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विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश

विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश

छूट मिली पर एफपीआई दुखी

बाजार नियामक सेबी ने कारोबार की पुष्टि से जुड़ी समयसीमा में छूट दे दी ताकि टी प्लस वन की नई निपटान व्यवस्था की ओर आसानी से आगे बढ़ना सुनिश्चित हो सके। उद्योग के प्रतिभागियों ने कहा, हालांकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक अभी भी नाखुश हैं और ज्यादा राहत चाहते हैं। इस हफ्ते एनएसई ने अधिसूचित किया है कि कस्टोडियन के लिए कारोबार की पुष्टि की समयसीमा कारोबार के दिन के शाम 7.30 बजे से संशोधित कर अगले दिन सुबह 7.30 बजे कर दी गई है।

एफपीआई हालांकि कटऑफ समय कम से कम सुबह 9.30 बजे का चाहते हैं ताकि उन्हें विदेशी मुद्रा की बुकिंग और फंड की व्यवस्था में हड़बड़ी न करनी पड़े। एक सूत्र ने कहा, आखिरकार सेबी ने एक समाधान पेश किया, जो मध्यम मार्ग वाला है। अगर कटऑफ में और बढ़ोतरी की जाती है तो इसका एक्सचेंजों व क्लियरिंग कॉरपोरेशन पर असर पड़ेगा। हालांकि एफपीआई कुछ अतिरिक्त घंटे और चाहते हैं। यह देखना बाकी है कि सेबी और छूट देता है या नहीं।

एफपीआई पहले की समयसीमा पर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि यह उनके कारोबार की लागत बढ़ा देगा क्योंकि विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश इसके लिए उन्हें विदेशी मुद्रा की बुकिंग व फंडों का इंतजाम पहले से करना होगा।

पहले के कटऑफ को लेकर अहम चिंता गैर-बाजार के घंटों में विदेशी मुद्रा की बुकिंग को लेकर थी। मुद्रा बाजार सुबह 9 बजे खुलता है जबकि कटऑफ सुबह 7.30 बजे तय किया गया है। स्टॉक एक्सचेंज व सेबी के सूत्रों ने कहा कि नई व्यवस्था की ओर बढ़ने की पूरी प्रक्रिया की अच्छी तरह से निगरानी की जाएगी, उशके बाद ही आगे की छूट के बारे में फैसला लिया जाएगा।

फरवरी के बाद से बाजार कीमत के लिहाज से सबसे नीचे पायदान वाले 500 शेयरों को अल्पाव​धि वाले टी प्लस वन सेटलमेंट साइकल में भेज दिया गया। एफपीआई अग्रणी 200 शेयरों में ज्यादातर निवेश करते हैं और वहां टी प्लस वन की व्यवस्था जनवरी 2023 से होगी। हालांकि काफी शेयर ऐसे हैं जहां एफपीआई की शेयरधारिता सितंबर व अक्टूबर से टी प्लस वन में चली जाएगी और उसी समय वास्तविक असर का पता चल पाएगा।

टी प्लस वन सेटलमेंट की ओर बढ़ने वाला भारत पहला अहम देश है। दुनिया के सबसे बड़े बाजार अमेरिका ने इस पर चर्चा पत्र जारी किया है। सिक्योरिटीज इंडस्ट्री ऐंड फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन ने अमेरिका विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश में टी प्लस वन निपटान व्यवस्था लागू करने के लिए 2024 तक का समय मांगा है।

Investment tips: अगर पहली बार शेयर बाजार में करते हैं निवेश तो इन 5 बातों का रखें ध्यान और चुने बेस्ट स्टॉक, लॉन्ग टर्म में मिलेगा बंपर रिटर्न

Best shares for investment: अगर आप शेयर बाजार में नए हैं तो निवेश के लिए सही स्टॉक का चयन करना कठिन होता है. अगर सही स्टॉक का चयन कर लिया जाता है तो लंबी अवधि में यह मल्टी बैगर रिटर्न साबित होगा. पोर्टफोलियो में किसी स्टॉक को शामिल करने से इन पांच बातों का जरूर ध्यान रखें.

