व्यापारियों को जीएसटी से लाभ

GST ग्राहकों के लिए फायदे का नहीं, घाटे का सौदा है
इस प्रक्रिया का लाभ लोगों के जीएसटी में सेट होने तक अनुमान के दायरे में ही रहेगा. जीएसटी के समर्थक उपभोक्ता बता रहे हैं कि जीएसटी रिफंड के जरिए कारोबार की लागत को कम कर देगी और अंतत: गुड्स और सर्विसेज सस्ता होगा. लेकिन सच्चाई क्या है ये जानिए.
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जीएसटी की चिंता में कई लोगों के रातों की नींद खो गई है लेकिन कम से कम उपभोक्ताओं के लिए 'परिवर्तनकारी' जीएसटी अगले दो से तीन सालों तक किसी तरह की परेशानी पैदा नहीं करने वाला. 1 जुलाई की सुबह जीएसटी लागू होने के बाद हद से हद सिर्फ इसलिए याद रखा जाएगा कि बजट के इस दिन कुछ सेवाओं की कीमतें बढ़ी और कुछ उत्पाद सस्ते हो गए.
असलियत ये है कि जीएसटी के नफा-नुकसान सब अभी अनुमान पर ही आधारित हैं. जीएसटी एक कट्टर व्यापार सुधार प्रक्रिया है, जिसका लाखों भारतीय व्यवसायों पर एक निर्णायक असर पड़ेगा. जीएसटी के लाभ का सफर अभी बहुत लंबा है जिसके आम आदमी के पॉकेट तक पहुंचने में समय लगेगा.
चलिए पता करते हैं कि जीएसटी की भूलभुलैया में आम उपभोक्ता कहां ठहरता है:
जीएसटी के पहले और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार देश के लाखों व्यवसाय हैं और ये आर्थिक सुधार उन पर ही केंद्रित है. इनके लिए सबसे पहला पड़ाव है सुविधाजनक रूप से जीएसटी को अपना लेना और फिर इसकी जटिलताओं को समझना. इसके बाद जीएसटी के जो सबसे बड़े हितधारक हैं वो हैं सरकारें (केंद्र और राज्य दोनों).
किसकी चांदी किसको भूसा- जीएसटी
दिलचस्प बात ये है कि जीएसटी को लेकर ग्राहकों के लिए सारी चिंता की वजह इनपुट टैक्स क्रेडिट पर निर्भर करता है. इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ ही जीएसटी मौजूदा टैक्स संरचना की गलतियों से निपटना है. जीएसटी लागू करने के बाद निर्माता फाइनल प्रोडक्ट के लिए इनपुट पर टैक्स रिफंड का दावा कर सकते हैं. उन्हें सिर्फ उतना ही टैक्स भरना होगा जितना की प्रोडक्ट के आउटपुट पर कीमत लगी है. निर्माताओं को इनपुट पर पहले से ही भुगतान किए गए टैक्स की जमा राशि को वापस कर दिया जाएगा.
साफ ज़ाहिर है कि ये एक अभूतपूर्व सुधार है. हालांकि इस प्रक्रिया का लाभ लोगों के जीएसटी में सेट होने तक अनुमान के दायरे में ही रहेगा. जीएसटी के समर्थक उपभोक्ता बता रहे हैं कि जीएसटी कर रिफंड के जरिए कारोबार की लागत को कम कर देगी और अंतत: गुड्स और सर्विसेज सस्ता होगा.
हालांकि, जीएसटी की ये अवधारणा तीन बड़े सवालों के साथ आती है-
1. न तो सरकार और न ही उद्योग जगत में लोगों को इस बात की कोई जानकारी है कि विभिन्न उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट से कितना बचत होगा.
2. सरकार अभी भी माइग्रेशन और पंजीकरण के मूल्यांकन की प्राथमिक चुनौतियों से ही जूझ रही है. ऐसे में रिफंड की बात दूर के ढोल हैं.
3. शुरूआत में जीएसटी व्यापारियों को लाभ दे सकती है जिसका फायदा व्यापारी इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए उठा सकते हैं.
4. भले ही ये माना जा रहा है कि जीएसटी से कारोबारियों को बचत होगा लेकिन उपभोक्ता को लाभ तब ही मिलेगा जब सरकार करों की दर कम करेगी. जिसके आसार बहुत ही कम नजर आ रहे हैं क्योंकि सरकार पहले से ही हाई जीएसटी दरों में कटौती करने की जल्दी में नहीं दिखाई दे रही है. हालांकि सरकार इस बात को सुनिश्चित जरुर करना चाहती है कि निर्माताओं और डीलरों द्वारा जमाखोरी ना की जाए और टैक्स के फायदे उपभोक्ताओं तक भी पहुंचें. हालांकि इसके लिए ग्राहकों को पक्की रसीद लेनी होगी.
