फोरेक्स रणनीति

सूचकांक विधि

सूचकांक विधि

सूचकांक विधि

सर्वेक्षण तथा अध्ययन

ग्रामीण श्रम अन्वेषणों के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है:

1. खेतिहर तथा ग्रामीण श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों की नई श्रृंखला के संशोधन/संकलन के लिए मूल आंकड़ों का संग्रहण

2. ग्रामीण श्रमिकों की सामान्यत: तथा खेतिहर श्रमिकों की विशेषत: महत्वपूर्ण सामाजार्थिक विशेषताओं पर विश्वसनीय आंकलन करना

3. ग्रामीण श्रम परिवारों की सामाजार्थिक स्थितियों में प्रवृतियों का विश्लेषण- 18 खेतिहर तथा गैर खेतिहर व्यवसायों के संबंध में मजदूरी दरों का संग्रहण , संकलन तथा प्रकाशन

1. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-खेतिहर श्रमिक/ग्रामीण श्रमिक का प्रति माह प्रकाशन

2. 18 खेतिहर तथा गैर-खेतिहर व्यवसायों से संबंधित मजदूरी दर आंकड़ों का मासिक प्रकाशन

(i) ग्रामीण परिवारों का उपभोग एवं व्यय

(ii) ग्रामीण श्रम परिवारों की ऋणग्रस्तता

(iii) ग्रामीण परिवारों की सामान्य विशेषताएं

(iv) मजदूरी एवं उपार्जन

(v) रोजगार तथा बेरोजगारी से संबंधित रिपोर्ट ।

3. मई , 2007 माह तक ग्रामीण मजदूरी दर आंकडों को प्रकाशित कर दिया गया था ।

2. श्रमिक वर्ग का पारिवारिक आय एवं व्यय सर्वेक्षण

प्रथम सर्वेक्षण आधार 1960 = 100 के लिए वर्ष 1958-59 में , द्वितीय 1971 = 100 के लिए 1970-71 में , तृतीय आधार 1982 = 100 के लिए वर्ष 1981-82 में , वर्तमान श्रृंखला 1982 = 100 के आधार संशोधन हेतु चतुर्थ सर्वेक्षण वर्ष 1999-2000 में किया गया ।

औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार का संशोधन तथा नया वर्ष आधार के रूप सूचकांक विधि सूचकांक विधि में लेकर सूचकांक का संकलन तथा आय एवं व्यय आंकड़ों का विश्लेषण तथा केन्द्र विशेष रिपोर्टों का प्रकाशन

कारखानों , खननों , बागानों , रेलवे , मोटर परिवहन उपक्रम , विद्युत उत्पादन , वितरण संस्थानों तथा पोत एवं गोद में कार्यरत औद्योगिक श्रमिकों का मदवार उपभोग व्यय का संग्रहण , मासिक/साप्ताहिक मूल्य

1. औद्योगिक श्रमिकों का सूचकांक प्रतिमाह संकलन एवं प्रकाशित किया जाता है ।

2. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वार्षिक रिपोर्ट का प्रकाशन

3. प्रत्येक सर्वेक्षण की अलग से केन्द्र विशेष रिपोर्टो का प्रकाशन जो साथ- 2 केन्द्र की आर्थिक पृष्ठ भूमि , पारिवारिक विशेषताओं जैसे साक्षरता दर , वैवाहिक स्थिति , कार्य स्थिति , आर्थिक स्थिति , परिवार सरंचना , अर्जन क्षमता , पारिवारिक आय एवं व्यय , खाद्य-उपभोग , बजट स्थिति , ऋणग्रस्तता , आवास आदि पर सूचना सम्मिलित करती है ।

4. दिल्ली , कोलकाता , मुम्बई , चेन्नई , बगलौर तथा अहमदाबाद केन्द्रों के लिए 6 केन्द्र विशेष रिपोर्टे अवमुक्त कर दी गई है । 14 और रिपोर्टे अवमुक्त किए जाने हेतु तैयार हैं तथा 58 रिपोर्टे मुद्रणाधीन हैं । अखिल भारतीय सामान्य रिपोर्ट का प्रारूपण पूरा कर लिया गया है तथा इसे अन्तिम रूप दिया जा रहा है ।

