शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल

बजट घाटे की कसौटी पर पुनर्विचार का समय
यह 1986 की बात है। मैंने एक आलेख लिखा, जिसमें बजट घाटे के विचार पर चर्चा की गई थी। कारण यही था, क्योंकि राजीव गांधी सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से उधारी लेकर वृद्धि के वित्तीय बंदोबस्त का विचार स्वीकार किया था। इसका मतलब था कि केंद्रीय बैंक को नोट छापने पड़ते। यह विचार एलके झा के माध्यम से आया था, जो भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी रहे और 1960 के दशक के अंत में आरबीआई गवर्नर का दायित्व भी उनके पास रहा।
भारत और विदेश में तमाम अर्थशास्त्री इस रणनीति से जुड़े जोखिमों की ओर संकेत कर रहे थे। विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) इसे लेकर बहुत चिंतित था, जो कुछ समय पहले ही लातिन अमेरिकी ऋण संकट से सफलतापूर्वक निपटने की अपनी कामयाबी के शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल खुमार में था। कुछ समय पहले ही उसने राजकोषीय घाटे के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत के स्तर को तय किया था। मुद्रा कोष के शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल हिसाब से यह घाटे का वांछित या वास्तव में पूर्णता से परिपूर्ण स्तर था।
मैंने लेख की शुरुआत इसी हैरानी के साथ की थी कि आखिर एक ही प्रकार का पैमाना सभी के लिए कैसे मुफीद हो सकता है। वैसे भी, सरकारें घाटे को यूं ही बेमतलब नहीं बढ़ातीं। वे तो कल्याणकारी योजनाओं और निवेश दोनों के लिए पैसों का इंतजाम करने की कोशिशों में ऐसा करती आई हैं।
अपने तर्कों में मैंने जनसंख्या के आकार को एक प्रासंगिक निर्धारक के रूप में पेश किया। इस कवायद में मैंने सुझाव दिया कि केवल जीडीपी का अनुपात ही घाटे पर दृष्टि डालने का उचित तरीका नहीं, बल्कि इसमें प्रति व्यक्ति पैमाने को भी शामिल किया जाए। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि कुछ साल यही विचार कार्बन उत्सर्जन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। मुझे इसका कोई श्रेय नहीं, लेकिन प्रति व्यक्ति मापने का यही विचार किसी अन्य के मन में भी कौंधा था।
बहरहाल, मेरे एक बहुत करीबी अर्थशास्त्री मित्र, जिन्होंने बाद में कई उल्लेखनीय पेशेवर उपलब्धियां अपने नाम कीं, ने फोन करके मुझे कहा कि मैं इस प्रकार की वाहियात बातें न लिखूं। उनकी नजर में मैं खुद को बेवकूफ बना रहा था। मैंने उनसे पूछा कि इस विचार में क्या खामी थी। उनके पास कोई कारगर जवाब नहीं था। हालांकि, यह बात अलग है कि बाद में उन्होंने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वाले विचार का समर्थन किया।
वैयक्तिक रूप मैं यही सोचता हूं कि हर किसी को मेरी दाद देनी चाहिए थी, लेकिन जैसा कि अखबार के आलेखों के साथ होता है तो यहां तक कि मैं भी जल्द ही भुला देता हूं। अब मैं सोचता हूं कि उस विचार को पुनर्जीवित करने का समय आ गया है। बुनियादी रूप से सवाल यही है कि सभी सर्वविदित कारणों के चलते यदि निवेश और कल्याणकारी व्यय के बीच संतुलन का पलड़ा निश्चित रूप से कल्याणकारी व्यय के पक्ष में झुके तो आप जनसंख्या के आकार को कैसे देखते हैं? आखिर, क्या पश्चिमी देशों की हालिया आय समर्थित योजनाएं देश में लोगों की संख्या पर आधारित नहीं थीं?