दूसरे शब्दों में अगर कहें तो गरीब उपभोक्ताओं को मुनाफाखोरी के मामले को साबित करने के लिए नाकों चने चबाने को तैयार रहना होगा. दूसरी बात ये कि प्राधिकरण द्वारा सुनवाई, जांच, और उपभोक्ता को दुकानदार द्वारा लिए अनुचित लाभ की वापसी का रास्ता बड़ा ही लंबा और लालफीता शाही से भरपूर है. इन बातों को नजरअंदाज करते हुए अगर कोई उत्साही उपभोक्ता वास्तव में जीएसटी के इतिहास का हिस्सा बनना पसंद करता है, तो वह अपनी किस्मत सरकार के साथ निम्नलिखित बिंदुओं के साथ जरूर आजमा सकते हैं.
1. सरकार को इनकम टैक्स की वापसी के माध्यम से मिलने वाले लाभ और बचत पर एक विस्तृत और हर क्षेत्र के डिटेल रिसर्च के साथ बाहर आना चाहिए.
2. कंपनियों द्वारा लिए जा रहे जीएसटी लाभों को पारदर्शी सुनिश्चित करने के लिए सरकार के क्या उपाय हैं?
3. सरकार को विभिन्न व्यवसायों के लागत का डेटा भी शेयर करना चाहिए.
जीएसटी कैलकुलेटर
आप नीचे दिए गए चरणों का पालन करके आसानी से GST कैलकुलेटर का ऑनलाइन उपयोग कर सकते हैं:
- किसी सेवा या वस्तु की कीमत और GST स्लैब जैसे 5%, 12%, 18% और 28% टूल में दर्ज़ करें.
- 'कैलकुलेट' बटन पर क्लिक करें और वस्तुओं और सेवाओं के लिए फाइनल या ग्रॉस प्राइस जानें.
GST गणना फॉर्मूला:
बिज़नेस, मैन्युफैक्चरर, थोक व्यापारी और रिटेलर इस फॉर्मूला का उपयोग करके जीएसटी की गणना आसानी से कर सकते हैं:
सरल जीएसटी कैलकुलेशन
• जीएसटी जोड़ें:
जीएसटी राशि = (शुरुआती लागत x जीएसटी%)/100
निवल मूल्य = वास्तविक लागत + GST राशि
• GST निकालें:
GST राशि = मूल लागत - [मूल लागत x ]
प्योर मूल्य = मूल लागत - GST राशि
इसे चित्रित करने के लिए यहां एक उदाहरण दिया गया है:
दर (%) | राशि | |
---|---|---|
वस्तु की वास्तविक लागत | रु.1,00,000 | |
जीएसटी | 18% | रु. 18,000 |
बेचे गए सामान की लागत | रु.1,18,000 |
निर्माताओं के लिए GST की गणना:
दर (%) | जीएसटी से पहले | जीएसटी के बाद | |
---|---|---|---|
प्रॉडक्ट की लागत | 10000 | 10000 | |
एक्साइज़ ड्यूटी | 12% | 1200 | शून्य |
लाभ | 10% | 1000 | 1000 |
कुल | 12200 | 11000 | |
वैट | 12.50% | 1525 | शून्य |
सीजीएसटी | 6% | शून्य | 660 |
एसजीएसटी | 6% | शून्य | 660 |
होलसेलर को फाइनल इनवाइस | 13725 | 12320 |
रु. 10,000 की लागत पर, मैन्युफैक्चरर रु. 1405 बचाता है, जिसका मतलब है कि लागत पर 14% टैक्स बचाता है. यह निर्माताओं के लिए लागत में कमी लाता है, जिसका लाभ अंततः थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को दिया जाता है.
थोक व्यापारियों और रिटेल विक्रेताओं के लिए GST गणना:
दर (%) | जीएसटी से पहले | जीएसटी के बाद | |
---|---|---|---|
प्रॉडक्ट की लागत | 13725 | 12320 | |
लाभ | 10% | 1373 | 1232 |
कुल | 15098 | 13552 | |
वैट | 12.50% | 1887 | शून्य |
सीजीएसटी | 6% | शून्य | 813 |
एसजीएसटी | 6% | शून्य | 813 |
कंज़्यूमर को फाइनल इनवाइस | 16985 | 15178 |
GST प्रॉडक्ट की लागत को कम करता है और इस प्रकार, उपभोक्ता सामानों पर कम का भुगतान करता है, जबकि होलसेलर और रिटेलर को मिलने वाला लाभ% पहले जैसा ही रहता है.
