पाठ्यचर्या

स्टोकेस्टिक क्या है

स्टोकेस्टिक क्या है
I) सिंगुलरिटी (Singularity) : यह किसी ब्लैक होल का केंद्र बिंदु होता है, जहाँ उस ब्लैक होल का संपूर्ण द्रव्यमान केंद्रित होता है। जब कोई खगोलीय पिंड अत्यधिक संपीड़ित होकर एक बिंदु जैसी आकृति ग्रहण कर लेता है, तो इस संरचना का निर्माण होता है। इसका घनत्व, द्रव्यमान तथा गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है।

रहस्यमयी ब्लैक होल्स और गुरुत्वीय तरंगें

हाल ही में, भारत में वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों का रहस्य सुलझाने के लिये एक नए रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम का विकास किया। इसके माध्यम से पूर्ववर्ती रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम की तुलना में अधिक सटीक गणना की जा सकेगी।

गुरुत्वीय रेडियोमेट्री (Gravitational Radiometry)

  • ‘ गुरुत्वीय रेडियोमेट्री ’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत गुरुत्वीय तरंगों की खोज व उनका मापन किया जाता है। इसी प्रक्रिया को अधिक तीव्र व सटीक बनाने के लिये नवीन रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम का विकास किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड में असंख्य मात्रा में गुरुत्वीय तरंगें उपस्थित हैं।
  • जब अत्याधुनिक दूरदर्शी के माध्यम से गुरुत्वीय तरंगों को डिटेक्ट किया जाता है तो इस प्रक्रिया में दूरदर्शी एक सीमित परास में ही गुरुत्वीय तरंगों पर फोकस कर पाती है। किंतु वास्तव में अन्य असंख्य गुरुत्वीय तरंगें भी उसी समय पृष्ठभूमि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। पृष्ठभूमि में उपस्थित रहने वाली इन गुरुत्वीय तरंगों को ‘स्टोकेस्टिक गुरुत्वीय तरंगें’ (Stochastic Gravitational Wave–SGW) तथा इस पृष्ठभूमि को ‘स्टोकेस्टिक गुरुत्वीय तरंग पृष्ठभूमि’ (Stochastic Gravitational Wave Background) कहा जाता है।
  • भारतीय शोधकर्ताओं के मुख्य सहयोग से विकसित की गई इस नई रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम के माध्यम से न सिर्फ गुरुत्वीय तरंगों के रहस्य को समझने में मदद मिलेगी बल्कि गुरुत्वीय तरंगों के स्रोत का पता लगाने में भी सहायता मिलेगी।

गुरुत्वीय तरंगें (Gravitational Waves)

  • ‘ गुरुत्वीय तरंगें’ ब्रह्मांड में चलने वाली अदृश्य लहरें होती हैं, जो ब्रह्मांड में सदैव उपस्थित रहती हैं। जब ये तरंगें किसी खगोलीय पिंड से गुजरती हैं तो उस पिंड में हल्का-सा खिंचाव या संकुचन होता है, लेकिन यह परिघटना नग्न आँखों से नहीं देखी जा सकती है। इस परिघटना का प्रेक्षण करने के लिये वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर कुछ ‘गुरुत्वीय तरंग वेधशालाओं’ का निर्माण किया है, जो पृथ्वी पर विभिन्न देशों में उपस्थित हैं।
  • यद्यपि वैज्ञानिक इस विषय पर एकदम स्पष्ट नहीं हैं कि गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति कैसे होती है, तथापि निम्नलिखित कुछ घटनाओं को गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति का स्रोत माना जाता है–
    • सुपरनोवा में विस्फोट होना
    • किन्हीं खगोलीय पिंडों का आपस में टकराना
    • दो बड़े तारों का एक-दूसरे के सापेक्ष चक्कर लगाना
    • दो ब्लैक होल्स का एक-दूसरे के सापेक्ष घूमना तथा आपस में विलीन हो जाना, इत्यादि।

    क्या है ब्लैक होल? (What is Black Hole?)

