विदेशी मुद्रा व्यापार टिप

एक Price Gap क्यों बनता हैं?

एक Price Gap क्यों बनता हैं?

Recessionary Gap क्या है?

मंदी की खाई क्या है? [What is the recession gap? In Hindi]

एक मंदी (Recession) का अंतर इंगित करता है कि अर्थव्यवस्था पूर्ण-रोजगार स्तर से नीचे चल रही है, इस प्रकार दीर्घावधि में सामान्य मूल्य स्तर को नीचे धकेलती है। इस अंतर का मुख्य कारण अकुशल संसाधन आवंटन (inefficient resource allocation) है जो अल्पावधि में मूल्य कठोरता का कारण बनता है। विशेष रूप से, मजदूरी को अक्षम रूप से आवंटित किया जाता है, इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मंदी (Recession) का कारण बनता है क्योंकि फर्मों का मुनाफा कम होता है और वे अधिक श्रमिकों को बंद करने के लिए मजबूर होते हैं।

मंदी की खाई की परिभाषा [Definition of recession gap] [In Hindi]

Recession Gap, जिसे संकुचन अंतराल के रूप में भी जाना जाता है, वास्तविक जीडीपी और संभावित जीपीडी के बीच का अंतर है। संभावित सकल घरेलू उत्पाद वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद से अधिक है क्योंकि अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन पूर्ण रोजगार पर उत्पादित कुल उत्पादन से कम है।

Recessionary Gap क्या है?

Recession gap को Contraction interval भी कहा जाता है। एक अर्थव्यवस्था आवश्यक रूप से पूर्ण रोजगार स्तर पर संचालित नहीं होती है। तो संभावित पूर्ण रोजगार संतुलन और वास्तविक लोगों के बीच मौजूद अंतर Recession gap है।

यह Recession Gap लंबी अवधि में कीमतों को नीचे धकेलती है। मंदी आर्थिक गतिविधियों में एक सामान्य मंदी को संदर्भित करती है, अर्थात एक व्यापार चक्र संकुचन (Business cycle contraction)।

आम तौर पर, एक Recession gap तब होती है जब कोई अर्थव्यवस्था मंदी के करीब पहुंच रही होती है। तो यह व्यापार चक्र संकुचन से भी जुड़ा है। Real Gross Domestic Product (Real GDP) क्या है?

मंदी की खाई का क्या कारण है? [What is the reason for the recession gap? In Hindi]

यह किसी देश की अर्थव्यवस्था में वास्तविक और संभावित उत्पादन के बीच का अंतर है जो इस अंतर का कारण बनता है। जब वास्तविक उत्पादन संभावित उत्पादन से कम होता है, तो लंबी अवधि में कीमतों पर नीचे की ओर दबाव डाला जाता है। इन अंतरालों को तब देखा जा सकता है जब देश में उच्च बेरोजगारी हो। एक साथ महीनों तक आर्थिक गतिविधियों में कमी मंदी का संकेत देती है और इस दौरान कंपनियां अपने खर्च में कटौती करेंगी। इससे व्यापार चक्र में गैप बनता है। जब मंदी आने वाली होती है, तो कर्मचारियों के लिए टेक-होम वेतन में कमी और उच्च बेरोजगारी के कारण उपभोक्ता खर्च कम हो जाता है।

अगर दांतों में है गैप तो उसे लकी न समझें, जबड़ा चैक कराएं

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दांतों में गैप को लोग अक्सर लकी मानते हैं लेकिन असल में यह जबड़े, दांतों या पायरिया से जुड़ी समस्या हो सकती है। यह गैप दूध के दांतों में नहीं बल्कि परमानेंट दांतों में होता है। आइए जानते हैं इससे जुड़े तथ्यों के बारे में।

इसलिए होता है गैप -
आमतौर पर हमारे नीचे वाले दांतों की तुलना में ऊपर के दांतों में स्पेस होता है। यह स्पेस दांतों का साइज छोटा व जबड़े का साइज बड़ा होने से हो सकता है।