Share Market Investment tips: कोरोना काल में शेयर बाजार के प्रति लोगों का नजरिया बदला और बहुत बड़े पैमाने पर नए निवेशक बाजार की तरफ आकर्षित हुए हैं. इस समय देश में 9 करोड़ के करीब डीमैट अकाउंट होल्डर्स हैं. वित्त वर्ष 2018-19 के अंत में देश में डीमैट अकाउंट होल्डर्स की संख्या महज 3.60 करोड़ के करीब थी. इससे साफ पता चलता है कि बाजार में नए निवेशकों की भरमार है. बाजार में इस समय उठा-पटक जारी है. एक्सपर्ट लंबी अवधि के लिए निवेश की सलाह दे रहे हैं. ऐसे में निवेशकों के लिए सही स्टॉक का चयन करना बहुत जरूरी हो जाता है. नए निवेशकों के लिए यह बहुत कठिन काम है.

बिग बुल राकेश झुनझुनवाला एक बात कहते थे कि निवेश करने से पहले 20 बार और बेचने से पहले 50 बार सोचो. इसका मतलब कि आपको यह पता होना चाहिए कि आप क्‍या खरीद रहे हैं और यह भी मालूम होना चाहिए कि जल्‍दी बेचने के क्‍या नुकसान हैं. अगर इस स्ट्रैटिजी के साथ किसी स्टॉक में निवेश करते हैं तो आपकी मोटी कमाई होगी. हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि सही स्टॉक का चयन किया गया हो.

जिन प्रोडक्ट्स का करते हैं इस्तेमाल, वैसी कंपनियों को चुनें

बाजार के जानकारों के मुताबिक, नए निवेशकों ऐसे स्टॉक का सलेक्शन करना चाहिए जिनके प्रोडक्ट का वे इस्तेमाल करते हैं. अगर आप लंबी अवधि से किसी कंपनी का प्रोडक्ट इस्तेमाल कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे तो वह कंपनी एक अच्छा विकल्प है. उदाहरण के लिए FMCG और बैंकिंग सर्विस की कंपनियां.

कंपनी रेवेन्यू और प्रॉफिट जेनरेट कर रही है या नहीं?

आपने जिस कंपनी का सलेक्शन किया वह रेवेन्यू जेनरेट कर रही है या नहीं, यह बेहद महत्वपूर्ण है. अगर कंपनी का रेवेन्यू बढ़ रहा है और प्रॉफिट ग्रोथ में भी उछाल आ रहा है तो यह अच्छी बात है. इसके साथ में कंपनी के कर्ज पर भी गौर करना जरूरी है. अगर कंपनी के कर्ज में लगातार गिरावट आ रही तो आपका स्टॉक सलेक्शन अच्छा है.

कंपनी की वैल्युएशन उचित हो

कंपनी की वैल्युएशन का सही पता लगाना जरूरी है. इसके लिए PE Ratio (प्राइस टू अर्निंग रेशियो), PEG Ratio (प्राइस अर्निंग टू ग्रोथ रेशियो), PB Ratio (प्राइस टू विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश बुक रेशियो) का सहारा लिया जा सकता है. एक साल, तीन साल, पांच साल, सात साल, दस साल. इन नंबर्स के साथ अगर तमाम रेशियो का कैलकुलेशन करते हैं तो यह पता लगाना आसान होगा कि रेवेन्यू और प्रॉफिट में ग्रोथ के साथ-साथ कंपनी की वैल्युएशन बढ़ रही है या नहीं.

