मार्टिंगेल सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का व्यवहार उसकी आवश्यकताओं से प्रेरित होता है।
अभिप्रेरणा के सिद्धांत
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अभिप्रेरणा के सिद्धांत | प्रतिपादक |
मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत | मैकडूगल,बर्ट,जेम्स |
शरीर क्रिया सिद्धान्त | मॉर्गन |
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत | फ्रायड |
अंतर्नोद सिद्धान्त | सी०एल०हल |
मांग का सिद्धान्त / पदानुक्रमित सिद्धान्त | मैस्लो |
आवश्कयता सिद्धान्त | हेनरी मरे |
अभिप्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धान्त | फ्रेड्रिक हर्जवर्ग |
सक्रिय सिद्धान्त | मेम्लो,लिंडस्ले,सोलेसबरी |
प्रोत्साहन सिद्धान्त | बोल्स और कॉफमैन |
चालक सिद्धान्त | आर०एस० वुडवर्थ |
अभिप्रेरणा के सिद्धांत एवं उनके प्रतिपादक
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“गणितज्ञ” रणनीति
कभी-कभी सिस्टम्स, जिन्हें इंटरनेट पर विषयसंबंधी संसाधनों पर ऑफर किया जाता है, संकेतकों या तकनीकी विश्लेषण पर आधारित होते हैं। इसलिए आपको अपना पहला अनुबंध खरीदने से पहले , कम से कम ,एक्सचेंज ट्रेडिंग की मूल विषयों से परिचित होना आवश्यक है।
रणनीति “गणितज्ञ” , जिसे नीचे वर्णित किया जाएगा, में कैंडलस्टिक चार्ट के अलावा किसी भी अन्य उपकरणों का उपयोग नहीं किया जाता है। यह संभाव्यता के सिद्धांत पर आधारित है और यहां तक कि उन व्यापारियों को भी, जो “शून्य से” अपना करियर आरंभ करते हैं, पहले दिन से धन कमाने की क्षमता प्रदान कराते हैं ।
उपयोग की गई विधि का औचित्य
हालांकि इस प्रणाली में संभाव्यता के सिद्धांत पर अधिकांश ज़ोर दिया गया है फिर भी किसी विकल्प की खरीद यहां संपूर्ण रूप से औचित्यपूर्ण होता है। बात यह है मार्टिंगेल सिद्धांत कि कोई भी वित्तीय बाजार न केवल आर्थिक संकेतकों पर बल्कि इसके प्रतिभागियों के मनोविज्ञान पर भी निर्भर करता है।
वर्षों से किए गए पर्यवेक्षण के अनुसार, एक रंग में चित्रित मोमबत्तियों की संख्या कभी ग्यारह से अधिक नहीं हुई। इसे समझाना आसान है। बाजार में सर्वदा क्रेता और विक्रेता उपस्थित होते हैं। इस प्रकार, किसी एक दिशा में कोई भी गंभीर उत्तेजना विरोधी पक्ष द्वारा जल्दी से “बुझा” दिए जाने का जोखिम उठाता है।
अब मुख्य विषय के बारे में। आंकड़े बताते हैं कि एक ही रंग की तीन मोमबत्तियों के बाद कीमत में बदलाव की संभावना 50% तक है। ऐसी परिस्थितियो के बनने की संभावना दो गुणा कम रह जाती है जब पांच उत्तेजना मोमबत्तियों के बाद बाजार दिशा बदलती हो। और आठवीं, दसवीं और बारहवीं ‘बार’ में हलचल बहुत ही दुर्लभ है।
“गणितज्ञ” प्रणाली के अनुसार व्यापार कैसे करें?