दांतों का आकार सामान्य लेकिन जबड़े का साइज अत्यधिक होने से भी दांतों के बीच में गैप आ जाता है।
सभी दांतों का आकार बहुत छोटा होने पर। सभी 32 दांतों में से 2-4 दांत कम आने से भी गैप हो जाता है।
लंबे समय तक जब व्यक्ति पायरिया का इलाज नहीं कराता तो दांत अपनी जगह से खिसकने लगते हैं जिससे खाली जगह बनने लगती है।
लेट्रल इंसाइजर (सामने के दांतों से सटा दांत) का आकार सामान्य से बहुत छोटा होने पर भी दांतों में गैप आ जाता है।

सर्जरी से हो सकते हैं ठीक :

विनियर्स लेमिनेट्स -
इस सर्जरी में दांतों की इनेमल लेयर को घिसकर पतली-पतली दो परत बनाई जाती हैं जिन्हें गेप वाले दांतों के ऊपर लगा दिया जाता है। इसके लिए आधे घंटे की 2-3 सीटिंग लेनी पड़ती है और 5-8 हजार का खर्च आता है।

जैकेट क्राउन -
जब दांतों के बीच का गैप 4 मिलिमीटर से ज्यादा होता है तो दांतों को चारों तरफ से पूरी तरह से घिसकर उन पर कैप लगा दी जाती है।

कॉम्पॉजिट विनियर्स ट्रीटमेंट -
अगर सेंट्रल इंसाइजर (सामने के दो दांत) में कम गैप होता है तो इस ट्रीटमेंट से दांतों की चौड़ाई बढ़ाकर गैप कम किया जाता है। इसमें कॉम्पॉजिट मैटीरियल (दांतों के रंग से मिलती-जुलती) फिलिंग इस्तेमाल होती है। यह आधे घंटे की एक सिटिंग में ही हो जाता है।

ध्यान रखें : अगर आपको किसी मैटीरियल (रेसिन/सिरेमिक) से एलर्जी है तो इसके बारे में अपने डेंटिस्ट को पहले ही बता दें।

एक इंजेक्शन और तीन साल नहीं बनेंगी मां

नसबंदी के लिए महिलाओं को अब ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं होगी। हाथ में इंजेक्शन से नसबंदी हो सकेगी। इसके लिए इम्प्लेनाल विधि आई है। यह विधि विदेशों में लोकप्रिय हो रही है। यह जानकारी फाग्सी की.

एक इंजेक्शन और तीन साल नहीं बनेंगी मां

नसबंदी के लिए महिलाओं को अब ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं होगी। हाथ में इंजेक्शन से नसबंदी हो सकेगी। इसके लिए इम्प्लेनाल विधि आई है। यह विधि विदेशों में लोकप्रिय हो रही है। यह जानकारी फाग्सी की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नंदिता पल्शेतकर ने दी।

वे रेडिसन ब्लू होटल में ‘मातृत्व सुरक्षा' विषय पर चल रही दक्षिण एशिया फाग्सी सेमिनार के दूसरे दिन बतौर विशेषज्ञ मौजूद रहीं। उन्होंने बताया कि आमतौर पर नसबंदी में बच्चेदानी से जुड़ी फिलोपिन ट्यूब को बंद कर दिया है। इसके कारण वह मां नहीं बन सकती। कई बार जीवन में परिस्थितियां तब्दील होती हैं। ऐसे में अगर नसबंदी के बाद महिला दोबारा मां बनना चाहे तो उसे काफी परेशानी होती है। 80 फीसदी मामलों में महिला मां नहीं बन पाती।

नई तकनीक से महिला जब चाहे तब मां बन सकती है। इसमें एक बार इंजेक्शन से महिला के हाथों में इम्प्लेनाल लगाया जाता है। इस इम्प्लेनाल से रसायन का स्राव होता है। इससे महिला गर्भधारण नहीं करती।

फाग्सी सेमिनार आयोजन गोरखपुर ऑब्स एवं गाइनी सोसायटी ने किया है। सेमिनार में देश विदेश के प्रख्यात स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों ने चर्चा की। दूसरे दिन के कार्यक्रम का उद्घाटन लन्दन के डॉ. अरुल कुमारन एवं फॉग्सी अध्यक्ष डॉ. नंदिता पाल्शेतकर ने किया। इस दौरान डॉ.साधना गुप्ता, डॉ. सुरहीता करीम, डॉ.रीना श्रीवास्तव, डॉ.अमृता जयपुरियार, डॉ.बबिता शुक्ला और डॉ.राधा जीना मौजूद रहीं।