मजबूत कॉर्पोरेट गवर्नंस का होना जरूरी

इतना सबकुछ करने के बाद कंपनी का कॉर्पोरेट गवर्नंस का सही होना जरूरी है. पिछले दिनों एयर इंडिया को टाटा ने खरीदा और सिर्फ टाटा के नाम पर एयर इंडिया के प्रति लोगों का नजरिया बदल गया. ऐसे में किसी भी कंपनी के फ्यूचल के लिए लीडरशिप का मजबूत होना जरूरी है. अगर कंपनी के प्रमोटर ने शेयर को प्लेज यानी गिरवी नहीं रखा है, तो यह अच्छा संकेत है. इन तमाम फैक्टर्स की मदद से निवेश के लिए सही कंपनी और स्टॉक का सलेक्शन किया जा सकता है.

(डिस्‍क्‍लेमर: शेयर बाजार में निवेश जोखिम के अधीन है. निवेश से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)

Stock Market: विदेशी निवेशकों के दम पर बाजार में रौनक, अगस्त के तीन हफ्तों में FPI ने 44,500 करोड़ रुपये लगाए

Stock Market: डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक एफपीआई ने 1-19 अगस्त के दौरान भारतीय इक्विटी में शुद्ध रूप से 44,481 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

By: ABP Live | Updated at : 21 Aug 2022 01:39 PM (IST)

प्रतीकात्मक तस्वीर ( Image Source : Getty )

Stock Market: पिछले महीने शुद्ध खरीदार बनने के बाद विदेशी निवेशकों ने अगस्त में भी भारतीय शेयर बाजारों के लिए जबरदस्त उत्साह दिखाया है. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने अगस्त में अब तक करीब 44,500 करोड़ रुपये का निवेश किया है. अमेरिका में महंगाई कम होने और डॉलर सूचकांक में गिरावट के बीच भारतीय बाजारों के प्रति उनका भरोसा बढ़ा.

9 महीनों तक लगातार बिकवाली के बाद एफपीआई अगस्त में बने खरीदार
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक एफपीआई ने जुलाई माह में लगभग 5,000 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था. एफपीआई ने लगातार नौ महीनों तक बड़े पैमाने पर बिकवाली की, जिसके बाद वे जुलाई में पहली बार शुद्ध खरीदार बने थे. इससे पहले अक्टूबर 2021 से जून 2022 के बीच उन्होंने भारतीय इक्विटी बाजारों में 2.46 लाख करोड़ रुपये की भारी बिक्री की थी.

क्या कहते हैं जानकार
कोटक सिक्योरिटीज के प्रमुख- इक्विटी शोध (खुदरा) श्रीकांत चौहान ने कहा कि आने वाले महीनों में एफपीआई प्रवाह में उतार-चढ़ाव बना रहेगा, हालांकि बढ़ती महंगाई, मौद्रिक नीति में सख्ती और तिमाही नतीजों को लेकर चिंताएं कम होने से उभरते बाजारों में आवक बेहतर होने की उम्मीद है. जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि निकट अवधि में पूंजी प्रवाह मुख्य रूप से डॉलर की गति से प्रभावित होगा.

अगस्त का आंकड़ा उत्साहजनक
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक एफपीआई ने 1-19 अगस्त के दौरान भारतीय इक्विटी में शुद्ध रूप से 44,481 करोड़ रुपये का निवेश किया है. यह चालू वर्ष में उनका अब तक का सबसे अधिक निवेश है.

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Published at : 21 Aug 2022 01:37 PM (IST) Tags: Stock Market FPI INdia Foreign Portfolio Investment हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

क्या शेयर बाजार में निवेश करना चाहिए ?