3. व्यावसायिक मजदूरी सर्वेक्षण

1. मुख्य विनिर्माण , खनन तथा बागान उद्योगों के मजदूरी दर सूचकांक बनाने हेतु आवश्यक मूल्य आंकड़े प्राप्त करना

2. चयनित उद्योगों में विभिन्न व्यवसायों में श्रमिकों के मजदूरी घटकों पर आंकड़े प्राप्त करना ।

3. समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 के कार्यान्वयन का अध्ययन ।

विनिर्माण , बागान , खनन तथा सेवा क्षेत्र उद्योगों में व्यवसायवार रोजगार मजदूरी दर , समयोपरि तथा उपार्जन पर आंकड़ों को सूचकांक विधि एकत्रित किया जाता है ।

छठे दौर के तहत चार सेवा क्षेत्र उद्योगों के संबंध में रिपोर्टे अवमुक्त कर दी गई है तथा 3 बागान तथा चाय संसाधन उद्योगों पर भी रिपोर्ट अवमुक्त कर दी गई है । 4 खनन उद्योगों की रिपोर्ट को अन्तिम रूप दिया जा रहा है । सूती वस्त्र उद्योग में फील्ड सर्वेक्षण से संबंधित आंकडों का सारणीकरण जारी है ।

4. श्रमिकों के विभिन्न समूहों की सामाजार्थिक स्थितिय ां

वर्ष 2001 ( 4 योजना स्कीमों अर्थात् (i) असंगठित क्षेत्र सर्वेक्षण ( 1971 ) (ii) शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रमिकों का सर्वेक्षण ( 1973 ) (iii) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम , 1948 के कार्यान्वयन पर मूल्यांकन अध्ययन ( 1981 ) तथा (iv) महिला श्रमिकों का सामाजार्थिक सर्वेक्षण ( 1975 ) को मिलाकर स्कीम प्रारम्भ की गई ।

लक्षित समूहों की कार्यकारी एवं निर्वाह स्थितियों को सुधारने के लिए उचित उपाय निर्धारण हेतु सुझाव देने के लिए संबंधित श्रम अधिनियमों के तहत निर्धारित प्रावधानों के कार्यान्वयन के मूल्यांकन की दृष्टि से तथा सूचीबध्द नियोजनों में लागू न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के प्रावधानों की सीमा का मूल्यांकन करने हेतु उद्योगो/नियोजनों में असंगठित श्रमिकों की कार्यकारी एवं निर्वाह स्थितियों , अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा महिला श्रमिकों की सामाजार्थिक स्थितियों पर अखिल भारतीय स्तर पर आंकड़े एकत्रित करने हेतु विस्तृत कार्य क्षेत्र तथा विषय विस्तार सहित अखिल भारतीय आधार पर बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण आयोजित करना ।

अब तक महिला श्रमिकों पर सामाजार्थिक सर्वेक्षण , अनुसूचित जाति श्रमिकों पर 9 तथा अनुसूचित जनजाति श्रमिकों पर 7 तथा असंगठित क्षेत्र श्रमिकों पर 30 सर्वेक्षण आयोजित किए गए हैं । कृषि , खनन , भवन एवं निर्माण तथा बीड़ी निर्माण संस्थानों में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के कार्यान्वयन के मूल्यांकन हेतु अब तक 25 अध्ययन किए जा चुके है । सभी सर्वेक्षणों/अध्ययनों की रिपोर्टे प्रकाशित कर दी गई है ।

5. उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण ( प्रतिदर्श क्षेत्र )

प्रतिदर्श क्षेत्र वर्ष 1976-77 में प्रारम्भ किया गया ।

1. विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार , अनुपस्थिति , श्रम आवर्त , उपार्जन , तथा श्रम लागत पर डेटाबेस तैयार करना ।

उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट वर्ष 2003-2004 भाग- I अवमुक्त कर दी गई है तथा वर्ष 2003-2004 के लिए अनुपस्थिति , श्रम आवर्त , रोजगार तथा श्रम लागत