    • ‘ब्लैक होल’ ब्रह्मांड में उपस्थित एक ऐसा खगोलीय पिंड होता है, जिसका द्रव्यमान, घनत्व और गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है। वस्तुतः वर्ष 1916 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षिकता का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया था, इस दौरान उन्होंने ‘ब्लैक होल्स’ तथा ‘गुरुत्वीय तरंगों’ के अस्तित्व की परिकल्पना भी की थी। लेकिन ‘ब्लैक होल’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1967 में एक अमेरिकी भौतिकविद् जॉन आर्किबैल्ड व्हीलर ने किया था।
    • इनकी उत्पत्ति के विषय में अभी तक वैज्ञानिक समुदाय किसी साझा निष्कर्ष पर तो नहीं पहुँच सका है, किंतु विभिन्न अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता से इनके बारे में कुछ उपयोगी जानकारी जुटाने में ज़रूर सफल रहा है। इनके अनुसार, ब्लैक होल्स का घनत्व व आकर्षण बल इतना अधिक होता है कि प्रकाश किरण भी इनके प्रभाव क्षेत्र में आने के पश्चात् परावर्तित नहीं हो पाती है, इसलिये ब्लैक होल्स को देख पाना संभव नहीं होता है।

    ब्लैक होल्स के प्रकार (Types of Black Holes)

    1. द्रव्यमान के आधार पर ब्लैक होल्स 4 प्रकार के होते हैं–

    I) प्राथमिक ब्लैक होल्स (Primordial Black Hole) : इनका द्रव्यमान ‘पृथ्वी’ के द्रव्यमान के ‘बराबर या उससे कम’ होता है।

    II) स्टेलर द्रव्यमान ब्लैक होल्स (Stellar Mass Black Holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘4 से 15 गुणा’ अधिक होता है।

    III) मध्यवर्ती द्रव्यमान ब्लैक होल्स (Intermediate mass black holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘कुछ हज़ार गुणा’ अधिक होता है।

    IV) विशालकाय ब्लैक होल्स (Supermassive black holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘कुछ मिलियन-बिलियन गुणा’ अधिक होता है।

    2. अपने अक्ष पर घूर्णन तथा विद्युत आवेश के आधार पर ब्लैक होल्स 3 प्रकार के होते हैं–

    I) श्वार्ज़्सचाइल्ड ब्लैक होल्स (Schwarzschild Black Holes) : ये ब्लैक होल्स ना तो अपने अक्ष पर घूर्णन करते हैं और ना ही इनके पास कोई विद्युत आवेश होता है। इन्हें ‘स्थिर ब्लैक होल्स’ (Static Black I) Holes) भी कहते हैं।

    II) कर ब्लैक होल्स (Kerr Black Holes) : ये ब्लैक होल्स अपने अक्ष पर घूर्णन तो करते हैं, लेकिन इनके पास कोई विद्युत आवेश नहीं होता है।

    III) आवेशित ब्लैक होल्स (Charged Black Holes) : ये ब्लैक होल्स पुनः 2 प्रकार के होते हैं–

    i) रेसनर-नॉर्डस्ट्रॉम ब्लैक होल्स (Reissner-Nordstrom black hole) : ये ब्लैक होल्स आवेशित होते हैं, लेकिन अपने अक्ष पर घूर्णन नहीं करते हैं।

    ii) कर-न्यूमैन ब्लैक होल्स (Kerr-Newman Black Holes) : ये ब्लैक होल्स आवेशित भी होते हैं और अपने अक्ष पर घूर्णन भी करते हैं।

    ब्लैक होल के तत्त्व (Elements of the Black Hole)

    Nordstrom

    I) सिंगुलरिटी (Singularity) : यह किसी ब्लैक होल का केंद्र बिंदु होता है, जहाँ उस ब्लैक होल का संपूर्ण द्रव्यमान केंद्रित होता है। जब कोई खगोलीय पिंड अत्यधिक संपीड़ित होकर एक बिंदु जैसी आकृति ग्रहण कर लेता है, तो इस संरचना का निर्माण होता है। इसका घनत्व, द्रव्यमान तथा गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है।