GST क्या है?
गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) एक इनडायरेक्ट टैक्स है, जिसका भुगतान कंज्यूमर गुड्स व सर्विसेज़ पर निर्माताओं, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को करना होता है. यह एक डेस्टिनेशन-बेस्ड और मल्टी-स्टेप टैक्स है, जो हर वैल्यू एडीशन पर लगाया जाता है. 29 मार्च 2017 को भारतीय संसद में पारित यह एक्ट 1 जुलाई, 2017 से प्रभावी हुआ. सेन्ट्रल एक्साइज़ ड्यूटी, सर्विस टैक्स, कस्टम ड्यूटी, वैट, ऑक्ट्रॉय और सरचार्ज जैसे सभी अप्रत्यक्ष टैक्सों को बदलकर, जीएसटी के कार्यान्वयन ने बिज़नेस के लिए टैक्सेशन की प्रोसेस को सरल बना दिया है.
GST कैलकुलेटर का उपयोग करने के क्या लाभ हैं?
ऑनलाइन GST कैलकुलेटर आपको प्रतिशत आधारित GST दरों पर सकल या निवल प्रॉडक्ट की कीमत का पता लगाने में मदद करता है. यह समय की बचत करता है और वस्तुओं और सेवाओं की कुल लागत की गणना करते समय मानवीय त्रुटि की संभावना को कम करता है.
व्यापारी वर्ग डिजिटल बनने को उत्सुक, लेकिन विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां बड़ी बाधा
नई दिल्ली। भारत के बाजार (India market) में ई-कॉमर्स (e-commerce) का तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। बड़े से बड़े इंटरनेशनल ब्रांड (big international brands) की चीजें आसानी से ऑनलाइन मिल रही हैं लेकिन भारत में तैयार और दुकानों पर मिलने वाला लोकल समान ऑनलाइन (local stuff online) मिलने में अभी मुश्किलें आ रही है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) (Confederation of All India Traders (CAIT)) की रिसर्च शाखा ने रविवार को अपने सर्वे रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है।
कैट के रिसर्च शाखा कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देशभर के व्यापारियों ने ई-कॉमर्स को व्यापार के एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में अपनाने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन ज्यादातर व्यापारियों को लगता है कि ऑनलाइन माल बेचने के लिए विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों की जारी कुप्रथाओं और नियमों के घोर उल्लंघन तथा ई-कॉमर्स पर व्यापार करने के लिए अनिवार्य जीएसटी पंजीकरण का होना एक बड़ी रुकावट है। दरअसल, वर्ष 2021 में भारत में 55 बिलियन डॉलर का ई-कॉमर्स व्यापार हुआ, जिसका वर्ष 2026 तक 120 बिलियन डॉलर तथा वर्ष 2030 तक 350 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।
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कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी ने हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों के टियर-2 और टियर-3 जैसे 40 शहरों में एक ऑनलाइन सर्वे किया है। इस सर्वे में करीब 5 हजार व्यापारियों को शामिल किया गया, जिसमें यह बात निकल कर सामने आई है। कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि ऑनलाइन सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 78 फीसदी व्यापारियों ने कहा कि भारत में व्यापारियों के लिए अपने मौजूदा कारोबार के अलावा ई-कॉमर्स को भी व्यापार का एक अतिरिक्त तरीका बनाना जरूरी है, जबकि 80 फीसदी व्यापारियों का कहना है कि ई-कॉमर्स पर व्यापार करने के लिए जीएसटी पंजीकरण की अनिवार्यता छोटे व्यापारियों के लिए एक बड़ी बाधा है। वहीं, 92 फीसदी छोटे व्यापारियों ने कहा कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां ऑनलाइन कारोबार के जरिए देश के रिटेल व्यापार पर नियमों एवं कानूनों की खुली धज्जियां उड़ाते हुए ग्राहकों को भरमा रही हैं।
खंडेलवाल ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 92 फीसदी व्यापारियों ने कहा कि देश में ई- कॉमर्स व्यापार को निष्पक्ष एवं पारदर्शी बनाने के लिए ई-कॉमर्स नीति एवं ई-कॉमर्स से संबंधित उपभोक्ता क़ानून को संशोधित कर तुरंत लागू करना जरूरी है, जबकि 94 फीसदी व्यापारियों ने कहा कि भारत में ई-कॉमर्स व्यवसाय को जिम्मेदार बनाने के लिए एक मजबूत व्यापारियों को जीएसटी से लाभ मॉनिटरिंग अथॉरिटी का गठन अत्यंत जरूरी है। वहीं, 72 फीसदी व्यापारियों ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि खुदरा क्षेत्र में वर्तमान एफडीआई नीति में आवश्यक संशोधन करना जरूरी है, ताकि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के मनमानी पर तुरंत रोक लग सके। उन्होंने कह कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां व्यापारियों के कारोबार को बड़ी क्षति पहुंचा कर एकतरफा प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाये हुए है।