बच्चेदानी सिकुड़ने से रक्तस्रात का खतरा : डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा, डॉ. प्रतिभा गुप्ता और डॉ. अरुणा छापड़िया ने कहा कि प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव से मरीज की जान को खतरा हो सकता है। इसकी वजह से बच्चेदानी का ट्रामा हो सकता है। बच्चेदानी के सिकुड़ने की कमी से भी रक्तस्राव ज्यादा हो सकता है। इसके अलावा मधुमेह, उच्च रक्तचाप , ट्विन प्रेगनेंसी , खून की कमी, इनफेक्शन से भी रक्तस्राव हो सकता हैं। ऑपरेशन करके बच्चेदानी निकालने की नौबत भी आ सकती है।

शुरू का पहला मिनट अहम : बीआरडी मेडिकल कॉलेज की बालरोग की विभागाध्यक्ष डॉ. महिमा मित्तल ने हाई रिस्क प्रेगनेंसी से पैदा होने वाले बच्चों में होने वाली परेशानियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जन्म के बाद कभी-कभी नवजात को सांस लेने में दिक्कत होती है। कुछ बच्चे जन्म के फौरन बाद नहीं रोते। ऐसे बच्चों का शुरू का पहला मिनट अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान अगर बच्चे सही से इलाज हो जाए वह आगे चलकर स्वस्थ रहते हैं। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था में महिला के खान पान और पोषण का पूरा ध्यान नहीं रखने से गर्भस्थ शिशु का विकास नहीं होता।

स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रीना श्रीवास्तव का कहना है कि गर्भावस्था का इन्फेक्शन मां और बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। संक्रमण के कारण प्लेसेंटा बच्चेदानी के मुंह पर आ जाती है और रक्तस्राव होने लगता है। इसकी वजह से मां और बच्चे की मृत्यु कभी भी हो सकती है। समय रहते इसका पता सामान्य अल्ट्रासाउंड से हो सकता है। दवाईयों या ऑपरेशन के द्वारा मां-बच्चे की जान बचाई जा सकती है।

पटना की डॉ. अल्का पाण्डेय ने बताया कि आमतौर पर गर्भावस्था काल 40 हफ्ते का होता है। इसके बाद से मां के गर्भ में प्लेसेंटा सूखने लगता है। इससे गर्भ में शिशु की जान जा सकती है। ऐसे में गर्भावस्था का नौवां महीना पूरा होने पर महिला को जरूर डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। करीब 10 फीसदी महिलाओं में प्रसव पीड़ा नहीं होती। किसी भी सूरत में 42वां हफ्ता एक Price Gap क्यों बनता हैं? नहीं होना चाहिए।

पीजीआई लखनऊ के फीटल मेडिसिन की विभागाध्यक्ष डॉ. मंदाकिनी प्रधान ने बताया कि निगेटिव आरएच फैक्टर ब्लड ग्रुप वाली महिलाओं को गर्भावस्था के एक Price Gap क्यों बनता हैं? दौरान खास ख्याल रखना पड़ता है। अगर महिला के पति का ब्लड ग्रुप का आरएच फैक्टर पॉजिटिव है तो गर्भस्थ शिशु का खून संक्रमित हो सकता है। इससे शिशु की मौत हो सकती है। इसका इलाज सिर्फ एक एंटीबॉडी इंजेक्शन से हो सकता है।

वृद्धावस्था में कलाई और हाथ की चोट

जब भी कोई व्यक्ति गिरता है तो बचाव के लिए सबसे पहले ज़मीन पर हाथ लगता है और शरीर का सारा वज़न हाथ और कलाई को सहना पड़ता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि हाथ एवं कलाई की चोट काफ़ी मात्रा में देखने में आती है वृद्धावस्था में ये मामला थोड़ा और ज़्यादा सामान्य एवं गंभीर रूप ले लेता है।

हम जानते हैं कि ज़्यों ज़्यों हमारी उम्र बढ़ती है त्यों त्यों हमारी हड्डियां कमज़ोर होना शुरू हो जाती है । यह कितनी ज़्यादा कमज़ोर हुई है उस हिसाब से आसटिसोपीनिया या ऑस्टियोपोरोसिस की संज्ञा दी जाती है। हल्की सी चोट लगने के बाद फ्रैक्चर हो सकता है । सबसे ज़्यादा इसका प्रभाव कूलहे की हड्डी, रीढ़ की हड्डी एवं कलाई की हड्डी मैं देखने में आता है।