भारतीय शेयर बाजार का इतिहास देखे तो यह करीब 140 साल पुराना बाजार है बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) पिछले 140 सालों से कार्य कर रहा है। परंतु निवेश के लिहाज से देखें तो भारतीय जनमानस आज भी शेयर बाजार में बहुत ज्यादा रुचि नहीं रखता है इसके बहुत से कारण हो सकते हैं।

भारत में कितने प्रतिशत लोग शेयर बाजार में निवेश करते हैं ? तथा क्या भारतीयों को ज्यादा संख्या में शेयर बाजार में निवेश करना चाहिए ? इस लेख में इसी विषय पर चर्चा की जाएगी लेख का उद्देश्य वित्तीय जागरूकता फैलाना है इसलिए लेख को अंत तक पढ़े।

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भारत में कितने प्रतिशत लोग शेयर बाजार में निवेश करते हैं

भारत में कितने प्रतिशत लोग शेयर बाजार में निवेश करते हैं इसका कोई प्रमाणिक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है लेकिन विभिन्न अध्ययन और शोध के आधार पर तमाम वित्तीय विशेषज्ञों ने जो आंकड़ा प्रस्तुत किया है वह काफी चौकाने वाला है।

एक अध्ययन के अनुसार भारत की जनसंख्या करीब 125 करोड़ के आसपास है इस जनसंख्या मे लगभग 68 करोड़ लोगों की आयु 18 वर्ष से ऊपर की है उनमें से करीब 3 करोड़ 20 लाख लोग ही शेयर बाजार में निवेश करते हैं। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो यह आंकड़ा करीब 5 प्रतिशत है।

वो भी ये 5 प्रतिशत आंकड़ा कोविड के बाद का है। कोविड काल मे काफी भारतीयों का रुझान शेयर बाजार की ओर बढ़ा है। यदि कोविड महामारी से पहले की बात करें तो शेयर बाजार में भारतीय निवेशकों की हिस्सेदारी मात्र 2 से 3 प्रतिशत ही थी ।

वहीं अगर अमेरिका जैसे देशों की बात करें तो वहां करीब 55% लोग शेयर बाजार में निवेश करते हैं। अमेरिकी लोग अमेरिका के शेयर बाजार में तो निवेश करते ही हैं साथ ही साथ अन्य विकासशील देशों के शेयर बाजार में भी अपना पैसा निवेश करते हैं।

भारतीय शेयर बाजार में भी अमेरिका समेत तमाम विकसित देशों के निवेशक अपना पैसा निवेश करके मोटा लाभ कमा रहे हैं।

क्या कारण हो सकता है कि 95 – 96 प्रतिशत भारतीय शेयर बाजार से दूर ही रहते हैं। गहराई मे जाकर देखा जाए तो भारतीयों के शेयर बाजार से दूर रहने के बहुत से कारण निकल कर आते हैं।

भारतीयों का शेयर बाजार से दूरी बनाए रखने के प्रमुख कारण

यहां कुछ ऐसे प्रमुख कारणों को वर्णित किया जा रहा है जिसकी वजह से भारतीय लोग शेयर बाजार से दूरी बनाए रखते हैं।

1 – वित्तीय साक्षरता ( Financial Literacy) का अभाव

भारत में साक्षरता दर तो काफी तेजी से बढ़ रही है लेकिन वित्तीय साक्षरता की अभी बहुत कमी है विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश यही कारण है कि ज्यादातर भारतीय शेयर बाजार के बारे में कुछ जानते ही नहीं हैं।

भारतीय लोगों की मासिक अथवा वार्षिक आय में तो काफी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है लेकिन वित्तीय साक्षरता की कमी के चलते वह अपना पैसा सही जगह निवेश नहीं कर पा रहे हैं इस वजह से उनका पैसा जितना बढ़ना चाहिए उतना बढ़ नहीं पा रहा है।

यह भी कह सकते हैं कि हम भारतीयों को यह नहीं सिखाया जाता है कि अपने पैसे को निवेश कैसे करें बल्कि यह सिखाया जाता है कि अपने पैसों को सेफ कैसे करें।