मैं एक क्षण शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल के लिए भी ऐसा नहीं कह रहा हूं कि जीडीपी के अनुपात में घाटे वाली कसौटी के विचार को पूरी तरह तिलांजलि दे देनी चाहिए। मेरे कहने का यही आशय है कि केवल यही एक पहलू नहीं हो सकता। वास्तव में, कम जीडीपी के साथ जनसंख्या का आकार और अधिक प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि केवल करों के माध्यम से निवेश व्यय और कल्याणकारी खर्च की पूर्ति नहीं हो सकती। चूंकि मामला ऐसे खर्च का है तो कहीं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के झमेले में न फंस जाए, ऐसे में कोई मध्यमार्ग भी निकालना ही होगा।
ऐसे किसी भी मध्यमार्ग के अभाव में सरकारों के स्तर पर न केवल निवेश व्यय, बल्कि कल्याणकारी योजनाओं पर शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल खर्च में निश्चित रूप से कटौती देखने को मिलेगी। हमने दोनों मोर्चों पर ऐसा घटित होते देखा है। यह छोटी आबादी के लिए चल सकता है। लेकिन बड़ी आबादी, 30 करोड़ से अधिक लोगों के लिए यह बहुत अव्यावहारिक होगा, क्योंकि यह लोकतांत्रिक रूप से या अन्यथा किसी प्रकार से चुनी हुई सरकारों की जिम्मेदारियों की पूरी तरह अवहेलना करता है।
ऐसे में क्या बेहतर तरीका होगा? क्या सकल घरेलू उत्पाद और जनसंख्या के भारांश का औसत उपयुक्त होगा? क्या इस प्रकार का औसत प्राप्त करना संभव भी हो सकेगा? मैं नहीं जानता, क्योंकि मैं कोई सांख्यिकीविद् नहीं हूं। लेकिन मैं सोचता हूं कि हमारे पास एक अवसर है कि हम 40 साल पहले किसी प्रकार तय करके हम पर थोप दिए गए पैमाने के बजाय घाटे की उचित कसौटी को तैयार करें। मेरे ख्याल से तीन प्रतिशत की कसौटी के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। यदि कोई आधार था तो मुझे बताएं, मैं इससे जुड़ी अपनी शिकायतें वापस ले लूंगा।
बहरहाल, 40 वर्षों के अवलोकन के बाद मैं एक बात समझता हूं कि कि बजट घाटे के सुरक्षित स्तर का आकलन करने में केवल जीडीपी ही पर्याप्त मानक नहीं है। जनसंख्या को भी इस पद्धति में जोड़ना होगा। यह सामान्य समझ की बात है। आखिरकार, हमारे पास 15 करोड़ भूमिहीन श्रमिक हैं, जिनके पास कोई कौशल नहीं और उनके पोषण की स्थिति भी बेहद खराब है, जो कम से कम किसी भी तरह उपलब्ध कराना ही होगा। इस मामले में ‘मात्र जीडीपी’ वाली पद्धति खरी नहीं उतरती।
रसरंग में कवर स्टोरी: कैसे चढ़ रहा है कला का बाजार
हाल ही में आई खबर हर किसी के लिए चौकाने वाली थी। खबर के अनुसार दो भारतीयों विग्नेश सुंदरासन और आनंद वेंकटेश्वरन ने 6.93 करोड़ डॉलर (516 करोड़ रुपए) का एक डिजिटल कोलॉज खरीदा है। यह कोलॉज बिपल नामक एक डिजिटल आर्टिस्ट ने बनाया था। विग्नेश और आनंद दोनों कोई कला के पुजारी नहीं हैं, बल्कि शुद्ध निवेशक हैं। कला का बाजार एकदम नई चीज नहीं है, लेकिन इस घटना ने सभी का ध्यान तेजी से बढ़ते इस ट्रेंड की ओर खींचा है। इन दोनों ने जो पीस खरीदा है, उसे तकनीकी तौर पर एनएफटी यानी नॉन फंजीबल टोकन कहते हैं। यह कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा क्रिप्टोकरेंसी में होता है।
जाहिर सी बात है, बदलती दुनिया में कला अब केवल आपके ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने की चीज नहीं रह गई है। कलाकृतियों में निवेश, चाहे फिर वे मूर्त रूप में हो या डिजिटल रूप में, का ट्रेंड चल पड़ा है। सोना, बांड्स, इक्विटी की तरह ही अब पेंटिंग्स, मूर्तियां और डिजिटल आर्ट भी निवेश का पोर्टफोलियो मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं।
क्या यह शेयर बाजार से जुड़ा है?
कला में निवेश का शेयर बाजार से कोई लेना-देना नहीं होता। शेयर बाजार कई कारकों से संचालित होता है। हो सकता है किसी वजह से शेयरों में किया गया आपका निवेश औंधे मुंह गिर जाए, लेकिन कला में किया गया निवेश इससे अप्रभावित रहता है। यह आर्ट गैलरीज के द्वारा संचालित होता है।
क्या कोई भी कर सकता है निवेश?