( भाग- II) पर रिपोर्ट मुद्रणाधीन है । वर्ष 2004-05 के लिए आंकडों को अन्तिम रूप दिया जा रहा है ।

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अब तक 40 उद्योगों/संस्थानों में 45 सर्वेक्षण किए जा चुके हैं तथा 44 सर्वेक्षणों की रिपोर्टें ( सीमित परिचालन ) प्रकाशित की जा चुकी है ।

3. उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण ( गणना क्षेत्र )

गणना क्षेत्र वर्ष 1960-61 में प्रारम्भ किया गया ।

1. विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार , अनुपस्थिति , श्रम आवर्त , उपार्जन , तथा श्रम लागत पर डेटाबेस तैयार करना ।

यूएनडीपी की मानव विकास सूचकाँक रिपोर्ट, नॉर्वे इस वर्ष भी सबसे ऊपर

मानव विकास सूचकाँक रिपोर्ट सभी देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का आकलन कर तैयार की जाती है.

मानव विकास सूचकाँक रिपोर्ट सभी देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का आकलन कर तैयार की जाती है.

यूएनडीपी की मानव विकास सूचकाँक रिपोर्ट, नॉर्वे इस वर्ष भी सबसे ऊपर

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने अपनी सालाना मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) रिपोर्ट जारी की है. पिछले साल की तरह इस बार भी इस सूची में नॉर्वे सबसे ऊपर रहा और उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड को जगह मिली.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 में 189 देशों में मानव विकास सूचकांक (HDI) की सूची में भारत 131वें स्थान पर रहा, वहीं भूटान 129वें स्थान पर, बांग्लादेश 133वें स्थान पर, सूचकांक विधि नेपाल 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा.

PHDI को शामिल करने के बाद, 50 से अधिक देश ‘उच्च मानव विकास समूह’ से बाहर हो गए, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे जीवाश्म ईंधन और भौतिक पदचिह्न पर अत्यधिक निर्भर हैं.

भारत की राजधानी दिल्ली में, एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के नज़रिये से ये रिपोर्ट जारी किये जाने के समय, भारत में यूएनडीपी की देश प्रतिनिधि, शोको नोडा ने कहा, “यह रिपोर्ट एकदम सही समय पर आई है. पिछले सप्ताह ही, जलवायु महत्वाकाँक्षा सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें शामिल देशों ने अपने कार्बन-पदचिन्ह घटाने के लिये प्रतिबद्धताएँ ज़ाहिर की हैं."

"अगर हम साथ मिलकर काम करें तो पृथ्वी को नष्ट किए बिना, प्रत्येक राष्ट्र के लिये मानव विकास में वृद्धि सम्भव है – यानि लम्बी आयु, अधिक शिक्षा और उच्च जीवन स्तर. ”

भारत सरकार में नीति आयोग के सदस्य, रमेश चन्द ने कहा, “इस वर्ष की रिपोर्ट एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उजागर कर रही है, जो लम्बे समय से चिन्ता का विषय है. मानव विकास की व्याख्या के सन्दर्भ में ये बात सामने आ रही है – कि आख़िर हम अपनी भावी पीढ़ी को कितना वंचित कर रहे हैं. रिपोर्ट में ऐसे समाधान प्रस्तुत किये गए हैं, जिनसे उत्सर्जन में 37% की कमी आएगी और इससे हमें जलवायु लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी.”

प्रगति का नया स्वरूप

रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि जैसे-जैसे लोग और पृथ्वी ग्रह एक नए भूवैज्ञानिक युग, एंथ्रोपोसीन यानि मानव युग में प्रवेश कर रहे हैं, सभी देशों को प्रगति के अपने मार्गों को नया स्वरूप देना होगा. यह पूरी तरह से मनुष्यों द्वारा ग्रह पर बनायेएदबावों की जवाबदेही तय करके और बदलाव की राह में आने वाले शक्ति और अवसर के असन्तुलन को ख़त्म करके किया जा सकता है.