कैट महामंत्री ने कहा कि यह बेहद ही अफसोस की बात है कि जहां रिटेल ट्रेड पर अनेक प्रकार के क़ानून लागू हैं। वहीँ, ई-कॉमर्स व्यापार सभी प्रकार के प्रतिबंधों से पूरी तरह मुक्त है, जिससे किसी भी कानून की परवाह किए बिना कोई भी ई-कॉमर्स कंपनी कोई भी व्यापार करने के लिए स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि एक बेहद सोची समझी साजिश के तहत विदेश धन प्राप्त कंपनियां न केवल सामान, बल्कि सेवाओं के क्षेत्र जिनमें ट्रेवल, टूरिज्म, पैक्ड खाद्य सामान, किराना, मोबाइल, कंप्यूटर, गिफ्ट आइटम्स, रेडीमेड गारमेंट्स, कैब सर्विस, लॉजिस्टिक्स आदि सेक्टर में अपना वर्चस्व बनाकर भारतीय व्यापारियों के कारोबार पर कब्जा कर उसको नष्ट करने पर तुली हुई है। उन्होंने कहा कि वास्तव में उनका कोई व्यापार का मॉडल नहीं है, बल्कि पूर्ण रूप से वैल्यूएशन मॉडल है, जो देश की अर्थव्यवस्था और व्यापार के लिए बेहद घातक है। खंडेलवाल ने कि कहा कि बहुत ही आश्चर्य की बात है कि प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपये का नुकसान देने के बाद भी विदेश धन पोषित कंपनियां अपना व्यापार कर रही हैं।
खंडेलवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में अंतिम व्यक्ति को भी डिजिटल प्रौद्योगिकी अपनाने और स्वीकार करने पर जोर दिया है, लेकिन ई-कॉमर्स पर सामान बेचने के लिए अनिवार्य जीएसटी पंजीकरण की शर्त छोटे व्यापारियों के लिए ई-कॉमर्स व्यापार करने के लिए एक बहुत बड़ी बाधा है। छोटे व्यापारियों के व्यापारियों को जीएसटी से लाभ लिए अपने व्यवसाय को व्यापक बनाने में ई-कॉमर्स का लाभ उठाने की सुविधा के लिए इस शर्त को समाप्त करने की जरूरत है। इस संबंध में कैट शीघ्र ही केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, जो स्वयं छोटे व्यापारियों के बड़े पैरोकार हैं और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मिलेगा और दोनों विषयों को समाधान शीघ्र निकालने का आग्रह करेगा। क्योंकि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों का व्यापार का यह कौन सा मॉडल है, यह समझना बहुत जरूरी है। (एजेंसी, हि.स.)
खाने की जरूरी चीजों पर 5% GST लगाने के फैसले से व्यापारी परेशान, सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन की तैयारी
देश के व्यापारिक समुदाय, खाद्यान्न और एपीएमसी एसोसिएशनों ने प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले की कड़ी आलोचना की है.
सुमन कुमार चौधरी | Edited By: सुनील चौरसिया
Updated on: Jul 11, 2022 | 9:50 AM
प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले का विरोध होना शुरू हो गया है. देश के व्यापारिक समुदाय, खाद्यान्न और एपीएमसी एसोसिएशनों ने जीएसटी काउंसिल द्वारा लिए गए इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि इस फैसले से व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा. इस फैसले से प्रभावित व्यापारिक सेक्टर के व्यापारी, देश के हर राज्य में जोरदार प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं. लिहाजा, आने वाले समय में खाद्यान्न व्यापार के भारत बंद की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
फैसले के खिलाफ संपर्क में हैं देशभर के व्यापारी संगठन
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी काउंसिल, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों से ये फैसला वापस लेने की अपील की है. कैट की मांग है कि जब तक जीएसटी काउंसिल में यह निर्णय अंतिम रूप से वापस नहीं हो जाता, तब तक इस निर्णय को स्थगित रखा जाए. देशभर के खाद्यान्न व्यापारी संगठनों के व्यापारी नेता इस मुद्दे पर एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगातार बातचीत कर रहे हैं.