    II) इवेंट होराइज़न (Event Horizon) : सिंगुलरिटी के चारों ओर उपस्थित उसके गुरुत्वाकर्षण का वह प्रभाव क्षेत्र, जिसके संपर्क में आने के पश्चात् प्रकाश भी वापस नहीं लौट सकता, ‘इवेंट होराइज़न’ कहलाता है। अर्थात् ‘इवेंट होराइज़न’ सिंगुलरिटी की गुरुत्वीय सीमा को दर्शाता है। स्पष्ट है कि इवेंट होराइज़न की बाह्यतम सीमा कोई भौतिक सतह नहीं, बल्कि आभासी सतह होती है।

    III) श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या (Schwarzschild Radius) : सिंगुलरिटी से इवेंट होराइज़न के बाह्यतम बिंदु तक की सीधी दूरी ‘श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या’ कहलाती है। अर्थात् ब्लैक होल के केंद्र बिंदु से बाहर की ओर वह दूरी, जहाँ से प्रकाश भी वापस नहीं लौट पाता हो, ‘श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या’ कहलाती है।

    black-hole1

    IV) एक्रीशन डिस्क (Accretion Disc) : इवेंट होराइज़न के चारों ओर भी सिंगुलरिटी का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उपस्थित होता है, लेकिन वह श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्यीय क्षेत्र की तुलना में कम शक्तिशाली होता है। अतः इवेंट होराइज़न के चारों तरफ विभिन्न प्रकार के पदार्थ, यथा– गैसें, खगोलीय पिंडों के टुकड़े, धूल इत्यादि चक्कर लगा रहे होते हैं। इससे इवेंट होराइज़न के बाह्य परिधीय क्षेत्र में एक डिस्क रूपी संरचना का निर्माण हो जाता है, यही संरचना स्टोकेस्टिक क्या है ‘एक्रीशन डिस्क’ कहलाती है।

    V) सापेक्षिक जेट (Relativistic Jet) : यह विशालकाय ब्लैक होल द्वारा उत्पन्न किया जाने वाला जेट होता है, जो ब्लैक होल के केंद्र से बाहर की ओर गतिमान होता है। इसकी गति की दिशा ब्लैक होल के घूर्णन अक्ष के सामानांतर होती है। इसका निर्माण ब्लैक होल्स के गुरुत्वीय क्षेत्र में उपस्थित रेडिएशन, धूल के कणों, गैसों आदि से होता है। इस जेट में उपस्थित पदार्थों की गति प्रकाश के वेग के सामान होती है। इन सापेक्षिक जेट्स को ब्रह्मांड में सबसे तेज़ी से गति करने वाली ‘कॉस्मिक किरणों’ की उत्पत्ति का स्रोत भी माना जाता है।

    ब्लैक होल्स तथा गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन संबंधी वेधशालाएँ

    रहस्यमयी ब्लैक होल्स और गुरुत्वीय तरंगें

    हाल ही में, भारत में वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों का रहस्य सुलझाने के लिये एक नए रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम का विकास किया। इसके माध्यम से पूर्ववर्ती रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम की तुलना में अधिक सटीक गणना की जा सकेगी।

    गुरुत्वीय रेडियोमेट्री (Gravitational Radiometry)

    • ‘ गुरुत्वीय रेडियोमेट्री ’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत गुरुत्वीय तरंगों की खोज व उनका मापन किया जाता है। इसी प्रक्रिया को अधिक तीव्र व सटीक बनाने के लिये नवीन रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम का विकास किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड में असंख्य मात्रा में गुरुत्वीय तरंगें उपस्थित हैं।
    • जब अत्याधुनिक दूरदर्शी के माध्यम से गुरुत्वीय तरंगों को डिटेक्ट किया जाता है तो इस प्रक्रिया में दूरदर्शी एक सीमित परास में ही गुरुत्वीय तरंगों पर फोकस कर पाती है। किंतु वास्तव में अन्य असंख्य गुरुत्वीय तरंगें भी उसी समय पृष्ठभूमि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। पृष्ठभूमि में उपस्थित रहने वाली इन गुरुत्वीय तरंगों को ‘स्टोकेस्टिक गुरुत्वीय तरंगें’ (Stochastic Gravitational Wave–SGW) तथा इस पृष्ठभूमि को ‘स्टोकेस्टिक गुरुत्वीय तरंग पृष्ठभूमि’ (Stochastic Gravitational Wave Background) कहा जाता है।
    • भारतीय शोधकर्ताओं के मुख्य सहयोग से विकसित की गई इस नई रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम के माध्यम से न सिर्फ गुरुत्वीय तरंगों के रहस्य को समझने में मदद मिलेगी बल्कि गुरुत्वीय तरंगों के स्रोत का पता लगाने में भी सहायता मिलेगी।

