के व्यापारियों डॉलर का ई-कॉमर्स व्यापार हुआ, जिसका वर्ष 2026 तक 120 बिलियन डॉलर तथा वर्ष 2030 तक 350 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।
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कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी ने हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों के टियर-2 और टियर-3 जैसे 40 शहरों में एक ऑनलाइन सर्वे किया है। इस सर्वे में करीब 5 हजार व्यापारियों को शामिल किया गया, जिसमें यह बात निकल कर सामने आई है। कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि ऑनलाइन सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 78 फीसदी व्यापारियों ने कहा कि भारत में व्यापारियों के लिए अपने मौजूदा कारोबार के अलावा ई-कॉमर्स को भी व्यापार का एक अतिरिक्त तरीका बनाना जरूरी है, जबकि 80 फीसदी व्यापारियों का कहना है कि ई-कॉमर्स पर व्यापार करने के लिए जीएसटी पंजीकरण की अनिवार्यता छोटे व्यापारियों के लिए एक बड़ी बाधा है। वहीं, 92 फीसदी छोटे व्यापारियों ने कहा कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां ऑनलाइन कारोबार के जरिए देश के रिटेल व्यापार पर नियमों एवं कानूनों की खुली धज्जियां उड़ाते हुए ग्राहकों को भरमा रही हैं।
फुटकर व्यापारी किसे कहते हैं ?
फुटकर व्यापारी से तात्पर्य ऐसे व्यापारी से है, जो थोडी़ -थोड़ी मात्रा में थोक व्यापारियों से माल खरीदकर उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार थोडी़ -थोडी़ मात्रा में विक्रय करता रहता है फुटकर व्यापारी कहते हैं।
फुटकर व्यापार का शाब्दिक अर्थ वस्तुओं को टुकड़ों में बेचने से है यह शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द से लिया गया है इसमें का अर्थ पुन: या बार-बार का अर्थ बांटने या देने से है इस प्रकार वस्तुओं के वृहत् संग्रह में से छोटी-छोटी मात्रा में बार-बार वस्तुओं को देना कहा जाता है।
फुटकर व्यापार की परिभाषा
‘‘विभिन्न प्रकार के पदार्थों को उपभोक्ताओं के हाथों स्वल्प प्रकार के व्यापारियों मात्रा में बेचना ही फुटकर व्यापार कहलाता है’’।
1. अमरीकन परिभाषा समिति-‘‘फुटकर व्यापार में वे सब क्रियाएं आती हैं, जो अंतिम उपभोक्ता को बेचने में सहायक होती है’’।
2. कण्डिफ एवं स्टिल के अनुसार-‘‘फुटकर व्यापार में वे सब क्रियाएं शामिल की जाती हैं, जो अंतिम उपभोक्ताओं को सीधे बेचने से संबद्ध होती है’’।
3. मैकार्थी के शब्दों में -‘‘गृहस्थ को अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री करना ही फुटकर व्यापार कहलाता है’’।
अत: उपभोक्ताओं को छोटी-छोटी मात्रा में माल विक्रय करना फुटकर व्यापार है और जो भी व्यक्ति या संस्था इस कार्य को सम्पन्न करती है, उसे फुटकर व्यापारी कहते है।
औपनिवेशिक शहर
''व्हाइट'' और ''प्रकार के व्यापारियों ब्लैक'' टाउन शब्दों का क्या महत्व था?
- ''व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्द नगर संरचना में नस्ली भेदभाव के प्रतीक थे। अंग्रेज़ गोरी चमड़ी के होते थे इसलिए उन्हें व्हाइट (White) कहा जाता था, जबकि भारतीय को काले (Black) लोग कहा जाता था।
- अंग्रेज़ गोरे लोग दुर्गों के अंदर बनी बस्तियों में रहते थे, वही दूसरी ओर, भारतीय व्यापारी, कारीगर और मज़दूर प्रकार के व्यापारियों इन किलों से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे।
- अंग्रेज़ों और प्रकार के व्यापारियों भारतीयों के लिए अलग-अलग मकान (क़्वार्टस) बनाए गए थे। दुर्ग के भीतर रहने का आधार रंग और धर्म था। अलग रहने की यह नीति शुरू प्रकार के व्यापारियों से ही अपनाई गई थी।
- सरकारी रिकार्ड्स में भी भारतीयों की बस्ती को "ब्लैक टाउन" तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को "व्हाइट टाउन" बताया गया हैं। नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरू से ही दिखता है। प्रकार के व्यापारियों यह उस समय और भी तीखा हो गया जब अंग्रेज़ों का राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो गया। 'व्हाइट टाउन' प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था का केंद्र भी था।