कलाई एवं हाथ की चोट

कलाई एवं हाथ में विभिन्न प्रकार के फ्रैक्चर हो सकते हैं यह जानना ज़रूरी है कि कलाई का जोड़ दो बड़ी एवं आठ छोटी छोटी हड्डियों से बना होता है। इसके आगे उंगलियों के लिए कई जोड़ और हड्डियाँ रहती है। गिरने के कारण इनमें से किसी भी हड्डी का फ्रैक्चर हो सकता है लेकिन सबसे सामान्य रूप में देखने में आता है कोलीज फ्रैक्चर।

कोलीज फ्रैक्चर ( Colles Fracture)यह फ़्रैक्चर कलाई के जोड़ से लगभग दो सेंटीमीटर ऊपर होता है क्योंकि हड्डी इस जगह पर सबसे ज़्यादा कमज़ोर होती है। फ्रैक्चर होने के बाद ज़्यादातर , हड्डी ऊपर और एक तरफ़ खिसक जाती है और देखने में खाने वाला काँटा या डिनर फ़ोर्क तरह की विकृत नज़र आती है।
कई बार इस हड्डी के दो से भी ज़्यादा टुकड़े हो जाते हैं और ज़ोड वाली तरफ़ भी प्रभावित हो जाती है।

स्वाभाविक है कि ऐसी चोट लगने के बाद आप अपने आस पास के ऑर्थोपीडिक सर्जन यानी अस्थि शल्य विशेषज्ञ को दिखाकर उसका एक्सरे करवाएंगे । निदान अथवा डायगनोसिस होने के बाद इसके इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए। यदि बेहोश करके भी से हड्डी को अपनी जगह पर वापस लाना आवश्यक हो तो इसे हिचकिचाना नहीं चाहिए।

यदि हड्डी अपनी जगह से ज़्यादा नहीं खिसकी है तो बिना बेहोश किए केवल प्लास्टर लगाकर इसका इलाज किया जा सकता है। लगभग पाँच हफ़्ते तक प्लास्टर लगाने की आवश्यकता रहती है। यदि फ्रैक्चर के बाद हड्डी अपनी जगह से खिसक गई है तो कोशिश यही की जाती है कि जहाँ तक संभव हो , अपनी जगह से हटी हुई टूटी हड्डी को पूरी तरह से वापिस अपने स्थान पर लाया जाए और उसे वहीं रोका जाए।

ऐसा करने के लिए रोगी को अस्पताल में दाख़िल करना पड़ता है और थोड़ी सी देर के लिए बेहोश करके हड्डी को अपनी जगह सेट किया जाता है हड्डी को अपनी जगह पर रोकने के लिए कई बार दो छोटी छोटी तारें भी लगा दी जाती है ताकि वह वहाँ से न हिले। इन तारों को चार या पाँच हफ़्ते के बाद निकाल दिया जाता है इनको निकालने में कोई दिक़्क़त नहीं रहती क्योंकि इनका एक हिस्सा चमड़े के बाहरी छोड़ दिया जाता है और बिना किसी एनेस्थीसिया के इनको आराम से निकाला जा सकता है।
इसके साथ साथ पाँच हफ़्ते के लिए प्लास्टर भी लगाया जाता है।

कई बारी हड्डी अगर बहुत बुरी तरह से टूटी हो तो उसे पूरी तरह अपनी जगह पर लाना संभव नहीं होता । उसे अच्छी से अच्छी स्थिति में लाने के लिए बेहोश करने के बाद बहार से एक खांचा या एक्सटर्नल फिकसेटर ( External Fixator) लगा दिया जाता है जिसे पाँच या छह हफ़्ते के बाद निकाला जा सकता है कोशिश यही रहती है कि चीरा न लगाया जाये , ऑपरेशन न करना पड़े और छोटी विधि द्वारा ही इलाज संभव हो पाए। लेकिन कभी कभी इसमें प्लेट लगाने की आवश्यकता पड़ जाती है।