    गुरुत्वीय तरंगें (Gravitational Waves)

    • ‘ गुरुत्वीय तरंगें’ ब्रह्मांड में चलने वाली अदृश्य लहरें होती हैं, जो ब्रह्मांड में सदैव उपस्थित रहती हैं। जब ये तरंगें किसी खगोलीय पिंड से गुजरती हैं तो उस पिंड में हल्का-सा खिंचाव या संकुचन होता है, लेकिन यह परिघटना नग्न आँखों से नहीं देखी जा सकती है। इस परिघटना का प्रेक्षण करने के लिये वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर कुछ ‘गुरुत्वीय तरंग वेधशालाओं’ का निर्माण किया है, जो पृथ्वी पर विभिन्न देशों में उपस्थित हैं।
    • यद्यपि वैज्ञानिक इस विषय पर एकदम स्पष्ट नहीं हैं कि गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति कैसे होती है, तथापि निम्नलिखित कुछ घटनाओं को गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति का स्रोत माना जाता है–
      • सुपरनोवा में विस्फोट होना
      • किन्हीं खगोलीय पिंडों का आपस में टकराना
      • दो बड़े तारों का एक-दूसरे के सापेक्ष चक्कर लगाना
      • दो ब्लैक होल्स का एक-दूसरे के सापेक्ष घूमना तथा आपस में विलीन हो जाना, इत्यादि।

      क्या है ब्लैक होल? (What is Black Hole?)

      • ‘ब्लैक होल’ ब्रह्मांड में उपस्थित एक ऐसा खगोलीय पिंड होता है, जिसका द्रव्यमान, घनत्व और गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है। वस्तुतः वर्ष 1916 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षिकता का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया था, इस दौरान उन्होंने ‘ब्लैक होल्स’ तथा ‘गुरुत्वीय तरंगों’ के अस्तित्व की परिकल्पना भी की थी। लेकिन ‘ब्लैक होल’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1967 में एक अमेरिकी भौतिकविद् जॉन आर्किबैल्ड व्हीलर ने किया था।
      • इनकी उत्पत्ति के विषय में अभी तक वैज्ञानिक समुदाय किसी साझा निष्कर्ष पर तो नहीं पहुँच सका है, किंतु विभिन्न अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता से इनके बारे में कुछ उपयोगी जानकारी जुटाने में ज़रूर सफल रहा है। इनके अनुसार, ब्लैक होल्स का घनत्व व आकर्षण बल इतना अधिक होता है कि प्रकाश किरण भी इनके प्रभाव क्षेत्र में आने के पश्चात् परावर्तित नहीं हो पाती है, इसलिये ब्लैक होल्स को देख पाना संभव नहीं होता है।

      ब्लैक होल्स के प्रकार (Types of Black Holes)

      1. द्रव्यमान के आधार पर ब्लैक होल्स 4 प्रकार के होते हैं–

      I) प्राथमिक ब्लैक होल्स (Primordial Black Hole) : इनका द्रव्यमान ‘पृथ्वी’ के द्रव्यमान के ‘बराबर या उससे कम’ होता है।

      II) स्टेलर द्रव्यमान ब्लैक होल्स (Stellar Mass Black Holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘4 से 15 गुणा’ अधिक होता है।

      III) मध्यवर्ती द्रव्यमान ब्लैक होल्स (Intermediate mass black holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘कुछ हज़ार गुणा’ अधिक होता है।

      IV) विशालकाय ब्लैक होल्स (Supermassive black holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘कुछ मिलियन-बिलियन गुणा’ अधिक होता है।

      2. अपने अक्ष पर घूर्णन तथा विद्युत आवेश के आधार पर ब्लैक होल्स 3 प्रकार के होते हैं–