निष्पादन के दृष्टिकोण से, मार्टिंगेल सिद्धांत यह रणनीति बेहद सरल है। उपरोल्लिखित के आधार पर, व्यापारी को चार्ट पर एक ही रंग के तीन मोमबत्तियों के बनने की प्रतीक्षा करनी होगी और विपरीत दिशा में एक अनुबंध खरीदना होगा। इसके फलस्वरूप:
- CALL विकल्प को एक के बाद एक तीसरे गिरते हुए कैंडलस्टिक (लाल रंग के) के बन्द होने के बाद खरीदा जाता है।
- PUT विकल्प को, इसके विपरीत, चढ़ते हुए एक के बाद एक तीन ‘बारों ‘ (हरा) के गठन के बाद खरीदा जाना मार्टिंगेल सिद्धांत चाहिए।
समाप्ति अवधि एक मोमबत्ती के गठन में लगे समय से अधिक नहीं होनी चाहिए।
इस रणनीति की प्रभावशीलता नीचे दिए गये रेखाचित्र में देखी जा सकती है।
तीन यूनिडायरेक्शनल मोमबत्तियों के गठन के सभी केसेज़ को एक घंटे की समय सीमा मार्टिंगेल सिद्धांत मार्टिंगेल सिद्धांत के साथ चार्ट के एक अलग टुकड़े पर काले आयतों के रूप में चिह्नित किया गया है। अनुबंध खरीदने की वो जगह ,जहां सौदे ने लाभ दिलाया थां, हरे तीरों से दर्शाए गये है । लाल तीर से घाटे वाले सौदों को दर्शाया गया है।
“गणितज्ञ” रणनीति में मार्टिंगेल सिद्धांत का अनुप्रयोग
संभाव्य हानि को कम करने के लिए, कई व्यापारी मार्टिंगेल सिद्धांत का उपयोग करते हैं। मार्टिंगेल सिद्धांत यह एक ऐसी विधि है जिसमें अगले अनुबंध की राशि को इस तरह से बढ़ाना सम्मिलित है जिससे होने वाला लाभ पिछले लेनदेन में हुए हानि को पूरी तरह से कवर करता है। यदि यह विकल्प लाभदायक नहीं निकला, तो कार्यशील पूंजी की मात्रा फिर से उसी तरह बढ़ जाती है। यह तब तक होता है जब तक व्यापार लाभ नहीं देता है।
सावधान रहें, हानि के विकल्पों की श्रृंखला लम्बी खिंच सकती हैं। इसलिए, यदि आप मार्टिंगेल सिद्धांत का उपयोग करने का इरादा रखते हैं, तो पहले अनुबंध का आयतन 2% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
हालांकि, जैसा कि अभ्यास ने दिखाया है, मार्टिंगेल के बिना भी “गणितज्ञ” प्रणाली का उपयोग करके व्यापार करना संभव है। यहां लाभदायक ट्रेडों की संख्या हानि से काफी अधिक है, जिसका अर्थ है कि आपकी जमा राशि लगातार बढ़ती रहेगी।
UNIT-5 : अधिगम सिद्धांत: पावलोव का शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत
शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में उद्दीपन अनुक्रिया के मध्य सहचार्य स्थापित होता है।
अनुबंधन दो प्रकार का होता है-
1. शास्त्रीय अनुबंधन अथवा अनुकूलित अनुक्रिया
2. क्रिया प्रसूत या नैमित्तिक अनुबंधन
अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें एक प्रभावहीन उद्दीपन इतना प्रभावशाली हो जाता है कि वह गुप्त अनुक्रिया को प्रकट कर देता है।
शास्त्रीय अनुबंधन को समझने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि मनुष्य में अन्य क्रियाएं होती है, कुछ जन्मजात होती है जैसे सांस लेना, पाचन आदि तथा कुछ मनोवैज्ञानिक लिए होती है जैसे पलक झपकना, लार आना आदि इन्हें अनुबंधन क्रियाऐं भी कहते हैं।
शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत आईवी पाउलोव द्वारा सन् 1904 में प्रतिपादित किया गया इस सिद्धांत के अनुसार अस्वाभाविक उद्दीपन के प्रति स्वभाविक उद्दीपन के समान होने वाली अनुक्रिया शास्त्रीय अनुबंधन है अर्थात उद्दीपन और अनुक्रिया के बीच सहचार्य स्थापित होना ही अनुबंधन है।
चार्वाकों की नीतिमीमांसा
चार्वाक संप्रदाय जिस मूल सिद्धांत को आधार मानकर चली है, वह है सुखवाद (Hedoism)। सुखवाद का सरल अर्थ है, कि सुखों की प्राप्ति करना ही नैतिक कर्म है। हमारे जो भी कार्य सुख प्रदान करते हैं, वे नैतिक हैं, और दुख प्रदान करने वाले कार्य हैं वे अनैतिक है। मार्टिंगेल सिद्धांत भारतीय दर्शन के नौ संप्रदायों में से चार्वाक अकेला है जो सुखवाद के पक्ष में खड़ा है। शेष लगभग सभी संप्रदाय लौकिक सुखों को निंदा की मार्टिंगेल सिद्धांत भाव से देखते हैं और उन्हें अवांछनीय घोषित करते हैं।
चार्वाक संप्रदाय का स्पष्ट मत है कि जब तक जियो सुख से जियो, उधार लेकर घी पियो, एक बार देह भस्म हो जाने के बाद वापस कोई लौटकर नहीं आता है। चार्वाकों ने सुखभोग के संबंध में कुछ स्पष्ट सिद्धांत भी बताए हैं। इनका पहला सिद्धांत है कि भविष्य की अनिश्चित सुख की बजाय वर्तमान के निश्चित सुख का भोग किया जाना चाहिये। दूसरा सिद्धांत है कि कोई भी सुख पूर्णतः शुद्ध नहीं होता, उसमें किसी-न-किसी मात्रा में दुख भी शामिल होता है। किंतु, उस छोटे–मोटे दुख से डरकर सुख की कामना छोड़ना निरर्थक है। उदाहरण के लिये मछली खाना इसलिये नहीं छोड़ना चाहिये कि उसमें काँटा होता है।
चार्वाक नीति के सकारात्मक पक्ष
चार्वाक नैतिकता पूरी तरह से इहलोकवाद पर टिकी है। इहलोकवाद का अर्थ है कि यह जगत ही अंतिम सत्य है। नैतिकता के संदर्भ में इसका अर्थ है कि हमें अपने नैतिक सिद्धांतों का निर्धारण लौकिक जीवन के मार्टिंगेल सिद्धांत आधार पर करना चाहिये, उसके लिये आलौकिक या पारलौकिक संदर्भ को आधार नहीं मार्टिंगेल सिद्धांत बनाना चाहिये।
चार्वाक नीति का दूसरा सकारात्मक पहलू यह है कि वह मानव सहजता का सम्मान करती है। उदाहरण के लिये सांख्य, जैन, न्याय, वैशेषिक तथा अद्वैत सभी दर्शन मनुष्य को सलाह देते हैं कि वे सांसारिक सुखों से यथासंभव दूरी बनाए रखें। चार्वाक इस मामले में भारतीय दार्शनिक परंपरा का अकेला अपवाद है। सांसारिक जीवन को सहज रूप में स्वीकार करता है। वह सुखों और दुखों को जीवन के सहज हिस्सों के तौर पर देखता है।
चार्वाक नीति के नकारात्मक पक्ष
चार्वाक नीति की कुछ अच्छी बातों के बावजूद सच यही है कि वह कई मायनों में समाज के लिये न केवल अप्रासंगिक है, बल्कि कई बिंदुओं पर घातक भी हो जाता है।
चार्वाकों के नैतिक सिद्धांत में दूसरी बड़ी कमी यह है कि वे सिर्फ व्यक्ति के सुखों की बात करते हैं, समाज के सुखों की नहीं। यह बात मोटे तौर पर सही है कि संसार का हर व्यक्ति अपने लिये अधिकतम सुख चाहता है, पर यह भी उतना ही सही है कि अगर सभी व्यक्ति बिना किसी नैतिक नियमन के अंधाधुंध तरीके से सुखों की होड़ में लग जाएँ तो उनके बीच आपस में ही इतने संघर्ष हो जाएंगे कि अधिकांश के हिस्से में दुख आएगा।