वित्तीय साक्षरता की कमी के चलते अधिकांश भारतीय पीढ़ी दर पीढ़ी पारंपरिक तरीकों में ही अपना पैसा लगाते चले आ रहे हैं जैसे कि गोल्ड, बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट ( FD ), भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) आदि में ही निवेश करते हैं।

इनको तो पता ही नहीं है कि स्टॉक मार्केट और म्युचुअलफंड में उससे कई गुना ज्यादा रिटर्न मिल सकता है।

जितने लंबी अवधि के लिए लोग बैंक एफ. डी. या एल.आई.सी. में अपना पैसा लगाते हैं यदि उतनी ही लंबी अवधि के लिए शेयर बाजार या म्युचुअलफंड में पैसा निवेश कर दिया जाए तो पारंपरिक तरीकों में निवेश से कई गुना ज्यादा का रिटर्न प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए जरूरत है वित्तीय साक्षरता के प्रति जागरूक होने की।

शेयर बाजार को जुवां या सट्टा समझना

बहुत से लोगों ने शेयर बाजार को बदनाम करके रखा है जैसे कि शेयर बाजार जुवां और सट्टा है। शेयर बाजार में पैसा बनता नही है बल्कि डूब जाता है वगैरह -वगैरह ।

बहुत से लोग ऐसे भी है जो काफी जोश के साथ रातों-रात शेयर बाजार से अमीर बनने के लिए आ जाते हैं और तेजी से इंट्राडे ट्रेडिंग करना शुरू कर देते हैं। ऐसे लोग जितनी तेजी से शेयर बाजार में आते हैं उतनी ही तेजी से यहां अपना पैसा गवां कर शेयर बाजार से बाहर भी हो जाते हैं।

बाद मे यही लोग शेयर बाजार को बदनाम करते हैं कि शेयर बाजार जुआ है, सट्टा है यहां पर कभी अपना पैसा नहीं लगाना चाहिए, यहां पैसे डूब जाते हैं आदि-आदि।

इस तरह की नकारात्मक बातों को सुनकर दूसरे लोग भी शेयर बाजार में अपना पैसा लगाने से डरते हैं।

यह बात सभी को समझना जरूरी है कि जितने लोगों ने शेयर बाजार से लाखों-करोड़ों रुपया कमाया है सभी ने लांगटर्म से ही कमाया है।

कंपाउंडिंग की ताकत को न समझना

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन मैं पावर आफ कंपाउंडिंग को दुनिया का आठवां अजूबा बोला था। लेकिन हम भारतीयों में वित्तीय साक्षरता की कमी होने के कारण कंपाउंडिंग की ताकत को समझ ही नहीं पाते हैं।

अगर बैंक एफडी विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश की बात करें तो आज से कई साल पहले 14 से 15 प्रतिशत रिटर्न मिलता था उस समय के हिसाब से यह रिटर्न फिर भी ठीक था। परंतु वर्तमान समय में यह रिटर्न मात्र 6 प्रतिशत है जोकि आज विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश से 10-15 वर्षों के पश्चात घटकर यह 2 या 3 प्रतिशत तक ही रह जाएगा।

जब हम पैसा कमाते हैं और बचत करते हैं तो हमारे कुछ लक्ष्य भी होते हैं कि आज से 15 या 20 वर्ष बाद हमें घर खरीदना है अथवा बच्चों को बिजनेस कराना है आदि-आदि। तो आप कल्पना कीजिए कि इतने कम रिटर्न और तेजी से बढ़ती महंगाई में क्या अपने लक्ष्य हमे प्राप्त हो पाएंगे।

जबकि शेयर बाजार और म्युचुअलफंड में 20-24-30- 32 प्रतिशत तक का रिटर्न लोगों ने प्राप्त किया है। ऐसे हालात मे भारतीयों को भी अपना कुछ ना कुछ पैसा शेयर बाजार में जरूर निवेश करना चाहिए। यदि आपको शेयर बाजार की ज्यादा जानकारी नहीं है तो म्युचुअलफंड के द्वारा अपना पैसा निवेश करें।