      I) श्वार्ज़्सचाइल्ड ब्लैक होल्स (Schwarzschild Black Holes) : ये ब्लैक होल्स ना तो अपने अक्ष पर घूर्णन करते हैं और ना ही इनके पास कोई विद्युत आवेश होता है। इन्हें ‘स्थिर ब्लैक होल्स’ (Static Black I) Holes) भी कहते हैं।

      II) कर ब्लैक होल्स (Kerr Black Holes) : ये ब्लैक होल्स अपने अक्ष पर घूर्णन तो करते हैं, लेकिन इनके पास कोई विद्युत आवेश नहीं होता है।

      III) आवेशित ब्लैक होल्स (Charged Black Holes) : ये ब्लैक होल्स पुनः 2 प्रकार के होते हैं–

      i) रेसनर-नॉर्डस्ट्रॉम ब्लैक होल्स (Reissner-Nordstrom black hole) : ये ब्लैक होल्स आवेशित होते हैं, लेकिन अपने अक्ष पर घूर्णन नहीं करते हैं।

      ii) कर-न्यूमैन ब्लैक होल्स (Kerr-Newman Black Holes) : ये ब्लैक होल्स आवेशित भी होते हैं और अपने अक्ष पर घूर्णन भी करते हैं।

      ब्लैक होल के तत्त्व (Elements of the Black Hole)

      Nordstrom

      I) सिंगुलरिटी (Singularity) : यह किसी ब्लैक होल का केंद्र बिंदु होता है, जहाँ उस ब्लैक होल का संपूर्ण द्रव्यमान केंद्रित होता है। जब कोई खगोलीय पिंड अत्यधिक संपीड़ित होकर एक बिंदु जैसी आकृति ग्रहण कर लेता है, तो इस संरचना का निर्माण होता है। इसका घनत्व, द्रव्यमान तथा गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है।

      II) इवेंट होराइज़न (Event Horizon) : सिंगुलरिटी के चारों ओर उपस्थित उसके गुरुत्वाकर्षण का वह प्रभाव क्षेत्र, जिसके संपर्क में आने के पश्चात् प्रकाश भी वापस नहीं लौट सकता, ‘इवेंट होराइज़न’ कहलाता है। अर्थात् ‘इवेंट होराइज़न’ सिंगुलरिटी की गुरुत्वीय सीमा को दर्शाता है। स्पष्ट है कि इवेंट होराइज़न की बाह्यतम सीमा कोई भौतिक सतह नहीं, बल्कि आभासी सतह होती है।

      III) श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या (Schwarzschild Radius) : सिंगुलरिटी से इवेंट होराइज़न के बाह्यतम बिंदु तक की सीधी दूरी ‘श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या’ कहलाती है। अर्थात् ब्लैक होल के केंद्र बिंदु से बाहर की ओर वह दूरी, जहाँ से प्रकाश भी वापस नहीं लौट पाता हो, ‘श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या’ कहलाती है।

      black-hole1

      IV) एक्रीशन डिस्क (Accretion Disc) : इवेंट होराइज़न के चारों ओर भी सिंगुलरिटी का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उपस्थित होता है, लेकिन वह श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्यीय क्षेत्र की तुलना में कम शक्तिशाली होता है। अतः इवेंट होराइज़न के चारों तरफ विभिन्न प्रकार के पदार्थ, यथा– गैसें, खगोलीय पिंडों के टुकड़े, धूल इत्यादि चक्कर लगा रहे होते हैं। इससे इवेंट होराइज़न के बाह्य परिधीय क्षेत्र में एक डिस्क रूपी संरचना का निर्माण हो जाता है, यही संरचना ‘एक्रीशन डिस्क’ कहलाती है।

      V) सापेक्षिक जेट (Relativistic Jet) : यह विशालकाय ब्लैक होल द्वारा उत्पन्न किया जाने वाला जेट होता है, जो ब्लैक होल के केंद्र से बाहर की ओर गतिमान होता है। इसकी गति की दिशा ब्लैक होल के घूर्णन अक्ष के सामानांतर होती है। इसका निर्माण ब्लैक होल्स के गुरुत्वीय क्षेत्र में उपस्थित रेडिएशन, धूल के कणों, गैसों आदि से होता है। इस जेट में उपस्थित पदार्थों की गति प्रकाश के वेग के सामान होती है। इन सापेक्षिक जेट्स को ब्रह्मांड में सबसे तेज़ी से गति करने वाली ‘कॉस्मिक किरणों’ की उत्पत्ति का स्रोत भी माना जाता है।