प्लास्टर लगने के बाद की सावधानियां

  • यदि उंगलियों में सूजन आ जाए /उनका रंग बदलना शुरू हो जाए / ज़्यादा तेज दर्द हो या उंगली चलाने में दिक़्क़त हो तो फ़ौरन अपने डॉक्टर से मिलें।
  • हाथ को हमेशा ऊँचा उठाकर रखें। यदि हाथ को लटकाकर रखेंगे तो उंगलियों में सूजन आने का डर रहता है और इससे उंगलियाँ अकड़न भी आ जाती है।
  • एक Price Gap क्यों बनता हैं?
  • उंगलियों को लगातार चलाते रहें । इससे खून का दौरा चलता रहता है और खून जमा नहीं होता जिससे सूजन नहीं होती और अकडन भी नहीं होती
  • कई बार यह देखा गया है कि प्लास्टर लगने के बाद बाज़ू को स्लिंग में रखने के कारण , व्यक्ति अपने कंधे और कोहनी के जोड़ों को नहीं चलाते और कंधा जाम हो जाता है। इसलिए आवश्यक है कि दिन में तीन चार बार बाजु को स्लिंग से बाहर निकाल कर कंधे एवं कोहनी का व्यायाम आवश्य करें ताकि वे जाम न हो जाए।

प्लास्टर उतरने के बाद की सावधानियां

  • प्लास्टर उतरने के कुछ दिन बाद एक Price Gap क्यों बनता हैं? भी हाथ को ऊँचा रखना चाहिए
  • हाथ की अंगुलियां चलाते रहें
  • कोसे पानी में हाथ डालकर व्यायाम करें
  • नरम गेंद या बच्चों द्वारा खिलौने बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विशेष प्रकार की मिट्टी से हाथों का व्यायाम करें
  • ध्यान रहे कंधे और कोहनी का व्यायाम भी लगातार करते रहे

अच्छा ये रहेगा कि अपने घर के आस पास किसी फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाकर कुछ दिन आप नियमित व्यायाम करें ताकि हाथों की उंगलियों , कलाई एवं अन्य जोड़ों में अकड़न ना रह जाए। कुछ लोगों में सूजन एवं अकड़न ज़्यादा दिन तक रह सकती है । यह और RSD या रिफलेकस सिमपेथेटिक डिसटरोफी की वजह से हो सकता है और इसका विशेष प्रकार का इलाज करना पड़ सकता है।

कलाई एवं हाथ के अन्य फ्रैक्चर

इसी प्रकार से हाथ एक Price Gap क्यों बनता हैं? की छोटी हड्डियों के अन्य कई प्रकार के फ्रैक्चर हो सकते हैं और उन्हें या तो प्लास्टर या उँगलियों को एक दूसरे के साथ स्टरेपिंग करके ठीक किया जा सकता है। कुछ फ्रैक्चर ऐसे होते हैं कि उन्हें ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि ऐसा होगा तो आपके ऑर्थोपीडिक सर्जन आपको इसकी जानकारी दे देंगे बहरहाल ज़्यादातर फ्रैक्चर का इलाज बिना ऑपरेशन के किया जा सकता है इन सब फ्रैक्चर में भी ये सब सावधानियां , जो ऊपर लिखी गई हैं , का पालन करना आवश्यक है।

दो अन्य महत्वपूर्ण बातें

एक तो यह है कि वृद्धावस्था में गिरने से कैसे बचा जाए और दूसरा कनजोर हड्डी यानी ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज साथ साथ ज़रूर किया जाए। ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए कुछ विशेष प्रकार की दवाइयां आसानी से उपलब्ध है। अपने डॉक्टर की सलाह के बाद कैल्शियम और विटामिन D भी ज़रूर लें।

गिरने से बचाव

  • बढ़ती उम्र के साथ संतुलन कुछ कम हो सकता है। यदि ऐसा है तो चलने के लिए छड़ी इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है
  • फिसलन वाली जगह पर न चले
  • गीले फ़र्श पर न चले
  • बाथरूम में एसी टाइल लगवाए जिससे फिसलने की संभावना कम हो और हेंड रेलिंग भी लगवाए। घर के अंदर क़ालीन एवं फ़र्नीचर इस प्रकार से रखें कि व्यक्ति का पैर न अटके ।

यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार का फ्रैक्चर हो जाए तो घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है इसका इलाज बहुत सरल है और इसके परिणाम काफ़ी अच्छे हैं कुछ हफ्तों में आप अपने हाथ को पहले की तरह इस्तेमाल करने में सक्षम हो जाएंगे।

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