बुधवार को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने अपनी सालाना मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) रिपोर्ट जारी की

कोविड-19 महामारी दुनिया के सामने नवीनतम संकट है, लेकिन अगर मानव प्रकृति पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ता, तो शायद यह अन्तिम संकट न हो.

समुद्र के स्तर में वृद्धि से ख़तरे के दायरे में आने वाले अधिकाँश लोग विकासशील देशों और विशेष रूप से एशिया और प्रशान्त में रहते हैं. पर्यावरणीय झटके पहले से ही दुनियाभर में जबरन विस्थापन का एक मुख्य कारण हैं, ऐसे में अनुमान यह है कि वर्ष 2050 तक दुनिया भर में 1 अरब से अधिक लोग विस्थापन का सामना कर सकते हैं.

समाधान तन्त्र

मानव विकास रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि सार्वजनिक कार्रवाई से इन असमानताओं का निदान सम्भव है – उदाहरण के लिये, इसमें प्रगतिशील कराधान और निवारक निवेश और बीमा के माध्यम से तटीय समुदायों की रक्षा करना शामिल है.

यह एक ऐसा क़दम है, जो दुनिया में समुद्र तटों पर रहने वाले 84 करोड़ लोगों के जीवन की रक्षा कर सकता है. लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिये ठोस प्रयासों की ज़रूरत है, ताकि यह कार्रवाई मानव को पृथ्वी के ख़िलाफ़ न खड़ा कर दे.

भारत में संयुक्त राष्ट्र की देश प्रतिनिधि व संयोजक, रेनाटा डेज़ालिएन ने कहा, “मानव विकास सूचकाँक न केवल हमारी प्रगति दर्शाता है, बल्कि उन क्षेत्रों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, जिन पर अधिक ध्यान देने और जिन्हें अधिक संसाधन व हिमायत की ज़रूरत है.”

“जलवायु परिवर्तन स्पष्ट रूप से हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर उभर रहा है, और इस वर्ष का मानव विकास सूचकाँक इसी बात पर केन्द्रित है कि मानव विकास जलवायु संकट से कैसे जुड़ा है."

"यह संयोजन हमें अपनी जीवन शैली, व्यवहार और निर्णयों पर पुनर्विचार करने के लिये मजबूर करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह युग हमें गर्त में न ढकेल दे. यह दुनिया भर के देशों के उदाहरण प्रस्तुत करता है कि हममें से प्रत्येक उनसे कैसे प्रेरणा ले सकते हैं.”

रिपोर्ट के आधार पर, यूएनडीपी-भारत ने विकास के जटिल मुद्दे के प्रबन्धन के लिये प्रकृति, प्रोत्साहन और सामाजिक मानदण्डों के तीन स्तम्भों के आधार पर क्षेत्र के लिये समाधान तन्त्र प्रस्तावित किया है.

इनमें से कुछ हैं - तटीय झाड़ियों का संरक्षण, सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन और एकल उपयोग प्लास्टिक का प्रयोग घटाना. रिपोर्ट में राष्ट्रीय सौर मिशन और भारत द्वारा अपनाए गए महत्वाकाँक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का भी उल्लेख है.

रिपोर्ट के मुताबिक, मानव विकास के अगले मोर्चे में, सामाजिक विकास, मूल्यों और वित्तीय प्रोत्साहनों में आवश्यक बदलाव लाते हुए, प्रकृति के ख़िलाफ़ न जाकर, प्रकृति के साथ सुलह में काम करने की आवश्यकता होगी.

सूचकांक विधि

नीति आयोग के राज्य स्वास्थ्य सूचकांक में केरल अव्वल, उत्तर प्रदेश सबसे पीछे

नीति आयोग ने वर्ष 2019-20 के लिए राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया

By DTE Staff

On: Monday 27 December 2021

नीति आयोग ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया। फोटो: विकास चौधरी

नीति आयोग ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया। फोटो: विकास चौधरी

सोमवार 27 दिसंबर 2021 को नीति आयोग ने वर्ष 2019-20 के लिए राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथे संस्करण जारी किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक ओवरऑल परफॉरमेंस के मामले में केरल सबसे अव्वल रहा, जबकि उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर रहा। हालांकि प्रदर्शन के सुधार के मामले में उत्तर प्रदेश अव्वल स्थान पर रहा।