      ब्लैक होल्स तथा गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन संबंधी वेधशालाएँ

      SR Full Form Hindi

      दक्षिणी रेलवे (SR) भारतीय रेलवे के क्षेत्रों में से एक है, जिसका मुख्यालय चेन्नई, तमिलनाडु में है। दक्षिणी रेलवे (SR)स्टोकेस्टिक क्या है में निम्नलिखित सात विभाग हैं: चेन्नई, मदुरै, तिरुचिरापल्ली, सलेम, पलक्कड़, कोच्चि और तिरुवनंतपुरम। इसमें तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के छोटे हिस्से शामिल हैं।

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      • SR full form in Rail Transport
      • SR full form in Transport & Travel

      Sr Full Form Hindi in Language & Linguistics

      Definition : Senior

      Sr Meaning Hindi (Academic & Science)

      सीनियर के लिए सीनियर खड़ा है। यह संदर्भित हो सकता है
      1, कोई है जो एक क्षेत्र में व्यापक अनुभव है।
      2, पिता के नाम के बाद उपयोग किया जाने वाला शीर्षक जब उसके बेटे को वही नाम दिया जाता है।
      जैसे: रॉबर्ट डाउनी सीनियर

      SR Full Form Hindi in Roads & Highways

      Definition : State Route

      SR Meaning Hindi (Transport & Travel)

      स्टेट रूट (SR) संयुक्त राज्य अमेरिका में राजमार्ग हैं। राज्य मार्गों को आमतौर पर राज्य-बनाए रखा जाता है।

      sr Full Form Hindi in Units

      Definition : Steradian

      sr Meaning Hindi (Academic & Science)

      Steradian (sr) ठोस कोण की SI इकाई है।

      SR Full Form Hindi in Physics

      Definition : Stochastic Resonance

      SR Meaning Hindi (Academic & Science)

      स्टोचैस्टिक रेजोनेंस (एसआर) एक घटना है जिसमें एक नॉनलाइनर सिस्टम को आवधिक रूप से संशोधित सिग्नल के अधीन किया जाता है, जो कि सामान्य रूप से अनिर्वचनीय होने के लिए कमजोर होता है, लेकिन कमजोर निर्धारक सिग्नल और स्टोकेस्टिक शोर के बीच प्रतिध्वनि के कारण यह पता लगाने योग्य हो जाता है।

      SR Full Form Hindi in Anatomy & Physiology

      Definition : Superior Rectus

      SR Meaning Hindi (Medical)

      सुपीरियर रेक्टस (एसआर) एक आंख की मांसपेशी है, जो ऊपर जाती है, आंख को नियंत्रित करती है।

      SR Full Form Hindi in Electrical

      Definition : Saturable Reactor

      SR Meaning Hindi (Academic & Science)

      सैटरटेबल रिएक्टर (एसआर) एक आयरन-कोर इंसट्रक्टर है जिसका इंडक्शन कोर की पारगम्यता को बदलकर किया जा सकता है।

      SR Full Form Hindi in Physics

      Definition : Synchrotron Radiation

      SR Meaning Hindi (Academic & Science)

      सिंक्रोट्रॉन विकिरण (एसआर) विकिरण को दिया जाने वाला नाम है जो बहुत तेज गति से चार्ज होने पर होता है।

      SR Full Form Hindi in TV & Radio

      Definition : Saarländischer Rundfunk - Saarland Broadcasting स्टोकेस्टिक क्या है स्टोकेस्टिक क्या है

      SR Meaning Hindi (News & Entertainment)

      सारलैंड ब्रॉडकास्टिंग (जर्मन: Saarländischer Rundfunk, SR) एक सार्वजनिक रेडियो और टेलीविजन प्रसारणकर्ता है, जो सारलैंड, जर्मनी में सेवारत है।

      SR Full Form Hindi in Astronomy & Space Science

      Definition : Strehl Ratio

      SR Meaning Hindi (Academic & Science)