दोस्तों भारत एक विकासशील देश है और जैसे-जैसे यहां की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी वैसे-वैसे शेयर बाजार भी काफी बढ़ेगा इसलिए कहा जा सकता है कि भारतीय शेयर बाजार मे पैसे बनाने की अपार संभावनाएं हैं।

हम भारतीय शायद इस बात को नहीं समझते हैं लेकिन विदेशी निवेशक इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते और समझते हैं इसलिए भारी संख्या में विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में निवेश करके बहुत बड़ा पैसा बना रहे हैं।

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क्या शेयर बाजार में निवेश करना चाहिए ?

दोस्तों जैसा कि आपको पहले भी बताया जा चुका है कि भारत तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाला देश है यहां के शेयर बाजार मे पैसा कमाने की भी अपार संभावनाएं हैं जिसका फायदा हम भारतीयों की जगह विदेशी निवेशक उठा रहे हैं।

वारेन बुफेट, राकेश झुनझुनवाला, विजय केडिया, राधाकृष्ण दमानी आदि ऐसे नाम हैं जिन्होंने शेयर बाजार से ही बेशुमार दौलत अर्जित की है और आज शानदार लग्जरी जिंदगी गुजार रहे हैं।

इसलिए जो लोग नकारात्मकता फैलाते हैं उनकी बातों पर ध्यान न देकर अपना कुछ समय शेयर बाजार को सीखने और समझने में लगाइए।

क्योंकि यह तो सच है कि शेयर बाजार से अपार धन बनाया जा सकता है लेकिन यह भी सच है कि आप बिना ज्ञान और जानकारी के शेयर बाजार में कूद पड़ेंगे तो उससे नुकसान होने की संभावना ही ज्यादा होगी।

कहा जाता है कि 90% लोग शेयर बाजार में अपना पैसा गंवाते विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश हैं तो यह पैसा जाता कहां है ? यह पैसा 10℅ ज्ञानी और होशियार निवेशकों के पास चला जाता है जिससे वह मालामाल बनते हैं।

शेयर बाजार में एक कहावत बड़ी मशहूर है कि ‘यहां एक ही ट्रेड काफी होता है जिंदगी बदलने के लिए।’

इसलिए सीखिए, समझिए, जानकारी लीजिए और भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले शेयर बाजार में निवेश करके अपने धन को कई गुना तक बढ़ा कर अपने जीवन में बदलाव कीजिए।

भारत में उछलता शेयर बाज़ार और सिकुड़ती अर्थव्यवस्था, क्या है वजह?

PTI

21 जनवरी का दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखा जाएगा. अपने 145 साल के इतिहास में पहली बार इसके सूचकांक ने 50,000 अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर लिया और दिन के अंत में ये थोड़ा नीचे जा कर 49,624.76 अंकों पर बंद हुआ.

ये एक बड़ी उपलब्धि की तरह से देखा जा रहा है. ये कामयाबी कितनी अहम है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मार्च के अंत में देश भर में लगाए गए लॉकडाउन के बाद सेंसेक्स 25,638 अंक तक गिर चुका था. अब उछाल आसमान को छू रहा है.

यानी 10 महीने में सूचकांक में दोगुनी वृद्धि हुई है. एक आकलन के मुताबिक़, साल 2020 में शेयर बाज़ार में निवेश करने वालों को 15 प्रतिशत का फ़ायदा हुआ. इतने कम समय में, इतना उम्दा मुनाफ़ा कमाना किसी भी दूसरे क्षेत्र में निवेश करके असंभव था.

पिछले 10 महीनों में शेयर बाज़ार में इस ज़बरदस्त उछाल के क्या कारण हैं? और ये 'फ़ीलगुड' समय कब तक जारी रहेगा?