हां, लेकिन कला में निवेश वही लोग करते हैं जिनके पास निवेश के लिए अतिरिक्त पैसा होता है या जिन्हें तत्काल लिक्विड की जरूरत नहीं होती। इसका कारण यह है कि आवश्यकता पड़ने पर आप इसे तत्काल नकदी में नहीं बदल सकते। उसके लिए आपको उचित खरीदार की प्रतीक्षा करनी होगी। कई कला निवेशक तो यह निवेश आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखकर करते हैं। इसीलिए इसे दीर्घकालिक निवेश माना जाता है।
किश्तों में भी निवेश संभव है?
कलाकृतियां तो बहुत महंगी होती है। तो इनमें एक सामान्य व्यक्ति कैसे निवेश कर सकता है? यदि आप कला में निवेश करना चाहते हैं और आपके पास एकमुश्त बहुत सारा पैसा नहीं है तो भी आपको निराश होने की आवश्यकता नहीं है। दुनिया की कई जानी-मानी गैलरीज अब अपना आर्ट वर्क आसान किश्तों पर भी देती हैं। यानी टेलीविजन या रेफ्रीजरेटर की तरह कलाकृतियों को किश्तों में भी खरीद सकते हैं।
क्या साझेदारी में निवेश संभव है?
मास्टरवर्क्स जैसी वेबसाइट अरबों डॉलर मूल्य वाली पेंटिंग में आंशिक निवेश की सुविधा देती हैं। ऐसी वेबसाइटों पर आप अन्य निवेशकों के साथ मिलकर किसी उच्च मूल्य वाली कलाकृति में निवेश करते हैं और उसका रिटर्न सभी में बांट दिया जाता है। वेबसाइट पर आप कला निवेश पर मिलने वाले रिटर्न के रुझान भी देख सकते हैं। सातची और मैसेनास आदि भी ऐसी ही वेबसाइट हैं जहां आप कलाकृतियों में आंशिक निवेश कर सकते हैं। समझने के लिए मान सकते हैं कि यह कुछ-कुछ म्यूचुअल फंड्स जैसा होता है।
कलाकार के कॅरियर से है नाता?
किसी भी निवेश की सफलता इस बात में है कि भविष्य में उसके मूल्य में वृद्धि हो। यह एक सामान्य सिद्धांत है। जैसे किसी कंपनी की सफलता के साथ ही शेयरों और बॉन्ड्स का मूल्य बढ़ता है, वैसे ही आपने जिस कलाकार की कलाकृति में निवेश किया है, यदि भविष्य में उसका करियर जोर पकड़ता है तो आपकी कलाकृति की कीमत भी बढ़ेगी।
महामारी के बीच आर्ट का बाज़ार गुलज़ार. शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल
सितंबर 2020 में एक तरफ कोविड के कारण पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था, उसी दौरान 25 सितंबर 2020 को न्यूयॉर्क के क्रिस्ट्रीज नीलामीघर में कलाकृतियों की नीलामी रखी गई। कुल नीलामी हुई 8.28 करोड़ डॉलर (करीब 617 करोड़ रुपए) की। यह एक साल पहले की तुलना में 100 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी थी। इस ऑनलाइन नीलामी में 41 देशों के कला निवेशकों ने भाग लिया था।
करोड़ों में बिकती हैं भारतीय कलाकारों की पेंटिंग्स
- साल 1961 में वीएस गायतोंडे द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग इसी साल 11 मार्च को हुई एक नीलामी में 39.98 करोड़ रुपए में बिकी है। यह अब तक का भारतीय पेंटिंग्स की नीलामी शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल का रिकॉर्ड है। पिछले साल गायतोंडे द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग 32 करोड़ रुपए में नीलाम की गई थी।
- सैयद हैदर रजा द्वारा 1972 में बनाई गई पेंटिंग 'तपोवन' को 2018 में न्यूयॉर्क में क्रिस्टीज निलामी घर ने 29.04 करोड़ रुपए में बेचा था। यह उस समय विश्व रिकॉर्ड था।
- सितंबर 2020 में भूपेन खाकहार द्वारा 1971 में चित्रित रेड फोर्ट पोर्ट्रेट को 19.17 करोड़ रुपए में नीलाम किया गया था।
- 2015 में न्यूयॉर्क की नीलामी में अमृता शेर-गिल की द लिटिल गर्ल इन ब्लू को 18.6 करोड़ रुपए में नीलाम किया गया था।
48 करोड़ रु. की मूर्ति
साल 2020 में गांधारी शैली की एक प्राचीन मूर्ति 'बुद्ध शाक्यमुनि' को क्रिस्टीज नीलामी घ ने 48.3 करोड़ रुपए में बेचा था। यह किसी कलाकृति की नीलामी का एक विश्व रिकॉर्ड है।
कौन हैं बीपल?