      स्ट्रील अनुपात (एसआर) ऑप्टिकल छवि निर्माण की गुणवत्ता का एक उपाय है।

      SR Full Form Hindi in Airline Codes

      Definition : Swissair

      SR Meaning Hindi (Transport & Travel)

      Swissair (IATA कोड: SR, ICAO: SWR, Callsign: SWISSAIR) स्विट्जरलैंड की राष्ट्रीय एयरलाइन थी।

      MoHFW के दो विशेषज्ञों का बड़ा दावा, इस महीने तक खत्म होगा Coronavirus in India

      नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस महामारी ( Coronavirus in India ) के खात्मे को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ( MoHFW ) के दो सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक देश में COVID-19 का आतंक मध्य सितंबर तक खत्म हो सकता है। विशेषज्ञों ने इसके पीछे गणितीय मॉडल ( Mathematical Model ) आधारित विश्लेषण के इस्तेमाल का दावा किया है। अगर यह दावे सच साबित होते हैं तो देश के लिए यह अच्छी और बुरी दोनों खबर ला सकता है।

      coronavirus end expected in mid september

      गणितीय मॉडल के विश्लेषणों के मुताबिक जब कोरोना वायरस मरीजों ( Coronavirus Cases in India ) की तादाद और इस महामारी ( Coronavirus Pandemic ) से रिकवर हुए लोगों की संख्या बराबर हो जाएगी, तब 100 फीसदी गुणांक पहुंच जाएगा और खत्म हो जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय में सार्वजनिक स्वास्थ्य के उप महानिदेशक ( DGHS ) डॉ. अनिल कुमार और उप सहायक निदेशक (कुष्ठ) ( DGHS ) द्वारा तैयार किया गया गया विश्लेषण एपिडेमियोलॉजी इंटरनेशनल नामक ऑनलाइन जर्नल में छपा हुआ है।

      दोनों अधिकारियों ने बेली के मैथमेटिकल मॉडल का इस्तेमाल किया। यह स्टोकेस्टिक मैथमेटिकल मॉडल, महामारी के कुल आकार के वितरण का ध्यान में रखते हुए विश्लेषण करता है। इसके अंतर्गत संक्रमण और निष्कासन दोनों होते हैं। डॉक्यूमेंट के मुताबिक भारत में कोरोना वायरस महामारी वास्तविक रूप से 2 मार्च को शुरू हुई थी। उस वक्त से लेकर अब तक इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। विशेषज्ञों ने इसका विश्लेषण करने के लिए 1 मार्च से 19 मई के बीच के कोरोना वायरस का डाटा एनालाइज किया था।

      बनारस में कोरोना वायरस से हुई चौथी मौत

      इस रिसर्च पेपर के मुताबिक भारत में बेली के रिलेटिव रिमूवल रेट, कोरोना वायरस का लीनियर रिग्रेशन एनालिसिस दिखाता है, जिसमें सितंबर मध्य तक यह रेखा 100 तक पहुंच रही है।

      उन्होंने इस संबंध में कहा कि यह एक स्टोकेस्टिक मॉडल है और इसके रिजल्ट हर तरफ केे माहौल पर निर्भर करेंगे। इस मॉडल का एनालिसिस बताते हुए कहा कि यह समझा जा सकता है कि उस वक्त इंफेक्टेड केस की संख्या डिस्चार्ज मरीजों की संख्या के बराबर हो जाएगी और इसलिए गुणांक 100 फीसदी तक पहुंच जाएगा।

      गौरतलब है कि इससे पहले कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच वैज्ञानिकों ने एक नई चेतावनी दी थी।वैज्ञानिकों के मुताबिक मानसून इस महामारी को बढ़ाने का काम कर सकता है। इसका मतलब कि मानसून आने के कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ सकता है। देश की स्वास्थ्य-चिकित्सा एजेंसियां, अस्पताल, नगर निगमों और कर्मचारियों पर काफी दबाव पड़ जाएगा क्योंकि मानसून के दौरान ही डेंगू, मलेरिया और जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियां पांव पसार लेती हैं।

      इस संबंध में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलूरु ( IIS Bengaluru ) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च मुंबई ( TIFR Mumbai ) के शोधकर्ताओं ने बड़ी चेतावनी जारी की। यहां के वैज्ञानिकों ने कहा कि इस बार मॉनसून में कोरोना वायरस के संक्रमण का दूसरा दौर शुरू हो सकता है। तापमान में कमी आने से इसके पॉजिटिव केस में उछाल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