फैसले के लिए कैट ने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ठहराया जिम्मेदार
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. सी. भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने काउंसिल के इस निर्णय की कड़ी निंदा करते हुए, इस तरह के अतार्किक निर्णय के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि काउंसिल में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया और सभी राज्यों के वित्त मंत्री काउंसिल के सदस्य हैं. इस निर्णय व्यापारियों को जीएसटी से लाभ का देश के खाद्यान्न व्यापार पर अनुचित प्रभाव पड़ेगा और देश के लोगों पर आवश्यक वस्तुओं को खरीदने पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा.
व्यापारियों के साथ-साथ किसानों पर भी पड़ेगा बुरा असर
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से भारत में पहली बार आवश्यक खाद्यान्नों को टैक्स के दायरे के तहत लिया गया है, जिसका न केवल व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा बल्कि कृषि क्षेत्र पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इस फैसले से छोटे निर्माताओं और व्यापारियों की कीमत पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा.
जीएसटी कलेक्शन बढ़ने के बावजूद क्यों लगाया जा रहा है टैक्स
प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि विरोध के पीछे तर्क यह है कि सरकार कुछ वस्तुओं पर केवल 28 प्रतिशत जीएसटी वसूल रही है ताकि कृषि उपज को जीएसटी से बाहर रखने के बदले राजस्व नुकसान की भरपाई की जा सके. अगर जीएसटी काउंसिल गैर-ब्रांडेड दालों और अन्य कृषि वस्तुओं पर टैक्स लगाना चाहती है तो सबसे पहले 28 फीसदी जीएसटी स्लैब को समाप्त करना होगा. इसके अलावा ऐसे समय में जब हर महीने जीएसटी कलेक्शन बढ़ रहा है तो खाद्य पदार्थों को जीएसटी के तहत 5 प्रतिशत के टैक्स स्लैब के तहत लाने की क्या जरूरत है? बताते चलें कि ये आइटम अभी तक किसी भी टैक्स स्लैब के तहत नहीं थे.
देश के तमाम राज्यों में होगी बैठक
दोनों नेताओं ने कहा कि अब तक दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा में राज्य स्तरीय बैठक हो चुकी हैं और अगले सप्ताह पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात में व्यापार जगत के नेता मिलेंगे. इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में भी बैठकें होंगी. कैट ने कहा, ”ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्यों के वित्त मंत्री, खाद्यान्न और अन्य वस्तुओं में काम करने वाले छोटे निर्माताओं और व्यापारियों के हितों की रक्षा करने में विफल रहे हैं.”
जीएसटी परिषद के फैसलों से छोटे उद्योगों व्यापारियों को 92000 करोड़ का लाभ
नई दिल्ली। सरकार ने सोमवार को बताया कि करीब दो साल पहले देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद से जीएसटी परिषद के विभिन्न निर्णयों से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) तथा छोटे व्यापारियों को 92,000 करोड़ रुपए का लाभ हुआ है। वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के उत्तर में कहा कि जीएसटी परिषद ने लगातार छोटे व्यापारियों और एमएसएमई क्षेत्र को राहत दी है, ताकि वे जीएसटी के तहत पंजीकरण कराने के लिए आगे आएं। परिषद के विभिन्न निर्णयों से उन्हें अब तक 92,000 करोड़ रुपए का लाभ मिल चुका है। परिषद की पिछली बैठक में भी राहत के कुछ निर्णय लिए गए हैं, जिनमें जनवरी व्यापारियों को जीएसटी से लाभ से नए और आसान रिटर्न फॉर्म लागू करना शामिल है। श्री ठाकुर ने बताया कि धीरे-धीरे जीएसटी के ढांचें में सुधार हो रहा है। शुरुआत में जीएसटी नेटवर्क में जो दिक्कत आई थी उस पर काम किया गया है और अब बहुत सुधार हुआ है। पिछले महीने एक ही दिन में 21 लाख रिटर्न भरे गये जो बताता है कि जीएसटी नेटवर्क अब पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहा कि जीएसटी लागू होने से पहले करदाताओं की जो संख्या थी उससे दोगुने करदाता जीएसटी से अब तक जुड़