इनका असली नाम है माइक विंकलमैन। 39 वर्षीय विंकलमैन अमेरिकी हैं जो हाल ही में 516 करोड़ रुपए में अपने डिजिटल कोलॉज की नीलामी के कारण चर्चा में आए हैं। कम्यूटर साइंस में ग्रेजुएट विंकलमैन पिछले डेढ़ दशक से डिजिटल पेंटिंग्स बना रहे हैं। उनका यह पीस पिछले 13 साल में उनके द्वारा बनाई गई 5000 डिलिटल पेंटिंग्स का कोलॉज है।
प्रयाग शुक्ल, जाने-माने कला समीक्षक
करोड़ों में क्यों होती हैं कुछ पेंटिंग्स की कीमत?
यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है कि कुछ कलाकृतियां करोड़ों-अरबों रुपए तक में कैसे बिक जाती हैं? आखिर ऐसा क्या होता है कि कोई कलाकृति इतनी मूल्यवान बन जाती है? इसका एक कारण तो यह है कि जो कृति किसी कलाकार ने एक बार बना दी है, ठीक वैसी ही फिर नहीं बनेगी और जब वह कलाकार इस दुनिया में नहीं रहेगा/रहेगी, तो ‘उस जैसी’ कृति की भी संभावना वैसे भी समाप्त हो जाएगी। कृतियों की कीमत समय के साथ बढ़ती रहती है। मुझे दिल्ली की एक गैलरी में कुछ वर्ष पहले एक महिला मिली थी, जिन्होंने बताया था कि मकबूल फ़िदा हुसैन की एक पेंटिंग उन्होंने बारह सौ रुपए में खरीदी थी और कई वर्षों बाद उसे बेचने पर उन्हें तीन करोड़ मिले थे।
आखिरकार शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल ये कीमतें तय कैसे होती हैं? जाहिर है कि सबसे पहले तो उसे कला-समाज ही तय करता है कि अमुक कलाकार ‘अच्छा’ या ‘बहुत अच्छा’ है, उसके जैसा और कोई दूसरा नहीं। और यह ‘कला समाज’ बनता किनसे है? स्वयं कलाकारों, कला-समीक्षकों, गैलरियों, संग्रहालयों, कला-संग्राहकों, पारखियों, नीलामी-घरों आदि से। इस मूल्यांकन में कभी-कभी बहुत देर भी हो जाती है, जैसी कि वान गॉग के मामले में हुई। उनके भाई थियो मानते थे कि वान गॉग एक ‘बहुत बड़ा कलाकार’ है, पर तब का कला शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल समाज नहीं। धीरे-धीरे उसमें भूल-सुधार हुआ और अब वान गॉग की चित्राकृति ‘सनफ्लॉवर’ दुनिया की सबसे महंगी पेंटिंग्स में से एक है।
किसी कलाकृति का बहुत अच्छा होना, असाधारण होना, उसका पुराना होना और उसका लगातार गुणगान होना भी उसकी कीमतों में बढ़ोतरी करते हैं। किसी कलाकार की जो पेंटिंग अभी करोड़ों में बिकी है, वह पहले शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल लाखों में खरीदी गई होगी। हो सकता है कि अब जिसके पास गई है, वह उसे कुछ वर्षों बाद और बड़ी कीमत में बेचने का अवसर पा जाए! हां, यहां पैसा उसे ही मिलता है, जिसके पास अमुक कलाकृति होती है। जिसने बनाई है, उसे तो एक बार कृति को बेच देने के बाद फिर कोई राशि नहीं मिलती। लोग ऐसे कलाकारों की खोज में रहते हैं, जो अभी युवा हैं, पर भविष्य में उनसे उम्मीद की जा सकती हैं।
क्या केजरीवाल माफी मांगेंगे और जैन का इस्तीफा लेंगे: कांग्रेस
नवभारत टाइम्स 5 घंटे पहले
नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) कांग्रेस ने तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन की मालिश से शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल जुड़े वीडियो के मामले को लेकर मंगलवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा और सवाल किया कि मालिश करने वाले के बलात्कार का आरोपी होने की बात सामने आने के बाद क्या केजरीवाल माफी मांगेंगे और जैन का इस्तीफा लेंगे।
पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘अरविंद केजरीवाल का पाखंड हर पल और हर दिन उजागर हो रहा है। ये लोग राजनीति बदलने आए थे और खुद इस तरह बदल गए।’’
कांग्रेस नेता अलंका लांबा ने कहा, ‘‘दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन जी जेल में मालिश करवा रहे रहे हैं। दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी ने कहा कि वह फिजियोथेरेपिस्ट की सेवा ले रहे थे। अब सच्चाई सामने आई है कि वह नाबालिग बच्चियों से बलात्कार के मामले में बंद रिंकू से मालिश करवा रहे थे।’’
उन्होंने सवाल किया, ‘‘केजरीवाल जी, आपको माफी मांगनी चाहिए या नहीं? जैन का इस्तीफा होना चाहिए या नहीं?’’