इन दोनों सवालों पर प्रकाश डालने से पहले इस प्रश्न पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि अगर भारत की अर्थव्यवस्था महामारी के नतीजे में चौपट हुई है, तो पिछले 10 महीने में शेयर बाज़ार में इतना उछाल क्यों आया है?

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अर्थव्यवस्था और बाज़ार में अंतर क्यों?

मुंबई के दलाल स्ट्रीट में अगर जश्न का माहौल है, तो देश में कई लोग ये सवाल कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था और शेयर बाज़ार के बीच इतना डिस्कनेक्ट क्यों है? इसका जवाब सीधा नहीं है. लेकिन भारत के अलावा अमेरिका, दक्षिण कोरिया और कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं में भी ऐसे ही रुझान देखने को मिले हैं.

इसे एक वैश्विक रुझान कहा जा सकता है. मुंबई स्थित अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि इस वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश सिकुड़ने वाली है, लेकिन शेयर बाज़ारों में उछाल है.

इसका मुख्य कारण बाज़ार में ज़रूरत से ज़्यादा उपलब्ध लिक्विडिटी (नगदी) है.

अमेरिका में व्हार्टन बिज़नेस स्कूल दुनिया भर में प्रसिद्ध है. इसके एक डेली रेडियो शो में स्कूल के विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश वित्त मामलों के प्रोफ़ेसर इते गोल्डस्टीन (Itay Goldstein) ने शेयर बाज़ार और अर्थव्यवस्था के बीच डिस्कनेक्ट के वैश्विक रुझान के तीन कारण बताये.

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दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.

वे कहते हैं कि पहला, जो हर समय के लिए सच है, वो ये कि शेयर बाज़ार के निवेशक आने वाले समय पर निगाह रखने वाले होते हैं. सामान्य तौर पर अर्थव्यवस्था में अभी जो आप देख रहे हैं, वो अभी चल रहा है. यानी मौजूदा समय में क्या हो रहा है अर्थव्यवस्था ये देखती है, जैसे कि उत्पादन, रोज़गार के क्षेत्र में क्या हो रहा है.

प्रोफ़ेसर गोल्डस्टीन के अनुसार, दूसरा कारण केंद्रीय बैंक द्वारा वित्तीय सिस्टम में बहुत अधिक नक़दी डालना है. उनका कहना है कि सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने महामारी से जूझने के लिए वित्तीय पैकेज दिये हैं जिसके कारण मार्केट में नक़दी आई है.

प्रोफ़ेसर गोल्डस्टीन कहते हैं कि इस रुझान का तीसरा कारण ये तथ्य है कि शेयर बाज़ार से जो कंपनियाँ जुड़ी हैं, ये ज़रूरी नहीं कि वो पूरी अर्थव्यवस्था की प्रतिनिधि हैं. अपने तर्क के पक्ष में वो फ़ेसबुक, गूगल, अमेज़न और नेटफ़्लिक्स जैसी कंपनियों का उदाहरण देते हैं जिन पर महामारी का कोई नकारात्मक असर नहीं हुआ, लेकिन इनके स्टॉक शेयर के भाव तेज़ी से बढे हैं और ये कंपनियाँ पूरी अर्थव्यवस्था का नेतृत्व नहीं करतीं.

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बाज़ार में उछाल के क्या कारण हैं?

पिछले कुछ महीनों से वैश्विक और घरेलू दोनों कारणों से शेयर बाज़ार में 'बुल रन' यानी उछाल देखने को मिल रहा है.

स्टैंडर्ड चार्टर्ड सिक्योरिटीज़ के प्रतीक कपूर के अनुसार, अमेरिका में महामारी से जूझने के कई पैकेज आ चुके हैं जिसके कारण मार्केट में काफ़ी लिक्विडिटी है.