रिपोर्ट के मुताबिक ओवरऑल प्रदर्शन के मामले में केरल का इंडेक्स स्कोर 82.20 रहा, जबकि उत्तर प्रदेश का 30.57 था। दूसरे स्थान पर तमिलनाडु (72.42), तीसरे पर तेलंगाना (69.96), आंध्रप्रदेश (69.95), महाराष्ट्र (69.14), गुजरात (63.59), हिमाचल (63.17), पंजाब (58.08), कर्नाटक (57.93), छत्तीसगढ़ (50.70), हरियाणा (49.26), असम (47.74), झारखंड (47.55), ओडिशा (44.31), उत्तराखंड (44.21), राजस्थान (41.33), मध्य प्रदेश (36.72), बिहार (31.00) और उत्तर प्रदेश (30.57) का नंबर रहा।

वहीं 2018-19 के मुकाबले 2019-20 में प्रदर्शन में सुधार करने के मामले में 'बड़े राज्यों' की श्रेणी में उत्तर प्रदेश पहले नंबर रहा। उत्तर प्रदेश में 5.52 इंक्रीमेंटल स्कोर दर्ज किया। इसके बाद असम, तेलंगाना, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश, बिहार, केरल, उत्तराखंड, ओडिशा का नंबर रहा।

इसके बाद कई राज्यों को सुधार के मामले में नेगेटिव अंक सूचकांक विधि सूचकांक विधि दिए गए हैं। जिनमें हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और कर्नाटक शामिल हैं।

इस रिपोर्ट को "स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत" शीर्षक दिया गया है। सूचकांक विधि यह राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग उनके स्वास्थ्य परिणामों में साल-दर-साल क्रमिक प्रदर्शन के साथ-साथ उनकी व्यापक स्थिति के आधार पर तय करती है।

इस रिपोर्ट का चौथा दौर राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के 2018-19 से 2019-20 की अवधि में व्यापक प्रदर्शन और क्रमिक सुधार को मापने और उन्हें रेखांकित करने पर केंद्रित है। इस रिपोर्ट को संयुक्त रूप से नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार, सीईओ अमिताभ कांत, अतिरिक्त सचिव डॉ. राकेश सरवाल और विश्व बैंक की वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ शीना छाबड़ा ने जारी किया। इस रिपोर्ट को नीति आयोग ने विश्व बैंक की तकनीकी सहायता और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के गहन परामर्श से विकसित किया है।

'छोटे राज्यों' की श्रेणी में मिजोरम और मेघालय ने अधिकतम वार्षिक क्रमिक प्रगति दर्ज की। जबकि केंद्रशासित प्रदेशों की श्रेणी में दिल्ली के बाद जम्मू और कश्मीर सूचकांक विधि सूचकांक विधि ने सबसे अच्छा क्रमिक प्रदर्शन किया है।

इस मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, ‘राज्यों ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक जैसे सूचकांकों को अपने संज्ञान में लेना शुरू कर दिया है और उनका नीति निर्धारण व संसाधन आवंटन में उपयोग किया है। यह रिपोर्ट प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद, दोनों का एक उदाहरण है।'

वहीं, सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, 'इस सूचकांक के जरिए हमारा उद्देश्य न केवल राज्यों के ऐतिहासिक प्रदर्शन, बल्कि उनके क्रमित प्रदर्शन को भी देखना है। यह सूचकांक राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और एक-दूसरे से सीखने की प्रवृति को प्रोत्साहित करती है।'

इस सूचकांक को 2017 से संकलित और प्रकाशित किया जा रहा है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण और स्वास्थ्य सेवा के वितरण में सुधार के लिए प्रेरित करना है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रोत्साहन के लिए इस सूचकांक को जोड़ने का निर्णय लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस वार्षिक सूचकांक के महत्व पर फिर से जोर दिया है। यह बजट खर्च व इनपुट से आउटपुट व परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायक रही है।

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