लांबा ने कहा, ‘‘हम आम आदमी पार्टी की महिला विधायकों और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष से उम्मीद करते हैं कि वह केजरीवाल से माफी मांगने को कहेंगी और जैन से इस्तीफा देने के लिए बोलेंगी।’’
उल्लेखनीय है कि एक वीडियो में तिहाड़ जेल में दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन की मालिश करते हुए दिख रहा व्यक्ति फिजियोथेरेपिस्ट नहीं, बल्कि एक कैदी है जो बलात्कार मामले में वहां बंद है। सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
आम आदमी पार्टी (आप) ने दावा किया था कि जैन फिजियोथेरेपी करा रहे थे।
गौरतलब है कि शनिवार को ‘आप’ उस समय आलोचनाओं के घेरे में आयी थी, जब जैन की जेल में कथित तौर पर मालिश कराते और लोगों से मिलते हुए एक वीडियो सामने आया। जैन धनशोधन के आरोपों पर पिछले पांच महीने से न्यायिक हिरासत में हैं।
श्रद्धा मर्डर केस: साकेत कोर्ट ने 5 दिन में आफताब का नार्को टेस्ट करने का दिया आदेश
राजधानी दिल्ली स्थित महरौली के श्रद्धा मर्डर केस के आरोपी आफताब पूनावाला को दिल्ली पुलिस ने हफ्तेभर पहले ही गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन इस केस से जुड़े कई सवाल अभी भी बरकरार हैं। आफताब ने जो जानकारी दी है पुलिस उसकी पड़ताल कर रही है। हर उस जगह की तलाश की जा रही है जहां पर आफताब ने श्रद्धा के शव के टुकड़े फेंके थे।
आफताब पूछताछ में लगातार पुलिस को गुमराह कर रहा, ऐसे में उसने नार्को टेस्ट की इजाजत मांगी थी। जिस पर आज साकेत कोर्ट का फैसला आ गया है। कोर्ट ने रोहिणी फॉरेंसिक साइंस लैब को 5 दिनों के भीतर आरोपी का नार्को टेस्ट कराने का आदेश दिया है। इस टेस्ट से उम्मीद जताई जा रही कि श्रद्धा केस से जुड़े कई अहम सवालों के जवाब जांच टीम को मिल जाएंगे।
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने इसके लिए कोर्ट में अर्जी लगाई थी। पुलिस का कहना है कि आफताब पुलिस पूछताछ में को-ऑपरेट नहीं कर रहा था और पुलिस की जांच को भटकाने की कोशिश कर रहा था।
इससे पहले गुरुवार को भी इस केस की सुनवाई हुई थी। उस दौरान कोर्ट ने आफताब की पुलिस रिमांड 5 दिनों के लिए बढ़ा दी थी।
पुलिस ने अलग-अलग इलाकों से आरोपी आफताब अमीन पूनावाला की लिव-इन पार्टनर के शरीर के 13 अंग बरामद किए हैं, जिन्हें महिला का माना जा रहा है, जिन्हें डीएनए टेस्ट के लिए भेजा जाएगा। जांच दल डेटिंग एप बंबल से भी संपर्क कर सकता है, जिसके जरिए दोनों की मुलाकात हुई थी।
पुलिस अधिकारी के अनुसार, पीड़िता श्रद्धा वाकर के दोस्तों में से एक लक्ष्मण, जिसने उसके पिता को सतर्क किया था, को जांच में शामिल होने के लिए कहा जाएगा। अधिकारी ने बताया था, 'हमने पूनावाला के नार्को टेस्ट के लिए आवेदन किया है। हमें अभी तक शेयर मार्केट से जुड़े सामान्य सवाल अदालत से अनुमति नहीं मिली है।'
अट्ठाईस वर्षीय पूनावाला ने मई में कथित तौर पर श्रद्धा वाकर का गला घोंट दिया था और उसके बाद उसके शरीर के 35 टुकड़े कर दिए थे, जिसे उसने दक्षिण दिल्ली के महरौली में अपने आवास पर लगभग तीन सप्ताह तक 300 लीटर के फ्रिज में रखा और फिर पिछले कई दिनों में शहर भर में फेंक दिया।
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