वे बताते हैं, "भारत इमर्जिंग मार्किट में सबसे सुरक्षित और मुनाफ़े वाला बाज़ार है, इसलिए विदेशी संस्थागत निवेशक (एफ़आईआई) भारत में निवेश कर रहे हैं और तेज़ी से कर रहे हैं. जनवरी के पहले हफ़्ते में कुछ दिनों के लिए वो हमारे मार्केट से पैसे निकालने लगे थे जिसकी वजह से मार्केट में गिरावट आई थी लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से वो फिर से काफ़ी निवेश कर रहे हैं."

प्रतीक कपूर के अनुसार, दूसरा कारण है ब्याज दर में कमी. उनके विचार में अमेरिका में चुनाव के ख़त्म होने के बाद से सियासी स्थिरता और बुधवार को जो बाइडन के शपथ ग्रहण और उनके द्वारा उठाए गए कुछ अहम क़दमों का अमेरिकी मार्केट पर सकारात्मक असर देखने को मिला जिसका सीधा असर भारत के शेयर बाज़ार पर भी पड़ा.

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साल 2020 में विदेशी निवेशकों ने भारत के शेयर बाज़ारों में 32 अरब डॉलर का सौदा किया जो किसी एक साल के लिए अब तक का रिकॉर्ड है.

साल 2019 भी विदेशी निवेशकों के निवेश का साल था और साल 2021 में भी विदेशी निवेशकों की रुचि भारतीय स्टॉक मार्केट में बनी रहेगी.

एक अनुमान है कि 25 से 30 अरब डॉलर तक का विदेशी निवेश भारत में आ सकता है.

विवेक कौल कहते हैं कि इन दिनों शेयर बाज़ार आसानी से उपलब्ध कैश के कारण उछाल पर है.

वे कहते हैं, "विदेशी निवेशकों ने पिछले साल (2020) भारतीय शेयरों को ख़रीदने में 32 अरब डॉलर ख़र्च किया है. कई स्थानीय निवेशकों ने भी ब्याज दरों में भारी गिरावट के बाद शेयरों पर दांव लगाया है. आरबीआई ने वित्तीय प्रणाली में बड़े पैमाने पर पैसा लगाया है. इन सबके चलते शेयर बाज़ार ऊपर जा रहा है, जबकि इस वित्तीय साल में अर्थव्यवस्था में गिरावट की उम्मीद है."

मार्केट में निवेश करने का देश के अंदर रुझान बढ़ रहा है. ये भी एक कारण है. एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में खुदरा निवेशकों की श्रेणी में युवा निवेशकों की संख्या में एक करोड़ की वृद्धि हुई. लॉग टर्म की दृष्टिकोण रखने वाले निवेशक अब बैंकों में पैसे रखने या रियल स्टेट में पैसे निवेश करने की बजाय स्टॉक्स एंड शेयर्स में निवेश करना पसंद करते हैं.

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क्या ये उछाल जारी रहेगा?

फ़िलहाल कुछ अनिश्चितता है. विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है. प्रतीक कपूर कहते हैं कि मार्केट अभी और भी ऊपर जाएगा.

वे बताते हैं, "अभी विदेशी निवेशक आते रहेंगे. जो बाइडन का नया आर्थिक पैकेज भी मार्केट में रंग लाएगा. लेकिन शॉर्ट टर्म में करेक्शन आ सकता है यानी आगे कुछ दिनों या हफ़्तों में मार्केट में उतार-चढाव होगा और कुछ कंपनियों के स्टॉक्स के भाव नीचे जाएँगे. करेक्शन होना या मार्केट का थोड़ा बहुत गिरना नकारात्मक नहीं है. थोड़ा करेक्शन चाहिए क्योंकि मार्केट ज़रूरत से अधिक गर्म है.

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास, वित्तीय स्थिरता पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि वो इस बात से चिंतित हैं कि हाल के समय में अर्थव्यवस्था और मार्केट में डिसकनेक्ट बढ़ा है. इस रुझान पर नज़र रखना ज़रूरी है.

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