      MoHFW के दो विशेषज्ञों का बड़ा दावा, इस महीने तक खत्म होगा Coronavirus in India

      नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस महामारी ( Coronavirus in India ) के खात्मे को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ( MoHFW ) के दो सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक देश में COVID-19 का आतंक मध्य सितंबर तक खत्म हो सकता है। विशेषज्ञों ने इसके पीछे गणितीय मॉडल ( Mathematical Model ) स्टोकेस्टिक क्या है आधारित विश्लेषण के इस्तेमाल का दावा किया है। अगर यह दावे सच साबित होते हैं तो देश के लिए यह अच्छी और बुरी दोनों खबर ला सकता है।

      coronavirus end expected in mid september

      गणितीय मॉडल के विश्लेषणों के मुताबिक जब कोरोना वायरस मरीजों ( Coronavirus Cases in India ) की तादाद और इस महामारी ( Coronavirus Pandemic ) से रिकवर हुए लोगों की संख्या बराबर हो जाएगी, तब 100 फीसदी गुणांक पहुंच जाएगा और खत्म हो जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय में सार्वजनिक स्वास्थ्य के उप महानिदेशक ( DGHS ) डॉ. अनिल कुमार और उप सहायक निदेशक (कुष्ठ) ( DGHS ) द्वारा तैयार किया गया गया विश्लेषण एपिडेमियोलॉजी इंटरनेशनल नामक ऑनलाइन जर्नल में छपा हुआ है।

      दोनों अधिकारियों ने बेली के मैथमेटिकल मॉडल का इस्तेमाल किया। यह स्टोकेस्टिक मैथमेटिकल मॉडल, महामारी के कुल आकार के वितरण का ध्यान में रखते हुए विश्लेषण करता है। इसके अंतर्गत संक्रमण और निष्कासन दोनों होते हैं। डॉक्यूमेंट के मुताबिक भारत में कोरोना वायरस महामारी वास्तविक रूप से 2 मार्च को शुरू हुई थी। उस वक्त से लेकर अब तक इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। विशेषज्ञों ने इसका विश्लेषण करने के लिए 1 मार्च से 19 मई के बीच के कोरोना वायरस का डाटा एनालाइज किया था।

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      इस रिसर्च पेपर के मुताबिक भारत में बेली के रिलेटिव रिमूवल रेट, कोरोना वायरस का लीनियर रिग्रेशन एनालिसिस दिखाता है, जिसमें सितंबर मध्य तक यह रेखा 100 तक पहुंच रही है।

      उन्होंने इस संबंध में कहा कि यह एक स्टोकेस्टिक मॉडल है और इसके रिजल्ट हर तरफ केे माहौल पर निर्भर करेंगे। इस मॉडल का एनालिसिस बताते हुए कहा कि यह समझा जा सकता है कि उस वक्त इंफेक्टेड केस की संख्या डिस्चार्ज मरीजों की संख्या के बराबर हो जाएगी और इसलिए गुणांक 100 फीसदी तक पहुंच जाएगा।

      गौरतलब है कि इससे पहले कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच वैज्ञानिकों ने एक नई चेतावनी दी थी।वैज्ञानिकों के मुताबिक मानसून इस महामारी को बढ़ाने का काम कर सकता है। इसका मतलब कि मानसून आने के कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ सकता है। देश की स्वास्थ्य-चिकित्सा एजेंसियां, अस्पताल, नगर निगमों और कर्मचारियों पर काफी दबाव पड़ जाएगा क्योंकि मानसून के दौरान ही डेंगू, मलेरिया और जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियां पांव पसार लेती हैं।

      इस संबंध में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलूरु ( IIS Bengaluru ) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च मुंबई ( TIFR Mumbai ) के शोधकर्ताओं ने बड़ी चेतावनी जारी की। यहां के वैज्ञानिकों ने कहा कि इस बार मॉनसून में कोरोना वायरस के संक्रमण का दूसरा दौर शुरू हो सकता है। तापमान में कमी आने से इसके पॉजिटिव केस में उछाल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

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